पटना: बिहार में जातीय जनगणना को लेकर जमकर सियासत हो रही है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जहां शुरू से ही इसके पक्ष में हैं, वहीं आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी खूब जोर लगाया है. अब जब साफ हो गया है कि बिहार सरकार अपने खर्च पर जातीय जनगणना कराएगी, तब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर जातीय जनगणना का बिहार मॉडल (Bihar Model of Caste Census) क्या होगा.
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कर्नाटक में जातीय जनगणना की भी खूब चर्चा हो रही है, लेकिन कर्नाटक में जातीय जनगणना का मॉडल फेल हो गया है. वहां की सरकार ने जातीय जनगणना की रिपोर्ट तक जारी नहीं की. कर्नाटक में कई खामियां सामने आईं. लगभग 3 साल लग गए और 192 से अधिक नई जातियां सामने आ गईं. लगभग 80 नई जातियां तो ऐसी थीं, जिनकी जनसंख्या 10 से भी कम थी. 159 करोड़ रुपए की राशि जातीय जनगणना पर कर्नाटक सरकार का खर्च भी हुआ है.
कर्नाटक में जो जातीय जनगणना हुई, उसमें ओबीसी और दलित की संख्या में काफी वृद्धि हो गई तो दूसरी तरफ लिंगायत और वोककलिगा जैसे प्रमुख समुदाय के लोगों की संख्या घट गई और इसी कारण यह रिपोर्ट जारी नहीं किया गया. बिहार में भी जेडीयू और आरजेडी के नेताओं को लगता है कि ओबीसी की जनसंख्या में वृद्धि हुई है और इसलिए जातीय जनगणना पर पूरा जोर है.
बिहार की आबादी 12 करोड़ के आसपास है, ऐसे में जातीय जनगणना कराने में बड़ी राशि खर्च होना तय है. इसके अलावा लंबा वक्त भी लगेगा. विशेषज्ञ भी कहते हैं कि एक बड़ी चुनौती होगी. एएन सिन्हा शोध संस्थान के प्रो. विद्यार्थी विकास का कहना है कि बिहार को पूरे देश में जातीय जनगणना का मॉडल प्रस्तुत करने के लिए रणनीति के तहत काम करना पड़ेगा. कहीं त्रुटि ना हो जाए इसे भी ध्यान रखना होगा, क्योंकि कर्नाटक और दूसरे राज्यों में जातीय जनगणना सफल नहीं हुई. ऐसे कई राज अभी भी जातीय जनगणना को लेकर पहल कर रहे हैं. ऐसे में बिहार में भी बड़ी संख्या में जातियां हैं और वह एक बड़ी चुनौती है.
विद्यार्थी विकास का कहना है कि खर्च 1000 करोड़ के आसपास होगा और समय भी लगेगा, लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी यह भी है कि जनगणना की रिपोर्ट तैयार हो तो वह जारी हो और लागू भी किया जाए.
"बिहार को पूरे देश में जातीय जनगणना का मॉडल प्रस्तुत करने के लिए रणनीति के तहत काम करना पड़ेगा. इस पर खर्च 1000 करोड़ के आसपास होगा और समय भी लगेगा, लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी यह भी है कि जनगणना की रिपोर्ट तैयार हो तो वह जारी हो और लागू भी किया जाए"- विद्यार्थी विकास, विशेषज्ञ, एएन सिन्हा शोध संस्थान
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वहीं, जेडीयू नेता और बिहार सरकार में मंत्री श्रवण कुमार का कहना है कि बिहार ने पहले भी कई ऐसे मॉडल विकास के सामने लाए हैं, जिसे दूसरे राज्यों ने अपनाया है. जातीय जनगणना जरूरी है. इससे विकास योजना बनाने में मदद मिलेगी और बिहार का मॉडल पूरी तरह से सफल होगा, क्योंकि हम लोग पूरी तरह से ठोक बजा कर काम करेंगे.
"बिहार ने पहले भी कई ऐसे मॉडल विकास के सामने लाए हैं, जिसे दूसरे राज्यों ने अपनाया है. जातीय जनगणना का बिहार मॉडल पूरी तरह से सफल होगा, क्योंकि हम लोग पूरी तरह से ठोक बजाकर काम करेंगे"- श्रवण कुमार, मंत्री, बिहार सरकार
- कर्नाटक के मॉडल से सबक लेकर नीतीश कुमार की तैयारी.
- बिहार में 300 के आसपास जातियां होने का अनुमान.
- 1000 करोड़ रुपए के आसपास खर्च हो सकती है.
- केंद्र ने साफ कर दिया है कि राज्य चाहे तो जातीय जनगणना कराएं.
- नीतीश कुमार और लालू यादव को लगता है कि ओबीसी को जातीय जनगणना से लाभ मिल सकता है.
- जातीय जनगणना से 50% से अधिक ओबीसी आबादी को साधने की कोशिश.
- बिहार सरकार अपने संसाधन और अपनी राशि से जातीय जनगणना कराने के लिए जल्द ही सर्वदलीय बैठक करेगी.
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दरअसल, बिहार में जातियों में बड़ी संख्या में उपजातियां हैं और जातीय जनगणना में सबसे बड़ी चुनौती यही है. जानकार भी कहते हैं कि बिहार में डेढ़ सौ के करीब ओबीसी जातियां हैं तो वहीं 60 से अधिक दलित जातियां और सवर्ण जातियों की संख्या भी अच्छी खासी है. 1931 के जातीय जनगणना के आंकड़ों का अभी भी इस्तेमाल होता है.
वहीं, पूरे देश में 1100 से अधिक जातियां हैं, लेकिन समस्या उप जातियों को लेकर है. इसीलिए केंद्र सरकार ने जातीय जनगणना कराने से हाथ खड़े कर दिए, लेकिन अब बिहार सरकार इसकी तैयारी कर रही है. नीतीश कुमार ने पिछले दिनों पत्रकारों से अपने चेंबर में बातचीत में भी साफ कहा था कि हमने अधिकारियों को पूरी तैयारी करने का निर्देश दिया है और बेहतर परिणाम आएंगे. उन्होंने कहा कि इसका फायदा भी समाज को मिलेगा, जातीय जनगणना से किसी को नुकसान नहीं होने वाला है.
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