पटना : जेडीयू ने आखिरकार कई दिनों के सस्पेंस के बाद केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह का पत्ता काट दिया है. उनकी जगह झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष खीरू महतो को राज्यसभा का उम्मीदवार (Khiru Mahto JDU Rajya Sabha candidate) बनाया है. 2021 में ललन सिंह ने ही खीरु महतो को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था अब पार्टी की नजर 2024 के चुनाव पर है. जब मीडिया कर्मियों ने पूछा कि आखिर खीरू महतो ही क्यों तो उन्होंने बिना किसी लाग लपेट के कहा कि उनकी पार्टी झारखंड में विस्तार करना चाहती है. खीरू महतो की उम्मीदवारी से जेडीयू झारखंड में मजबूत होगी.
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'हम लोग झारखंड में पार्टी का विस्तार करना चाहते हैं. खीरू महतो की राज्यसभा उम्मीदवारी के बाद हमारी पार्टी का झारखंड में विस्तार होगा. आरसीपी सिंह हमारी पार्टी के सम्मानित नेता हैं. इस पार्टी में जो भी सर्वोच्च पद है उनको मिला है. दो टर्म वो राज्यसभा के एमपी रहे हैं. पार्टी की मजबूती के लिए आरसीपी सिंह आज भी काम करेंगे. जेडीयू में इस फैसले के बाद कोई टूट नहीं होगी. पार्टी और मजबूत होगी. चाहे हम हों, आरसीपी सिंह हों, उपेन्द्र कुशवाहा जी हों या फिर उमेश कुशवाहा जी हों सभी लोग नीतीश कुमार की मजबूती के लिए काम करते हैं'- ललन सिंह, राष्ट्रीय अध्यक्ष, जेडीयू
वहीं आरसीपी सिंह के सवाल पर ललन सिंह थोड़ा झल्ला उठे. मीडियाकर्मियों के सवालों पर उन्होंने भड़कते हुए कहा कि इससे पार्टी में कोई टूटफूट नहीं होगी. बल्कि हमारी पार्टी मजबूत होगी. आरसीपी सम्मानित नेता हैं. पार्टी ने उनको हर वो सर्वोच्च पद दिया. राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर केंद्र में मंत्री तक का पद दिया गया. आरसीपी हों या फिर उपेन्द्र कुशवाहा, हम सब नीतीश जी की मजबूती के लिए ही काम करते हैं. खीरू महतो को राज्यसभा भेजने का मकसद झारखंड में पार्टी को मजबूत करना और पार्टी का विस्तार करना है.
ललन सिंह के करीबी है खीरू महतो: जेडीयू के राज्यसभा प्रत्याशी खीरू महतो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के काफी खास हैं. बीते साल उन्हें झारखंड जेडीयू का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. खीरू महतो झारखंड के प्रभारी श्रवण कुमार के भी चहेते हैं. दूसरी ओर आरसीपी सिंह का टिकट काटकर खीरू महतो को प्रत्याशी बनाये जाने के बाद अब जेडीयू में भीतरघात की आशंका जतायी जा रही है.
अब क्या करेंगे आरसीपी: राज्यसभा टिकट नहीं मिलने से अब आरसीपी सिंह के केंद्र में मंत्री बने रहने को संदेह उत्पन्न हो गया है. बताया जाता है कि जेडीयू ने उन्हें राज्य की राजनीति में स्थापित करने का ऑफर दिया है. सूत्रों के मुताबिक आरसीपी सिंह केद्रीय मंत्रिमंडल से हटने के बाद उन्हें विधान परिषद के रास्ते राज्य में मंत्री बनाया जा सकता है. हालांकि अभी तक इस बारे में पार्टी की ओर औपचारिक तौर पर कुछ नहीं बताया गया है.
जेडीयू खेमे में नाराजगी: दरअसल, जदयू खेमे में इस बात को लेकर नाराजगी है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल पार्टी को समानुपातिक प्रतिनिधित्व नहीं मिला है. नीतीश कुमार की इच्छा के विरुद्ध आरसीपी सिंह ने भाजपा के सांकेतिक प्रतिनिधित्व को स्वीकार कर लिया था. इसी बात से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नाराजगी है. जेडीयू के प्रत्याशी की घोषणा में विलंब का सबसे बड़ा कारण भी यही है. जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार ने एक तीर से तीन निशाने साधे हैं. एक ओर जहां बीजेपी को मैसेज दिया है वहीं आरसीपी सिंह पर भी लगाम कसी है. तीसरा संदेश नीतीश ने कार्यकर्ताओं को संदेश दिया है कि पार्टी के लिए लगन से मेहनत करने वालों को मौका मिलता है. नीतीश कुमार दूरगामी परिणाम को को देखते हुए संयम के साथ निर्णय लेने के लिए जाने जाते हैं. एक बार फिर उन्होंने इसे साबित कर दिया है.
ललन सिंह Vs आरसीपी सिंह : आरसीपी सिंह पिछले 28 सालों से नीतीश कुमार के साथ हैं तो वहीं ललन सिंह उनसे भी पहले से नीतीश कुमार से जुड़े हुए हैं. हालांकि बीच में ललन सिंह जरूर विद्रोही हो गए थे. इसके बावजूद ललन सिंह की नीतीश कुमार से नजदीकियां को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. केंद्र में जब से आरसीपी सिंह मंत्री बने हैं, तब से ललन सिंह उनसे नाराज हैं. उत्तर प्रदेश चुनाव से लेकर पार्टी के कई कार्यक्रमों को लेकर भी विरोधाभास दोनों नेताओं का सामने आ चुका है.
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