पटना: बिहार की राजनीति में अगले 24 घंटे काफी अहम हैं. सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की पार्टी जेडीयू (JDU) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी (National Executive Meeting) की बैठक कल दिल्ली में होनी है. इसमें JDU की नीतियों के साथ ही पार्टी के भीतर चल रहे सबसे बड़े गतिरोध पर भी विराम लगेगा. पार्टी का अगला अध्यक्ष कौन होगा, इस बात को लेकर एक राजनीतिक चर्चा पूरे बिहार में है. हालांकि पार्टी का हर नेता यह तो कह रहा है कि पार्टी में कोई विरोध नहीं है लेकिन उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) बनाम आरसीपी सिंह (RCP Singh) को लेकर जो राजनीति चल रही है, उसका पटाक्षेप भी इसी 24 घंटे में होना है. नीतीश कुमार के लिए जदयू को मजबूत करना और नई राजनीतिक रणनीति के तहत पार्टी को दिशा देना भी बड़ी चुनौती है.
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दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन की चर्चा इसलिए भी शुरू हो गई है क्योंकि नीतीश कुमार जब पहली बार जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे, तब भी बैठक दिल्ली में ही राज भवन एनेक्सी में हुई थी. हालांकि यह एक अजीब संयोग ही था कि जिस दिन नीतीश कुमार जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे, उस दिन एनेक्सी में बैठक चल रही थी. उसी समय वहां आग भी लग गई थी.
चर्चा है कि जदयू ने बिहार में बड़े बदलाव की तैयारी की है. इसे अगले 24 घंटों में ही तय किया जाना है. यही तैयारी जदयू को अगली दिशा देगी और उसके आधार को फिर से मजबूती देगी. नीतीश की नीतियों पर जदयू बिहार में खड़ी होगी. बिहार में जदयू को फिर अपने तरीके से मजबूती मिलेगी. इसका पूरा मजमून 24 घंटे के भीतर 31 जुलाई को होने वाली बैठक में तय होगा.
जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में यह तय होना है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन होगा. जदयू के विरोधी दलों की मानें तो नीतीश कुमार जब भी पार्टी की कमान संभालते हैं, बिहार में वह बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाती है. 2014 में हार की जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने खुद को अलग किया तो पार्टी में विभेद खड़ा हो गया था. मांझी ने पार्टी तोड़ दी थी. 2019 और 20 में बातौर राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनाव लड़े. 2019 में मोदी के भरोसे बिहार में नैया पार हो गयी लेकिन 2020 में नीतीश के चेहरे पर जो लड़ाई हुई, उसमें उनकी पार्टी पिछड़ गई.
नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय अध्यक्ष की गद्दी छोड़ दी और आरसीपी सिंह (RCP Singh) को सौंप दिया. अब एक बार फिर इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि आरसीपी सिंह दिल्ली की सियासत में चले गए तो बिहार की राजनीति बगैर राष्ट्रीय अध्यक्ष के कैसे चलेगी. उपेंद्र कुशवाहा पूरे बिहार का चक्कर लगा रहे हैं, पार्टी को मजबूती दे रहे हैं. माना यह भी जा रहा है कि पार्टी को मजबूती देने के लिए उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) जो परिश्रम कर रहे हैं, उसका इनाम उन्हें मिलेगा. दूसरी ओर कहा जा रहा है कि जदयू के भीतर ऐसी खाई बन गयी जिस को पाटने की कवायद तो हर स्तर पर हो रही है लेकिन सवाल हर जगह उठ रहे हैं.
2005 में नीतीश कुमार जब गद्दी पर बैठे थे तो मुद्दे में लालू का विरोध था. 2010 में नीतीश ने सरकार बनाया तो विकास मुद्दा था. 2015 में विकास का विरोध और 2020 फिर बिहार के विकास की सियासत की. 2005 से 2020 तक में जदयू में जो बदलाव हुए, उसने विकास की जो कहानी जदयू के लिए लिखी, उसमें पार्टी आगे जाने के बजाय सीटों की संख्या कम हो गई.
अब बड़ी चुनौती राष्ट्रीय अध्यक्ष को मिलने वाली उस जिम्मेदारी के तहत भी है, जिसमें पार्टी अपने उस जनाधार को सीट संख्या में बदलन चाहती है. अब राष्ट्रीय कार्यकारिणी की होने वाली बैठक में इन तमाम चीजों की चर्चा तो जरूर होगी. पार्टी में जिस विषय को लेकर विभेद और विवाद हैं उसमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद भी है. अब देखना होगा कि अगले 24 घंटे में पार्टी भविष्य के लिए क्या रणनीति तय करती है.