पटना: महिलाएं यानी आधी आबादी, आधा संसार. इस 'आधा' शब्द का मतलब यहां बराबरी से है. लेकिन अफसोस कि हमारे पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को बराबरी का हक अब तक नहीं मिला.
जरूरी बदलाव करने की सोच रही सरकार
जिंदगी में शादी जैसे अहम पड़ाव के लिए जहां लड़कों की उम्र 21 तो लड़कियों के महज 18 साल को ही शादी के लिए वैध माना गया है. हालांकि इस विषमता को कम करने की दिशा में सरकार अब जरूरी बदलाव करने की सोच रही है.
मातृत्व मृत्यु दर में कमी लाना सरकार की मंशा
केन्द्र सरकार के लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 करने के पीछे की मंशा है मातृत्व मृत्यु दर में कमी लाना. यूनिसेफ की रिपोर्ट कहती है कि भारत में 27 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल तक कि आयु में और 7 फीसदी की 15 साल तक कि उम्र में हो रही है. इसका सीधा असर कम उम्र में मां बनने और मां की प्रसव के दौरान मौत पर पड़ रहा है. इससे देश में मातृत्व मृत्यु दर में बढ़ोतरी हो रही है.
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सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला भी अहम
सरकार के इस आदेश के पीछे सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला भी अहम है. कोर्ट का आदेश कहता है कि लड़कियों को वैवाहिक दुष्कर्म से बचाने के लिए बाल विवाह को पूरी तरह से अवैध घोषित करना चाहिए. हालांकि कोर्ट ने शादी की उम्र पर फैसला लेने का निर्णय सरकार पर छोड़ दिया था. कोर्ट के इसी आदेश के मद्देनजर मोदी सरकार इस पर विचार कर रही है.
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लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम आयु पर विचार
भारत सरकार लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम आयु पर फिर से विचार कर रही है. पीएम मोदी 15 अगस्त को सांकेतिक रूप से इसकी घोषणा भी कर चुके है. अपने लिए किए जा रहे इस बदलाव के बारे में महिलाएं भी सोचती हैं कि ये बेहतर फैसला है. उनका कहना है कि 18 साल में लड़कियां घर-गृहस्थी संभालने लायक नहीं हो पाती. ये उम्र भविष्य बनाने और दुनियादारी सीखने की होती है न की गृहस्थी चलाने की.
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बिहार के लिए फैसला अहम
बिहार जैसे पिछड़े राज्य के लिए ये फैसला बेहद अहम हो सकता है. यहां पहले ही साक्षरता का अभाव है. अधिकतर लोग गरीबी रेखा से नीचे या तो मुफलिसी में जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं. इन हालातों में जागरुकता का भी इतना अभाव है कि लोग अपनी बेटियों की कम उम्र में शादी कर देने से उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव को समझ ही नहीं पाते. समाजशास्त्री भी मानते हैं कि ये फैसला सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि देश की हर बेटी के लिए फायदेमंद होगा.
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सरकार को अहम कदम उठाने की जरुरत
हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि फैसला करना और उस फैसले को अमल में लाने में काफी अंतर है. इसके लिए सरकार को कुछ अहम कदम उठाने की जरुरत है, तभी ये फैसला कारगर होगा. अगर आकड़ों का रुख करें तो, आंकड़े भी बिहार में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के बेबस हालातों की तस्दीक करते हैं.
आंकड़ों पर डालें नजर
⦁ बिहार में 1000 पुरुषों के अनुपात में 918 महिलाएं
⦁ सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के अनुसार मातृ मृत्यु दर 16 अंको की गिरावट
⦁ पहले प्रति 1 लाख गर्भवती महिलाओं में 165 महिलाओं की मौत
⦁ ये आंकड़ा अब गिर कर 1 लाख गर्भवती महिलाओं में 149 पर पहुंचा
⦁ बिहार में महिलाओं के शादी की औसतन आयु 21.7
⦁ यूपी में ये उम्र-सीमा 22.3 है.
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⦁ राज्य की शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत के बराबर
⦁ प्रति हजार बच्चों में 32 शिशुओं की मौत हो जाती है.
⦁ प्रजनन दर में बिहार सबसे आगे है,
⦁ राज्य का प्रजनन प्रतिशत 3.2 है.
⦁ दूसरे बड़े राज्यों की तुलना में ये दर सबसे ज्यादा
फैसले से बेटियों को राहत
आंकड़ों के आधार पर यकीनन ये कहना गलत नहीं होगा कि केंद्र सरकार के इस फैसले से देश में महिलाओं की मौजूदा स्थिति में सुधार तो होगा ही, जनसंख्या पर भी नियंत्रण किया जा सकेगा. साथ ही शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर जैसे अभिशापों से भी बहुत हद तक निजात मिल सकेगी.
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