पटना: 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर अभी काफी वक्त है, लेकिन तमाम राजनीतिक दलों ने अभी से (Lalu And Nitish Will Be present in Haryanas Rally) ही बीजेपी की घेराबंदी को लेकर अपनी तैयारी शुरू कर दी है. इस तैयारी का सबसे बड़ा गवाह हरियाणा का फतेहाबाद बनने जा रहा है. जहां 25 सितंबर यानी रविवार को देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल की 129वीं जयंती पर विपक्ष की मेगा बैठक होने जा रही है. राजनीति के जानकारों की मानें तो इस रैली का आयोजन वैसे तो इंडियन नेशनल लोकदल की तरफ से किया जा रहा है लेकिन इसमें एनसीपी चीफ शरद पवार (NCP Chief Sharad Pawar), बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम की कनिमोझी समेत विपक्षी दलों के कई नेताओं के शामिल होने की भी खबर है.
ये भी पढ़ें- लालू यादव दिल्ली रवाना, एयरपोर्ट पर बोले- भाजपा का देश से होगा सफाया
हरियाण की रैली में लालू और नीतीश होंगे शामिल : विपक्ष की एकता में थोड़ी सी दरार यहां भी दिख रही है. मिली जानकारी के अनुसार टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी इस रैली में शामिल होने को लेकर अभी तक असमंजस में हैं. वहीं खुद जदयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने एक मीडिया हाउस को दिए इंटरव्यू में यह कहा कि कांग्रेस को अभी तक इस रैली के लिए न्योता नहीं दिया गया है. सरकार बनाने के बाद पहली बार एक साथ धुर विरोधी दल रहे जेडीयू और आरजेडी बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद यह पहला मौका होगा जब कभी धुर विरोधी रहे लालू प्रसाद और नीतीश कुमार एक साथ विपक्ष के मंच को शेयर करेंगे और बीजेपी की सरकार पर निशाना साधंगे.
लालू और नीतीश मंच पर एक साथ आएंगे नजर : एक मंच पर इतने सारे विपक्षी नेताओं और अपने-अपने राज्यों के सभी दिग्गजों की एक मंच पर उपस्थिति का एक मुख्य उद्देश्य गैर बीजेपी ताकतों के बीच एकता के प्रयासों को गति देना है. जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, राजस्थान में बीजेपी की सहयोगी रही राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के नेता और एमपी हनुमान बेनीवाल को भी इस रैली में शामिल होने के लिए न्योता दिया गया है. जबकि हरियाणा के पूर्व मंत्री विनोद शर्मा भी इसमें शामिल हो सकते हैं. इसके अलावा तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू सहित कई अन्य बड़े क्षेत्रीय नेताओं को इस जनसभा में शामिल होने के लिए निमंत्रण भेजा गया है.
रैली में तेजस्वी भी हो सकते हैं शामिल : दरअसल बिहार में राजद के साथ सरकार बनाने के बाद से ही नीतीश कुमार कांग्रेस समेत गैर बीजेपी दलों के बीच एकता की आवश्यकता पर लगातार जोर दे रहे हैं. बीजेपी से अपना नाता तोड़ने के बाद से वह राहुल गांधी, शरद पवार, अरविंद केजरीवाल के साथ ही कई अन्य प्रमुख नेताओं के साथ मुलाकात करने के लिए दिल्ली का दौरा कर चुके हैं. इस रैली की बिहार के नजरिए से खास बात एक यह भी होगी कि डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव भी इसमें शामिल हो सकते हैं.
पहली बार लालू, तेजस्वी, नीतीश एक मंच पर : एक तरफ शनिवार को जहां लालू प्रसाद और सीएम नीतीश कुमार दिल्ली पहुंच चुके थे. वहीं दूसरी तरफ तेजस्वी यादव अपने पैतृक गांव गोपालगंज के फुलवरिया जिले में गए हुए थे. ऐसे भी कयास लगाए जा रहे हैं कि तेजस्वी यादव शायद ही इसे विपक्ष की रैली में शामिल हो, लेकिन पार्टी सूत्रों की माने तो अभी तक इस पर कोई स्पष्ट निर्णय नहीं लिया गया है. तेजस्वी इस रैली में शामिल हो भी सकते हैं. अगर वो इस रैली में शामिल होते हैं तो बिहार के लिए एक खास बात यह होगी कि संभवतः पहली बार लालू प्रसाद, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव बिहार के बाहर किसी बड़े रैली में एक साथ मंच को शेयर करेंगे.
नेताओं के नहीं आने पर बढ़ेगी चुनौती : हालांकि अभी तक ममता बनर्जी की तरफ से इस रैली में शामिल होने के लिए कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिए गए हैं. ऐसे में अगर एक बड़ा क्षेत्रीय नेता इस रैली में शामिल नहीं होगा तो इससे विपक्ष की मुहिम को एक झटका भी लग सकता है. जबकि इस रैली की सफलता के लिए लालू प्रसाद और नीतीश कुमार अपना पूरा दमखम लगाए हुए हैं. ध्यान देने वाली बात यह भी है कि चंद रोज पहले जब राजद के राज्य परिषद की मीटिंग थी तो राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने यह भी कहा था कि नीतीश कुमार विपक्ष की एकता को बनाने चले हैं और यह तराजू में मेंढक तौलने जैसा है.
बीजेपी को घेरने में जुटा विपक्ष : राजद के एक वरिष्ठ नेता नाम नहीं बताने की शर्त पर कहते हैं कि यह सही है कि नीतीश कुमार बीजेपी को लेकर अभी काफी आक्रामक मूड में हैं और राजद भी उनका साथ दे रहा है. बीजेपी के साथ देश के अन्य दलों की भी नजर इस रैली पर रहेगी और ऐसे में अगर कोई जाना माना क्षेत्रीय नेता इस रैली में शामिल नहीं होता है तो जाहिर सी बात है, इससे विपक्ष की एकता पर बीजेपी सवाल तो जरूर उठाएगी, जो खुद नीतीश कुमार भी नहीं चाहेंगे. वहीं जदयू के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि नीतीश कुमार जिस मुहिम में लगते हैं, उसे पूरा कर लेते हैं. बीजेपी को भी नीतीश यह जरूर दिखाना चाहेंगे कि विपक्ष बीजेपी को लेकर पूरी तरीके से एकजुट है और कहीं कोई कमी नहीं है.
नीतीश की पहल पर सबकी नजर : इस पूरे आयोजन में सबसे ज्यादा लोगों की नजर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और बिहार के सीएम नीतीश कुमार पर ही रहेगी. दरअसल नीतीश कुमार की पार्टी उन्हें पीएम मैटेरियल कहती रही है. जनता दल यूनाइटेड के बाद अब राजद ने भी नीतीश कुमार की खुल कर तारीफ की है. और उनके दिल्ली जाने की कई बार बात कही है. हालांकि राजद का यह भी कहना है कि नीतीश दिल्ली जाएं और तेजस्वी बिहार संभालेंगे. तेजस्वी को लेकर पहले की तुलना में काफी मुलायम दिख रहे हैं नीतीश कुमार. खुद कई मौकों पर तेजस्वी की तारीफ कर चुके हैं, साथ ही उन्होंने यह भी इशारा कर दिया है कि उनके बाद तेजस्वी ही बिहार की सत्ता को संभालेंगे.
विपक्ष के निशाने पर पीएम मोदी : राज्य में सत्तासीन होने के बाद विभिन्न टीवी चैनलों के इंटरव्यू में जब जॉब देने के नाम पर तेजस्वी लड़खड़ाए तो खुद नीतीश कुमार फ्रंट पर आकर तेजस्वी का साथ दिए. उन्होंने यहां तक कहा कि जॉब देने के लिए ट्राई तो कर ही रहे हैं. ऐसे में अब सभी सियासी पंडितों की नजर इस बात पर रहेगी कि हरियाणा की रैली के बाद नीतीश की तेजस्वी को लेकर क्या प्लानिंग होगी? और राजद, जदयू की इस प्लानिंग को किस नजरिए से दिखेगा?. बहरहाल देश में न तो क्षेत्रीय दलों की कमी है और न ही ऐसे मौका विशेष कि जब पक्ष या विपक्ष एक कोई रैली का आयोजन न करें.
सीएम नीतीश पर टिकी सबकी नजर : ऐसे में अगर विपक्ष के सभी नेता अगर हरियाणा की रैली में एक मंच पर एक साथ दिखते हैं तो मनोवैज्ञानिक रूप से नीतीश इसमें सफल माने जाएंगे. लेकिन अगर कोई बड़ा क्षेत्रीय क्षत्रप इस रैली में शामिल नहीं होता है तो लाजिमी है कि यह नीतीश के लिए बड़ी चुनौती होगी. वह विपक्ष के अन्य क्षेत्रीय क्षत्रपों को कैसे और किस प्रकार, किस मंच पर एकत्र करने में सफल होंगे ?, इस पूरे घटनाक्रम पर राजनीति पर अपनी पैनी नजर रखने वाले प्रियांक कहते हैं हरियाणा की इस रैली पर पूरे देश की नजर रहेगी.
'यह पूरी कवायद यह है कि बीजेपी को 2024 में सत्ता से हटाया जा सके. मेरा मानना है कि 2014 के बाद से बीजेपी जब से सत्ता में आई है, अगले इलेक्शन में वह और भी पावरफुल होकर उभरी है. विपक्ष कमजोर दिख रहा है. एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए कहीं से भी इसे अच्छा संकेत नहीं माना जाता है. कहावत भी है कि सरकार कमजोर हो तो चलेगा लेकिन विपक्ष कमजोर नहीं होना चाहिए. जब विपक्ष मजबूत होता है तो सरकार भी अपने दायरे में चलती है.' - प्रियांक, राजनीतिक विश्लेषक