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UP Assembly Elections: जातियों में उलझा पूर्वांचल BJP के लिए बड़ी चुनौती, JDU-VIP की भी होगी परीक्षा

जातियों में उलझा पूर्वांचल (Caste Equation in Purvanchal) जेडीयू और वीआईपी के लिए भी बेहद अहम है, क्योंकि छठे और सातवें चरण में ही इन दोनों दलों ने अपने-अपने उम्मीदवार उतारे हैं. बिहार की सीमा से सटे यूपी के कई इलाकों में इन्हें कामयाबी मिलने की उम्मीद है. वीआईपी चीफ मुकेश सहनी (VIP Chief Mukesh Sahani) ने जहां 102 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की जेडीयू 28 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. हालांकि बीजेपी का दावा है कि पूर्वांचल में किसी का खाता तक नहीं खुलेगा.

जातियों में उलझा पूर्वांचल
जातियों में उलझा पूर्वांचल
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Published : Feb 28, 2022, 7:36 PM IST

Updated : Feb 28, 2022, 11:04 PM IST

पटना: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Elections) के लिए अब तक पांच चरणों में 292 सीटों पर वोटिंग समाप्त हो चुकी है. बाकी बचे दो चरणों में 111 सीटों पर वोटिंग होनी है. इन सीटों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) से लेकर यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ (UP CM Yogi Adityanath) के कंधों पर बीजेपी को जीत दिलाने की बड़ी जिम्मेदारी होगी. वहीं, अब जिस पूर्वांचल में मतदान होना है, वहां बिहार की भी सियासी पार्टियां किस्तम आजमा रही हैं. खास बात ये है कि इनमें से जनता दल यूनाइटेड (JDU) और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) बिहार में बीजेपी की पार्टनर है. जिस जाति आधारित वोट बैंक पर दोनों की नजर है, उनका अगर उन्हें साथ मिल गया तो बीजेपी का खेल बिगड़ सकता है.

ये भी पढ़ें: बिहार में JDU-BJP गठबंधन पर जेडीयू राष्ट्रीय ललन सिंह का बड़ा बयान, पढ़ें क्या कुछ कहा

दरअसल, जातियों में उलझा पूर्वांचल (Caste Equation in Purvanchal) हर सियासी दल के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. छोटे दलों की ताकत पूर्वांचल में 2017 के चुनावों में खूब उभरकर सामने आई थी. तब बीजेपी गठबंधन को तकरीबन 115 सीटें मिली थी, जिसकी दम पर वह सत्ता पर काबिज हुए थे. सपा को 17 सीटें हासिल हुई थी. बसपा के खाते में भी 14 सीटे आई थी. जबकि कांग्रेस को 2 और अन्य के खाते में 16 सीटें मिली थी. 2017 में अमित शाह ने पिछड़ों और अति पिछड़ों को अपने पाले में खड़ा कर एक नया राजनीतिक फार्मूला इजाद किया था, पटेल, मौर्य, चौहान, राजभर और निषाद जैसी जातियों के प्रमुख राजनीतिक चेहरों को अपने साथ लिया था. इस बार उसी फॉर्मूलों को अखिलेश यादव ने लागू कर दिया है. ऐसे में जेडीयू और वीआईपी का मजबूती से चुनाव लड़ना बीजेपी की चिंता बढ़ा सकती है.

जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह (JDU President Lalan Singh) ने यूपी विधानसभा चुनाव में कम से कम 5 सीटों पर जीत का दावा किया है. उन्होंने कहा कि यूपी विधानसभा चुनाव में हमारी पार्टी 28 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. इसमें से पांच सीटों पर जनता दल यूनाइटेड को अपार समर्थन मिल रहा है. य​दि हम 2017 से ही प्रयास करते तो निश्चित रूप से 2022 का परिणाम और व्यापक होता.

उधर, वीआईपी चीफ मुकेश सहनी (VIP Chief Mukesh Sahani) लगातार दावा कर रहे हैं कि वे उत्तर प्रदेश में किंग मेकर की भूमिका में होंगे. वे कहते हैं कि यूपी की 102 सीटों पर उनके प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं. बिहार में उनकी पार्टी किंग मेकर बनकर सरकार बना चुकी है. अब उत्तर प्रदेश में भी उनकी पार्टी किंग मेकर की भूमिका में रहेगी. बीजेपी से टिकट नहीं मिलने के बाद बगावत करने वाले सुरेंद्र नाथ सिंह को भी सहनी ने अपना उम्मीदवार बनाया है. हालांकि गोरखपुर शहर से सीएम योगी के खिलाफ वीआईपी ने कोई प्रत्याशी खड़ा नहीं किया है.

यूपी में किस तरह से जेडीयू और वीआईपी बीजेपी का खेल बिगाड़ने पर तुली हुई है, उसे इस बात से समझा जा सकता है कि बिहार सरकार में सहयोगी विकासशील इंसान पार्टी यूपी चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार को हराने के लिए जेडीयू के साथ आ गई है. उसने जेडीयू के जौनपुर से मल्हनी उम्मीदवार धनंजय सिंह का समर्थन किया है। पार्टी ने धनंजय सिंह का मल्हनी विधानसभा में पूरा समर्थन करने का ऐलान किया है.

हालांकि बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और बिहार के उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन (Bihar Industries Minister Shahnawaz Hussain) ने दावा किया है कि यूपी के पूर्वांचल में बीजेपी के पक्ष में लहर चल रही है. चुनाव से पहले हर बार विपक्षी दल लंबे चौड़े दावे करते रहे हैं लेकिन पूर्वांचल में उनका खाता तक नहीं खुलेगा. इसके बाद उनकी बात भी कोई नहीं सुनेगा. पूर्वांचल में बीजेपी की आंधी और सुनामी है.

"पूर्वांचल से बिहार का बेटी-रोटी का संबंध है. हम लोगों को पूर्वांचल से काफी उम्मीदें हैं. बिहार बीजेपी के नेता लगातार वहां मेहनत कर रहे हैं, पूर्वांचल में हमें बड़ी सफलता मिलने वाली है"- जनक राम, मंत्री सह बीजेपी नेता
"पूर्वांचल में हम मजबूती से सभी सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह चुनाव प्रचार भी कर रहे हैं. हमें बेहतर नतीजे की उम्मीद है"- दामोदर रावत, नेता, जेडीयू
"हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष (मकेश सहनी) इस बारे में बता सकते हैं. हमलोगों के इससे बिल्कुल दूर रखा गया है. वैसे भी हमलोगों का बैक ग्राउंट एनडीए का रहा है. इसलिए हमलोग प्रचार से दूर हैं. जहां तक पूर्वांचल की बात है तो राष्ट्रीय अध्यक्ष ही सही स्थिति बता सकते हैं"- राजू सिंह, विधायक, विकासशील इंसान पार्टी

वहीं, आरजेडी के प्रधान महासचिव आलोक मेहता कहते हैं कि पूर्वांचल में इस बार बीजेपी का पत्ता साफ होने जा रहा है. हम लोगों को पूरी जानकारी है कि यूपी में बीजेपी की सरकार बनने वाली नहीं है. उधर कांग्रेस नेता शकील अहमद को उम्मीद है कि पूर्वांचल में उनकी पार्टी बेहतर प्रदर्शन करेगी, जबकि बीजेपी को वहां निराशा हाथ लगने वाली है.

ये भी पढ़ें: उत्तर प्रदेश में भाजपा को हराना हमारा मुख्य उद्देश्य : मुकेश शाहनी

अब जरा पूर्वांचल के जातीय समीकरण को समझिए. आखिर क्यों जेडीयू और वीआईपी को लगता है कि पूर्वांचल में उन्हें अपेक्षित सफलता मिल सकती है. दरअसल जेडीयू की नजर कुर्मी वोट बैंक पर है और वीआईपी की नजर निषाद अर्थात मल्लाह वोट बैंक पर है. बिहार में पारंपरिक तौर पर कुर्मी जाति मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ रही है, जबकि मल्लाहों का साथ मुकेश सहनी को मिला है.

यूपी में कुर्मा समाज 6 फीसदी है, जो ओबीसी में 35 फीसद के करीब है. सूबे की करीब चार दर्जन विधानसभा सीटें और 8 से 10 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जिन पर कुर्मी समुदाय निर्णायक भूमिका निभाते हैं. यूपी में कुर्मी समाज का प्रभाव 25 जिलों में हैं, लेकिन 16 जिलों में 12 फीसदी से अधिक सियासी ताकत रखते हैं. पूर्वांचल से लेकर बुदंलेखंड और अवध और रुहेलखंड में किसी भी दल का सियासी खेल बनाने और बिगाड़ने की स्थिति में है. वैसे पूर्वांचल क्षेत्र में अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल कुर्मी समाज का चेहरा मानी जाती हैं, जो बीजेपी के साथ हैं. इसके बावजूद जेडीयू को लगता है कि 'नीतीश कुमार के बिहार मॉडल' का उन्हें वहां फायदा मिल सकता है.

वहीं, उत्तर प्रदेश में निषाद समाज 5 फीसदी के करीब है. गंगा के किनारे वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाके में निषाद समुदाय की अच्छी-खासी आबादी है. खुद को 'सन ऑफ मल्लाह' बताने वाले मुकेश सहनी को लगता है कि जिस तरह बिहार में उनको मल्लाहों का साथ मिला, यूपी में भी मिल सकता है. निषाद आरक्षण के मुद्दे को लेकर भी वे काफी मुखर हैं. हालांकि वर्ष 2016 में गठित निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद फिलहाल बीजेपी के साथ हैं. जिनका निषाद, केवट, मल्लाह, बेलदार और बिंद बिरादरियों में अच्छा असर माना जाता है. गोरखपुर, देवरिया, महराजगंज, जौनपुर, संत कबीरनगर, बलिया, भदोही और वाराणसी समेत 16 जिलों में निषाद समुदाय के वोट जीत-हार में बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं.

ये भी पढ़ें: शाहनवाज हुसैन का दावा- 'यूपी के पूर्वांचल में बीजेपी के पक्ष में लहर, विपक्ष का नहीं खुलेगा खाता'

अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद के भरोसे बीजेपी पूर्वांचल में जीत को लेकर आश्वास्त है. ये भी एक बड़ी वजह है कि बीजेपी ने बिहार की सहयोगी जेडीयू और वीआईपी को यूपी में भाव नहीं दिया. जानकार कहते हैं कि जेडीयू और वीआईपी पूर्वांचल में जितना भी जोर लगा ले, उसे बहुत अधिक सफलता नहीं मिलती दिख रही है. अगर कहीं स्थिति मजबूत दिख भी रही है तो उसकी वजह वहां के प्रत्याशी का व्यक्तिगत जनाधार है न कि इन दोनों दलों की मजबूती. पूर्वांचल के इलाके में वास्तव में बीजेपी के लिए चुनौती वे छोटे दल हैं, जो पिछली बार तो उनके साथ थे लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी के साथ चले गए हैं. जिनमें ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा), केशव देव मौर्य का महान दल, कृष्णा पटेल का अपना दल (कमेरावादी) प्रमुख हैं.

ये भी पढ़ें: Assembly Elections In 5 States : JDU से निपटने के लिए BJP की रणनीति में बदलाव, बिहार के कार्यकर्ताओं को मैदान-ए-जंग में उतारा

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पटना: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Elections) के लिए अब तक पांच चरणों में 292 सीटों पर वोटिंग समाप्त हो चुकी है. बाकी बचे दो चरणों में 111 सीटों पर वोटिंग होनी है. इन सीटों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) से लेकर यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ (UP CM Yogi Adityanath) के कंधों पर बीजेपी को जीत दिलाने की बड़ी जिम्मेदारी होगी. वहीं, अब जिस पूर्वांचल में मतदान होना है, वहां बिहार की भी सियासी पार्टियां किस्तम आजमा रही हैं. खास बात ये है कि इनमें से जनता दल यूनाइटेड (JDU) और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) बिहार में बीजेपी की पार्टनर है. जिस जाति आधारित वोट बैंक पर दोनों की नजर है, उनका अगर उन्हें साथ मिल गया तो बीजेपी का खेल बिगड़ सकता है.

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दरअसल, जातियों में उलझा पूर्वांचल (Caste Equation in Purvanchal) हर सियासी दल के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. छोटे दलों की ताकत पूर्वांचल में 2017 के चुनावों में खूब उभरकर सामने आई थी. तब बीजेपी गठबंधन को तकरीबन 115 सीटें मिली थी, जिसकी दम पर वह सत्ता पर काबिज हुए थे. सपा को 17 सीटें हासिल हुई थी. बसपा के खाते में भी 14 सीटे आई थी. जबकि कांग्रेस को 2 और अन्य के खाते में 16 सीटें मिली थी. 2017 में अमित शाह ने पिछड़ों और अति पिछड़ों को अपने पाले में खड़ा कर एक नया राजनीतिक फार्मूला इजाद किया था, पटेल, मौर्य, चौहान, राजभर और निषाद जैसी जातियों के प्रमुख राजनीतिक चेहरों को अपने साथ लिया था. इस बार उसी फॉर्मूलों को अखिलेश यादव ने लागू कर दिया है. ऐसे में जेडीयू और वीआईपी का मजबूती से चुनाव लड़ना बीजेपी की चिंता बढ़ा सकती है.

जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह (JDU President Lalan Singh) ने यूपी विधानसभा चुनाव में कम से कम 5 सीटों पर जीत का दावा किया है. उन्होंने कहा कि यूपी विधानसभा चुनाव में हमारी पार्टी 28 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. इसमें से पांच सीटों पर जनता दल यूनाइटेड को अपार समर्थन मिल रहा है. य​दि हम 2017 से ही प्रयास करते तो निश्चित रूप से 2022 का परिणाम और व्यापक होता.

उधर, वीआईपी चीफ मुकेश सहनी (VIP Chief Mukesh Sahani) लगातार दावा कर रहे हैं कि वे उत्तर प्रदेश में किंग मेकर की भूमिका में होंगे. वे कहते हैं कि यूपी की 102 सीटों पर उनके प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं. बिहार में उनकी पार्टी किंग मेकर बनकर सरकार बना चुकी है. अब उत्तर प्रदेश में भी उनकी पार्टी किंग मेकर की भूमिका में रहेगी. बीजेपी से टिकट नहीं मिलने के बाद बगावत करने वाले सुरेंद्र नाथ सिंह को भी सहनी ने अपना उम्मीदवार बनाया है. हालांकि गोरखपुर शहर से सीएम योगी के खिलाफ वीआईपी ने कोई प्रत्याशी खड़ा नहीं किया है.

यूपी में किस तरह से जेडीयू और वीआईपी बीजेपी का खेल बिगाड़ने पर तुली हुई है, उसे इस बात से समझा जा सकता है कि बिहार सरकार में सहयोगी विकासशील इंसान पार्टी यूपी चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार को हराने के लिए जेडीयू के साथ आ गई है. उसने जेडीयू के जौनपुर से मल्हनी उम्मीदवार धनंजय सिंह का समर्थन किया है। पार्टी ने धनंजय सिंह का मल्हनी विधानसभा में पूरा समर्थन करने का ऐलान किया है.

हालांकि बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और बिहार के उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन (Bihar Industries Minister Shahnawaz Hussain) ने दावा किया है कि यूपी के पूर्वांचल में बीजेपी के पक्ष में लहर चल रही है. चुनाव से पहले हर बार विपक्षी दल लंबे चौड़े दावे करते रहे हैं लेकिन पूर्वांचल में उनका खाता तक नहीं खुलेगा. इसके बाद उनकी बात भी कोई नहीं सुनेगा. पूर्वांचल में बीजेपी की आंधी और सुनामी है.

"पूर्वांचल से बिहार का बेटी-रोटी का संबंध है. हम लोगों को पूर्वांचल से काफी उम्मीदें हैं. बिहार बीजेपी के नेता लगातार वहां मेहनत कर रहे हैं, पूर्वांचल में हमें बड़ी सफलता मिलने वाली है"- जनक राम, मंत्री सह बीजेपी नेता
"पूर्वांचल में हम मजबूती से सभी सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह चुनाव प्रचार भी कर रहे हैं. हमें बेहतर नतीजे की उम्मीद है"- दामोदर रावत, नेता, जेडीयू
"हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष (मकेश सहनी) इस बारे में बता सकते हैं. हमलोगों के इससे बिल्कुल दूर रखा गया है. वैसे भी हमलोगों का बैक ग्राउंट एनडीए का रहा है. इसलिए हमलोग प्रचार से दूर हैं. जहां तक पूर्वांचल की बात है तो राष्ट्रीय अध्यक्ष ही सही स्थिति बता सकते हैं"- राजू सिंह, विधायक, विकासशील इंसान पार्टी

वहीं, आरजेडी के प्रधान महासचिव आलोक मेहता कहते हैं कि पूर्वांचल में इस बार बीजेपी का पत्ता साफ होने जा रहा है. हम लोगों को पूरी जानकारी है कि यूपी में बीजेपी की सरकार बनने वाली नहीं है. उधर कांग्रेस नेता शकील अहमद को उम्मीद है कि पूर्वांचल में उनकी पार्टी बेहतर प्रदर्शन करेगी, जबकि बीजेपी को वहां निराशा हाथ लगने वाली है.

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अब जरा पूर्वांचल के जातीय समीकरण को समझिए. आखिर क्यों जेडीयू और वीआईपी को लगता है कि पूर्वांचल में उन्हें अपेक्षित सफलता मिल सकती है. दरअसल जेडीयू की नजर कुर्मी वोट बैंक पर है और वीआईपी की नजर निषाद अर्थात मल्लाह वोट बैंक पर है. बिहार में पारंपरिक तौर पर कुर्मी जाति मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ रही है, जबकि मल्लाहों का साथ मुकेश सहनी को मिला है.

यूपी में कुर्मा समाज 6 फीसदी है, जो ओबीसी में 35 फीसद के करीब है. सूबे की करीब चार दर्जन विधानसभा सीटें और 8 से 10 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जिन पर कुर्मी समुदाय निर्णायक भूमिका निभाते हैं. यूपी में कुर्मी समाज का प्रभाव 25 जिलों में हैं, लेकिन 16 जिलों में 12 फीसदी से अधिक सियासी ताकत रखते हैं. पूर्वांचल से लेकर बुदंलेखंड और अवध और रुहेलखंड में किसी भी दल का सियासी खेल बनाने और बिगाड़ने की स्थिति में है. वैसे पूर्वांचल क्षेत्र में अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल कुर्मी समाज का चेहरा मानी जाती हैं, जो बीजेपी के साथ हैं. इसके बावजूद जेडीयू को लगता है कि 'नीतीश कुमार के बिहार मॉडल' का उन्हें वहां फायदा मिल सकता है.

वहीं, उत्तर प्रदेश में निषाद समाज 5 फीसदी के करीब है. गंगा के किनारे वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाके में निषाद समुदाय की अच्छी-खासी आबादी है. खुद को 'सन ऑफ मल्लाह' बताने वाले मुकेश सहनी को लगता है कि जिस तरह बिहार में उनको मल्लाहों का साथ मिला, यूपी में भी मिल सकता है. निषाद आरक्षण के मुद्दे को लेकर भी वे काफी मुखर हैं. हालांकि वर्ष 2016 में गठित निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद फिलहाल बीजेपी के साथ हैं. जिनका निषाद, केवट, मल्लाह, बेलदार और बिंद बिरादरियों में अच्छा असर माना जाता है. गोरखपुर, देवरिया, महराजगंज, जौनपुर, संत कबीरनगर, बलिया, भदोही और वाराणसी समेत 16 जिलों में निषाद समुदाय के वोट जीत-हार में बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं.

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अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद के भरोसे बीजेपी पूर्वांचल में जीत को लेकर आश्वास्त है. ये भी एक बड़ी वजह है कि बीजेपी ने बिहार की सहयोगी जेडीयू और वीआईपी को यूपी में भाव नहीं दिया. जानकार कहते हैं कि जेडीयू और वीआईपी पूर्वांचल में जितना भी जोर लगा ले, उसे बहुत अधिक सफलता नहीं मिलती दिख रही है. अगर कहीं स्थिति मजबूत दिख भी रही है तो उसकी वजह वहां के प्रत्याशी का व्यक्तिगत जनाधार है न कि इन दोनों दलों की मजबूती. पूर्वांचल के इलाके में वास्तव में बीजेपी के लिए चुनौती वे छोटे दल हैं, जो पिछली बार तो उनके साथ थे लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी के साथ चले गए हैं. जिनमें ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा), केशव देव मौर्य का महान दल, कृष्णा पटेल का अपना दल (कमेरावादी) प्रमुख हैं.

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Last Updated : Feb 28, 2022, 11:04 PM IST
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