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'कभी थे पास.. अब दूर' दिख रही BJP-JDU, 'डबल इंजन' से बिहार को क्या हुआ हासिल?

बीजेपी नेताओं के बोल अब सीएम नीतीश (CM Nitish kumar) के निर्णय से राबता नहीं रख रहे हैं. इसलिए तो अब सवाल उठने लगे हैं कि बिहार में जो साथ-साथ रहकर चल रहे थे, अब बदले-बदले से क्यों हैं. जदयू-बीजेपी में तकरार क्यों पैदा हो गए हैं. बिहार में शराबबंदी का मामला (Liquor Ban in Bihar) हो या जाति जनगणना (Caste Census) का, सभी को लेकर इतनी तनातनी क्यों है.

बिहार की सियासत
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Published : Nov 24, 2021, 8:01 PM IST

Updated : Nov 24, 2021, 8:50 PM IST

पटनाः 24 नवंबर 2021 बिहार की राजनीति में कई सवालों के साथ उत्तर खोजता चल रहा है. बिहार में जो साथ वाली राजनीति चली थी, वह पहुंची कहां तक और जो लोग साथ-साथ चले थे, वह पाए क्या? और एक दूसरे से हर राजनीतिक दल यही पूछ रहा है कि हमारे साथ आया क्या? बिहार में एक सवाल इन दिनों आम हो गया है कि केंद्र सरकार के साथ बिहार सरकार के जुड़ने और साथ चलने का क्या फायदा हुआ. जनता दल यूनाइटेड (Janata Dal United) और बीजेपी (BJP) के बीच आज परिस्थितियां बिल्कुल बदली सी हैं.

यह भी पढ़ें- लालू ने नीतीश-मोदी से पूछा- '15 बरस का हिसाब देने में कौनो दिक्कत बा?'

24 नवंबर को राष्ट्रीय जनता दल ने 11 फीट की लालटेन लगाकर उजाला फैलाने का दावा कर दिया. साथ ही यह भी कह दिया कि सरकार हमारी बनेगी, लेकिन जिनकी सरकार बनी है और जो लोग साथ में सरकार चला रहे हैं, उनमें बात कितनी बनी हुई है. और बात बनाने के लिए जिस सियासी सफर को साफ-साफ लेकर चलना था, उसमें किसके हिस्से में क्या आया है, अब इस पर चर्चा भी शुरू हो गई है. और बहस भी कि बिहार में जो कुछ हो रहा है, उसमें विकास के हिस्सेदार और भागीदार कौन-कौन लोग हैं. बिहार में जो कुछ बिगड़ रहा है, उसके लिए जवाबदेह कौन है. क्योंकि सियासत में साथ होने पर विकास का फायदा लेने का कोई भी मौका अगर राजनीतिक दल चाहते हैं, तो बिहार में बिगड़ रही चीजों का भी जवाबदेही साथ-साथ देना ही होगा.

बिहार और केंद्र सरकार के साथ चलने और जुड़ने में साथ क्या आया, इसकी नई राजनीतिक चर्चा शुरू हो गई है. दरअसल, यह चर्चा प्रधानमंत्री द्वारा कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद शुरू हुई. इसकी चर्चा की शुरुआत की वजह भी कृषि कानून पर जदयू का उत्तर रहा था. केंद्र ने जब कृषि कानून बिल लाया था तो बिहार में जदयू के नेताओं ने कहा था कि केंद्र सरकार आज जिस काम को कर रही है, नीतीश कुमार ने 2006 में इस काम को पूरा कर दिया था. नीतीश कुमार ने बिहार में बाजार समितियों को भंग कर दिया था और जब केंद्र सरकार किसानों के लिए खुला बाजार लेकर आए तो जदयू की तरफ से यही कहा गया कि नीतीश कुमार इस काम को 2006 में ही कर दिए थे. जिस काम को केंद्र सरकार आज कर रही है. लेकिन कृषि बिल में खामियां और बिल का विरोध जिस तरीके से रहा, अब केंद्र सरकार ने उसे वापस ले लिया है. बिहार की राजनीति यहीं से एक बार फिर शुरू हो गई है, क्योंकि बिहार बीजेपी के लोग यह कहना शुरू कर चुके हैं कि अगर बिहार में शराबबंदी कानून विवाद का विषय बनता जा रहा है तो आखिर इस विषय पर विचार क्यों नहीं होनी चाहिए.

यह भी पढ़ें- नीतीश का 16 साल वाला बिहार: योजनाओं में अटकी विकास की गाथा, क्रेडिट लेने की होड़ में फोड़ रहे माथा

बिहार में शराबबंदी को लेकर एक बार फिर से समीक्षा और उसकी तैयारी पर बीजेपी के एक नेता ने कह दिया कि केंद्र सरकार ने कृषि कानून बनाया था. उसमें खामियां रह गई तो केंद्र सरकार ने उसे वापस ले लिया. क्योंकि जनहित के मामले में इन चीजों में परेशानी हो रही थी. नीतीश कुमार पर तंज कसते हुए कहा गया कि अगर शराबबंदी से बिहार में दिक्कत आ रही है और बिहार में लोग अपनी जान गंवा रहे हैं और बिहार में शराबबंदी में सरकार फेल है, तो इस कानून की फिर से समीक्षा करनी चाहिए. जरूरत पड़े तो इसमें बदलाव भी करनी चाहिए. बात यहीं नहीं रुकी, बिहार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जयसवाल ने भी कह दिया कि बिहार में शराबबंदी कानून पर समीक्षा होनी जरूरी है. क्योंकि शराब बिहार में बंद नहीं हो रही है.

शराबबंदी कानून पर बिहार बीजेपी के नेताओं का बयान निश्चित तौर पर नीतीश की नीतियों पर एक सवाल है, जो जदयू को नागवार गुजर रहा है. यह तो पहला मामला है, अगर इससे पहले के मामले की बात कर लें, तो जाति जनगणना के मुद्दे पर भी जदयू और बीजेपी के नीतियों में विरोध और विभेद ही दिख रहा है. क्योंकि बीजेपी पहले कह चुकी है कि जाति जनगणना नहीं होगी. नीतीश कुमार जाति जनगणना हो इसके लिए विपक्ष के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री के ऑफिस का परेड तक कर चुके हैं. अब सवाल यह उठ रहा है कि बिहार विकास के जिस रफ्तार को आज पकड़ने की कोशिश कर रहा है, उसमें सियासी विभेद इतना ज्यादा है, उसके रफ्तार की पहिया ही टूट जा रही है.

यह भी पढ़ें- 'लालू-राबड़ी के शासन काल का रोना बंद करे सरकार, अपने 15 सालों का दे हिसाब'

24 नवंबर 2021 को इस विषय की समीक्षा की जरूरत और इस बात को उठाने की वजह भी है. बीजेपी कार्यसमिति की बैठक करके आगे की योजना बना रही है कि उसे बिहार में जाना कैसे है. वहीं 24 नवंबर 2005 से 24 नवंबर 2021 तक बिहार में क्या हुआ, नीतीश की पार्टी इसके लिए समीक्षा कर रही है. हर जिले में कार्यक्रम भी कर रही है. जिसमें बीजेपी शामिल नहीं है. बिहार में जो कुछ हुआ, उसका पूरा श्रेय जदयू इस रूप में लेना चाहती है कि जो कुछ हुआ उसे नीतीश कुमार ने ही किया है. तो नीतीश कुमार से बीजेपी के लोग सवाल उठाना शुरू कर चुके हैं, जो किया गया है उसमें सही है या नहीं. और यहीं से सियासत में एक बार फिर सवाल उठना शुरू हो गया है कि 2005 के 24 नवंबर से 2021 के 24 नवंबर तक किसके साथ आया क्या...

अभी तो यह शुरुआत हुई है, क्योंकि जवाब इन्हीं दोनों दलों को देना है कि बिहार में विकास पहुंचा कहां और बिहार में साथ-साथ चल के हम पहुंचे कहां. साथ-साथ चलने के बाद साफ आया क्या. अब देखने वाली बात है कि 24 नवंबर के बाद जब बिहार की राजनीति और सरकार दोनों आगे बढ़ेगी तो बताने के लिए जदयू के पास होता क्या है और समझने के लिए भाजपा समझती कितनी है. इतनी लंबी दूरी चलने के बाद साथ क्या आया है.

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पटनाः 24 नवंबर 2021 बिहार की राजनीति में कई सवालों के साथ उत्तर खोजता चल रहा है. बिहार में जो साथ वाली राजनीति चली थी, वह पहुंची कहां तक और जो लोग साथ-साथ चले थे, वह पाए क्या? और एक दूसरे से हर राजनीतिक दल यही पूछ रहा है कि हमारे साथ आया क्या? बिहार में एक सवाल इन दिनों आम हो गया है कि केंद्र सरकार के साथ बिहार सरकार के जुड़ने और साथ चलने का क्या फायदा हुआ. जनता दल यूनाइटेड (Janata Dal United) और बीजेपी (BJP) के बीच आज परिस्थितियां बिल्कुल बदली सी हैं.

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24 नवंबर को राष्ट्रीय जनता दल ने 11 फीट की लालटेन लगाकर उजाला फैलाने का दावा कर दिया. साथ ही यह भी कह दिया कि सरकार हमारी बनेगी, लेकिन जिनकी सरकार बनी है और जो लोग साथ में सरकार चला रहे हैं, उनमें बात कितनी बनी हुई है. और बात बनाने के लिए जिस सियासी सफर को साफ-साफ लेकर चलना था, उसमें किसके हिस्से में क्या आया है, अब इस पर चर्चा भी शुरू हो गई है. और बहस भी कि बिहार में जो कुछ हो रहा है, उसमें विकास के हिस्सेदार और भागीदार कौन-कौन लोग हैं. बिहार में जो कुछ बिगड़ रहा है, उसके लिए जवाबदेह कौन है. क्योंकि सियासत में साथ होने पर विकास का फायदा लेने का कोई भी मौका अगर राजनीतिक दल चाहते हैं, तो बिहार में बिगड़ रही चीजों का भी जवाबदेही साथ-साथ देना ही होगा.

बिहार और केंद्र सरकार के साथ चलने और जुड़ने में साथ क्या आया, इसकी नई राजनीतिक चर्चा शुरू हो गई है. दरअसल, यह चर्चा प्रधानमंत्री द्वारा कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद शुरू हुई. इसकी चर्चा की शुरुआत की वजह भी कृषि कानून पर जदयू का उत्तर रहा था. केंद्र ने जब कृषि कानून बिल लाया था तो बिहार में जदयू के नेताओं ने कहा था कि केंद्र सरकार आज जिस काम को कर रही है, नीतीश कुमार ने 2006 में इस काम को पूरा कर दिया था. नीतीश कुमार ने बिहार में बाजार समितियों को भंग कर दिया था और जब केंद्र सरकार किसानों के लिए खुला बाजार लेकर आए तो जदयू की तरफ से यही कहा गया कि नीतीश कुमार इस काम को 2006 में ही कर दिए थे. जिस काम को केंद्र सरकार आज कर रही है. लेकिन कृषि बिल में खामियां और बिल का विरोध जिस तरीके से रहा, अब केंद्र सरकार ने उसे वापस ले लिया है. बिहार की राजनीति यहीं से एक बार फिर शुरू हो गई है, क्योंकि बिहार बीजेपी के लोग यह कहना शुरू कर चुके हैं कि अगर बिहार में शराबबंदी कानून विवाद का विषय बनता जा रहा है तो आखिर इस विषय पर विचार क्यों नहीं होनी चाहिए.

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बिहार में शराबबंदी को लेकर एक बार फिर से समीक्षा और उसकी तैयारी पर बीजेपी के एक नेता ने कह दिया कि केंद्र सरकार ने कृषि कानून बनाया था. उसमें खामियां रह गई तो केंद्र सरकार ने उसे वापस ले लिया. क्योंकि जनहित के मामले में इन चीजों में परेशानी हो रही थी. नीतीश कुमार पर तंज कसते हुए कहा गया कि अगर शराबबंदी से बिहार में दिक्कत आ रही है और बिहार में लोग अपनी जान गंवा रहे हैं और बिहार में शराबबंदी में सरकार फेल है, तो इस कानून की फिर से समीक्षा करनी चाहिए. जरूरत पड़े तो इसमें बदलाव भी करनी चाहिए. बात यहीं नहीं रुकी, बिहार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जयसवाल ने भी कह दिया कि बिहार में शराबबंदी कानून पर समीक्षा होनी जरूरी है. क्योंकि शराब बिहार में बंद नहीं हो रही है.

शराबबंदी कानून पर बिहार बीजेपी के नेताओं का बयान निश्चित तौर पर नीतीश की नीतियों पर एक सवाल है, जो जदयू को नागवार गुजर रहा है. यह तो पहला मामला है, अगर इससे पहले के मामले की बात कर लें, तो जाति जनगणना के मुद्दे पर भी जदयू और बीजेपी के नीतियों में विरोध और विभेद ही दिख रहा है. क्योंकि बीजेपी पहले कह चुकी है कि जाति जनगणना नहीं होगी. नीतीश कुमार जाति जनगणना हो इसके लिए विपक्ष के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री के ऑफिस का परेड तक कर चुके हैं. अब सवाल यह उठ रहा है कि बिहार विकास के जिस रफ्तार को आज पकड़ने की कोशिश कर रहा है, उसमें सियासी विभेद इतना ज्यादा है, उसके रफ्तार की पहिया ही टूट जा रही है.

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24 नवंबर 2021 को इस विषय की समीक्षा की जरूरत और इस बात को उठाने की वजह भी है. बीजेपी कार्यसमिति की बैठक करके आगे की योजना बना रही है कि उसे बिहार में जाना कैसे है. वहीं 24 नवंबर 2005 से 24 नवंबर 2021 तक बिहार में क्या हुआ, नीतीश की पार्टी इसके लिए समीक्षा कर रही है. हर जिले में कार्यक्रम भी कर रही है. जिसमें बीजेपी शामिल नहीं है. बिहार में जो कुछ हुआ, उसका पूरा श्रेय जदयू इस रूप में लेना चाहती है कि जो कुछ हुआ उसे नीतीश कुमार ने ही किया है. तो नीतीश कुमार से बीजेपी के लोग सवाल उठाना शुरू कर चुके हैं, जो किया गया है उसमें सही है या नहीं. और यहीं से सियासत में एक बार फिर सवाल उठना शुरू हो गया है कि 2005 के 24 नवंबर से 2021 के 24 नवंबर तक किसके साथ आया क्या...

अभी तो यह शुरुआत हुई है, क्योंकि जवाब इन्हीं दोनों दलों को देना है कि बिहार में विकास पहुंचा कहां और बिहार में साथ-साथ चल के हम पहुंचे कहां. साथ-साथ चलने के बाद साफ आया क्या. अब देखने वाली बात है कि 24 नवंबर के बाद जब बिहार की राजनीति और सरकार दोनों आगे बढ़ेगी तो बताने के लिए जदयू के पास होता क्या है और समझने के लिए भाजपा समझती कितनी है. इतनी लंबी दूरी चलने के बाद साथ क्या आया है.

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Last Updated : Nov 24, 2021, 8:50 PM IST
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