पटना : बिहार में मानसिक स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं से सम्बंधित मामले पर पटना हाई कोर्ट (Patna High Court) ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को की गई कार्रवाई का ब्यौरा देने के लिए दो सप्ताह का मोहलत दिया है. चीफ जस्टिस संजय करोल (Chief Justice Sanjay Karol) की खंडपीठ ने आकांक्षा मालवीय की जनहित याचिका पर सुनवाई की.
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कमियों को बताएं और सुधार का दें सुझाव : कोर्ट ने पिछली सुनवाई में इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को पूरी जानकारी देने को कहा था. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को राज्य में मानसिक स्वास्थ्य सेवा (Mental Health Facilities In Bihar) में क्या क्या कमियां हैं इसके सम्बन्ध में ब्यौरा देने को कहा था. साथ ही इसमें सुधारने के उपाय पर सलाह देने को कहा था.
स्टाफ की संख्या नाकाफी : याचिकाकर्ता की अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने बताया कि नेशनल मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम ही के अंतर्गत राज्य के 38 जिलों में डिस्ट्रिक्ट मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम चल रहा है. लेकिन इसमें स्टाफ की संख्या नाकाफी ही है. हर जिले में सात-सात स्टाफ होने चाहिए. उन्होंने बताया कि राज्य सरकार का दायित्व है कि वह मेन्टल हेल्थ केयर एक्ट के तहत कानून बनाए।साथ ही इसके लिए मूलभूत सुविधाएं और फंड उपलब्ध कराए. लेकिन अबतक कोई ठोस और प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है.
मानसिक रोग के अध्ययन और ईलाज के लिए कोई कालेज नहीं : कोर्ट को ये भी बताया गया था कि सेन्टर ऑफ एक्सलेंस के तहत हर राज्य में मानसिक रोग के अध्ययन और ईलाज के लिए कॉलेज है. लेकिन बिहार ही एक ऐसा राज्य हैं, जहां मानसिक रोग के अध्ययन और ईलाज के लिए कोई कालेज नहीं है. जबकि प्रावधानों के तहत राज्य सरकार का ये दायित्व है.
27 सितंबर को अगली सुनवाई : पिछली सुनवाई में कोर्ट को बताया गया था कि केंद्र सरकार की ओर से दिए जाने वाले फंड में कमी आयी है. क्योंकि फंड का राज्य द्वारा पूरा उपयोग नहीं हो रहा था. पहले की सुनवाई में याचिकाकर्ता की अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने कोर्ट को बताया कि बिहार की आबादी लगभग बारह करोड़ हैं. उसकी तुलना में राज्य में मानसिक स्वास्थ्य के लिए बुनियादी सुविधाएं नहीं के बराबर हैं. इस मामले पर अगली सुनवाई 27 सितंबर को होगी.