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अस्तित्व की तलाश में है पटना का हिंदी भवन, सरकारी महकमे ने जमा रखा है कब्जा

अब इस भवन में हिंदी साहित्य से जुड़ी गतिविधियां नहीं होती. हिंदी भवन का संबंध हिंदी से नहीं रहा. पहले इसे चंद्रगुप्त प्रबंधन संस्थान को दिया गया. बाद में यहां समाहरणालय का दफ्तर खोल दिया गया.

पटना का हिंदी भवन.
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Published : Sep 14, 2019, 8:38 PM IST

पटना: हिंदी के विकास और प्रचार-प्रसार के लिए राजधानी पटना में हिंदी भवन बनवाया गया था. राज्यसभा सांसद प्रोफेसर जाबिर हुसैन ने 1996 में अपने सरकारी परिसर को खाली करके इसके निर्माण की परिकल्पना की थी. भवन से हिंदी का विकास तो नहीं हो पाया, सरकारी महकमे ने इसपर जरूर कब्जा जमा लिया.

साहित्यकार और बिहार विधान परिषद के पूर्व सभापति प्रोफेसर जाबिर हुसैन ने 1996 में अपने सरकारी परिसर को खाली कर हिंदी भवन के निर्माण की परिकल्पना की थी. उन्होंने 2003 में राजभाषा समिति की बैठक में अपनी मिर्ची फंड से एक करोड़ की रकम देने का फैसला किया था. 1996 से निर्माण कार्य शुरू हुआ और 2007 में काम पूरा हो गया. साहित्यिक गतिविधियों के लिए यहां वातानुकूलित सभागार, प्रशासनिक भवन, पुस्तकालय, गेस्ट हाउस मिलाकर कुल 60 कमरे बनाए गए.

संवाददाता रंजीत कुमार की रिपोर्ट.

12 साल पहले बना था हिंदी भवन
12 साल पहले बने हिंदी भवन का नाम सुप्रसिद्ध साहित्यकार पद्मश्री फणीश्वर नाथ रेणु के नाम पर रखा गया. अब इस भवन में हिंदी साहित्य से जुड़ी गतिविधियां नहीं होतीं. हिंदी भवन का संबंध हिंदी से नहीं रहा. पहले इसे चंद्रगुप्त प्रबंधन संस्थान को दिया गया. बाद में यहां समाहरणालय का दफ्तर खोल दिया गया.

हिंदी भवन में चलता है सरकारी दफ्तर
चर्चित साहित्यकार रत्नेश्वर का कहना है कि सरकार को भवन का इस्तेमाल हिंदी के विकास के लिए करना चाहिए ना कि वहां सरकारी दफ्तर चलाना चाहिए. रत्नेश्वर ने कहा कि इसके लिए साहित्यकारों ने आंदोलन भी किया, विरोध प्रदर्शन भी हुए लेकिन सरकार ने कोई सुनवाई नहीं की. अगर वह भवन हिंदी साहित्य के लिए इस्तेमाल की जाती तो मुझ जैसे लोगों को खुशी होती.

हिंदी भवन के प्रयोग को लेकर अलग-अलग राय
वहीं प्रसिद्ध साहित्यकार प्रेम कुमार मणि की राय अलग है. उनका कहना है कि किसी भवन या इमारत से भाषा का विकास नहीं होता. ठीक है कि उसका इस्तेमाल हिंदी साहित्य से जुड़ी गतिविधियों के लिए होना चाहिए था लेकिन वह सरकार की संपत्ति है. सरकार जिस रूप में चाहे उसका इस्तेमाल करे.

पटना: हिंदी के विकास और प्रचार-प्रसार के लिए राजधानी पटना में हिंदी भवन बनवाया गया था. राज्यसभा सांसद प्रोफेसर जाबिर हुसैन ने 1996 में अपने सरकारी परिसर को खाली करके इसके निर्माण की परिकल्पना की थी. भवन से हिंदी का विकास तो नहीं हो पाया, सरकारी महकमे ने इसपर जरूर कब्जा जमा लिया.

साहित्यकार और बिहार विधान परिषद के पूर्व सभापति प्रोफेसर जाबिर हुसैन ने 1996 में अपने सरकारी परिसर को खाली कर हिंदी भवन के निर्माण की परिकल्पना की थी. उन्होंने 2003 में राजभाषा समिति की बैठक में अपनी मिर्ची फंड से एक करोड़ की रकम देने का फैसला किया था. 1996 से निर्माण कार्य शुरू हुआ और 2007 में काम पूरा हो गया. साहित्यिक गतिविधियों के लिए यहां वातानुकूलित सभागार, प्रशासनिक भवन, पुस्तकालय, गेस्ट हाउस मिलाकर कुल 60 कमरे बनाए गए.

संवाददाता रंजीत कुमार की रिपोर्ट.

12 साल पहले बना था हिंदी भवन
12 साल पहले बने हिंदी भवन का नाम सुप्रसिद्ध साहित्यकार पद्मश्री फणीश्वर नाथ रेणु के नाम पर रखा गया. अब इस भवन में हिंदी साहित्य से जुड़ी गतिविधियां नहीं होतीं. हिंदी भवन का संबंध हिंदी से नहीं रहा. पहले इसे चंद्रगुप्त प्रबंधन संस्थान को दिया गया. बाद में यहां समाहरणालय का दफ्तर खोल दिया गया.

हिंदी भवन में चलता है सरकारी दफ्तर
चर्चित साहित्यकार रत्नेश्वर का कहना है कि सरकार को भवन का इस्तेमाल हिंदी के विकास के लिए करना चाहिए ना कि वहां सरकारी दफ्तर चलाना चाहिए. रत्नेश्वर ने कहा कि इसके लिए साहित्यकारों ने आंदोलन भी किया, विरोध प्रदर्शन भी हुए लेकिन सरकार ने कोई सुनवाई नहीं की. अगर वह भवन हिंदी साहित्य के लिए इस्तेमाल की जाती तो मुझ जैसे लोगों को खुशी होती.

हिंदी भवन के प्रयोग को लेकर अलग-अलग राय
वहीं प्रसिद्ध साहित्यकार प्रेम कुमार मणि की राय अलग है. उनका कहना है कि किसी भवन या इमारत से भाषा का विकास नहीं होता. ठीक है कि उसका इस्तेमाल हिंदी साहित्य से जुड़ी गतिविधियों के लिए होना चाहिए था लेकिन वह सरकार की संपत्ति है. सरकार जिस रूप में चाहे उसका इस्तेमाल करे.

Intro:हिंदी के विकास और प्रचार प्रसार के लिए राजधानी पटना में हिंदी भवन बनवाया गया था राज्यसभा सांसद प्रोफेसर जाबिर हुसैन ने 1996 में अपने सरकारी परिसर को खाली करके इसके निर्माण की परिकल्पना की थी भवन से हिंदी का विकास तो नहीं हो पाया सरकारी महमके ने जरूर कब्जा जमा लिया ।


Body:साहित्यकार और बिहार विधान परिषद के पूर्व सभापति प्रोफेसर जावेद हुसैन ने 1996 में अपने सरकारी परिसर को खाली कर हिंदी भवन के निर्माण की परिकल्पना की थी उन्होंने 2003 में राजभाषा समिति के बैठक में अपने मिर्ची फंड से एक करोड़ पर देने का फैसला लिया था 1990 से निर्माण कार्य शुरू हुआ और 2007 में कार्य पूरा हुआ साहित्यिक गतिविधियों के लिए यहां वातानुकूलित सभागार प्रशासनिक भवन पुस्तकालय गेस्ट हाउस मिलाकर कुल 60 कमरे बनाए गए


Conclusion:हिंदी भवन का निर्माण हुए 12 वर्ष बीत चुके हैं लेकिन इस भवन में हिंदी साहित्य से जुड़ी गतिविधियां नहीं होती भले ही इसका नामकरण सुप्रसिद्ध साहित्यकार पद्मश्री फणीश्वर नाथ रेनू के नाम पर कर दिया गया हो इतने बड़े नाम से नवाजे जाने के बाद भी हिंदी भवन का संबंध हिंदी से नहीं रहा पहले इसे चंद्रगुप्त प्रबंधन संस्थान को दिया गया बाद में यहां समाहरणालय के दफ्तर खोल दिए गए।
चर्चित साहित्यकार रत्नेश्वर का कहना है कि सरकार को भवन का इस्तेमाल हिंदी के विकास के लिए करना चाहिए ना कि वहां सरकारी दफ्तर खोल दिए जाएं रत्नेश्वर ने कहा कि इसके लिए साहित्यकारों ने आंदोलन भी किया विरोध प्रदर्शन भी हुए लेकिन सरकार ने कोई सुनवाई नहीं की अगर वह भवन हिंदी साहित्य के लिए इस्तेमाल की जाती तो मुझे जैसे लोगों को प्रसन्नता होती ।
प्रसिद्ध साहित्यकार प्रेम कुमार मणि की राय अलग है उनका कहना है कि किसी भवन या इमारत से भाषा का विकास नहीं होता ठीक है कि उसका इस्तेमाल हिंदी साहित्य से जुड़े गतिविधियों के लिए होना चाहिए था लेकिन वह सरकार की संपत्ति है सरकार जिस रूप में चाहे उसका इस्तेमाल करें
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