पटनाः जातीय जनगणना ( Caste Census ) को लेकर देश में बहस जारी है. बिहार से इस बात को लेकर मांग उठ रही है कि केंद्र सरकार राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना कराए. लेकिन केंद्र की ओर से मना कर दिया गया है. अब बिहार के समक्ष अपने संसाधन से जातिगत जनगणना कराने की चुनौती है.
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जातिगत जनगणना को लेकर बिहार में सियासत जारी है. बिहार विधानसभा से 2 बार प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजे जा चुके हैं. लेकिन केंद्र ने जातिगत जनगणना कराने से इनकार कर दिया है. अब बिहार सरकार पर इस बात के लिए दबाव है कि राज्य अपने संसाधन से जातिगत जनगणना कराए. बिहार के मुख्य विपक्षी दल राजद समेत तमाम दलों ने बिहार सरकार पर जातिगत जनगणना को लेकर दबाव बना रखा है. आने वाले कुछ दिनों में जातिगत जनगणना के मसले पर सर्वदलीय बैठक होगी. उसके बाद निर्णय लिया जाएगा. संभव है कि राज्य सरकार अपने खर्चे पर बिहार में जातिगत जनगणना कराए.
आपको बता दें कि बिहार में 8443 पंचायत हैं और 44000 के आसपास गांव हैं. बिहार की आबादी लगभग 13 करोड़ के आसपास है. अनुमान के मुताबिक बिहार सरकार अगर अपने खर्चे पर जातिगत जनगणना कराती है तो 1000 करोड़ से अधिक खर्च होने की संभावना है. 1000 करोड़ सरकार को अपने संसाधनों से जुटाना होगा. क्योंकि केंद्र ने सहायता देने से मना कर दिया है.
'बिहार में हर हाल में जातिगत जनगणना होनी चाहिए. सभी समुदाय के लोगों की गणना की जानी चाहिए. अगर आर्थिक बोझ बढ़ती है तो भी कोई परेशानी नहीं है. समाज में तरक्की के लिए जातिगत जनगणना जरूरी है.' -अख्तरुल इमान, प्रदेश अध्यक्ष, एआईएमआईएम
'जातिगत जनगणना जरूरी है. क्योंकि उसी आधार पर योजनाएं बनती हैं. अगर गणना हो जाएगी तो सरकार को योजना बनाने और क्रियान्वित करने में आसानी होगी. जातिगत जनगणना कराने में केंद्र को आर्थिक मदद करनी चाहिए.' -एजाज अहमद, राजद प्रवक्ता
'भाजपा जात-पात की राजनीति नहीं करती है. हम सबका साथ सबका विकास चाहते हैं. जातिगत जनगणना से केंद्र ने मना कर दिया है. राज्य सरकार अगर चाहे तो अपने खर्चे से करा लें. जहां तक आर्थिक मदद की दरकार है, तो राज्य सरकार केंद्र से बातचीत कर सकती है.' -सिद्धार्थ शंभू, प्रदेश उपाध्यक्ष, भाजपा
'जातिगत जनगणना से बिहार कोई तरक्की की इबारत लिखने नहीं जा रहा है. सिर्फ यह राजनीति का टूल्स है. 1000 करोड़ से ज्यादा खर्च जातिगत जनगणना पर होंगे और आर्थिक बोझ बिहार की भोली-भाली जनता पर बढ़ने वाली है. बिहार पर वैसे ही शराबबंदी के बाद आर्थिक दबाव बढ़ा है. ऐसे में सरकार के सामने मुश्किलें बड़ी हैं.' -डॉ. संजय कुमार, अर्थशास्त्र के जानकार
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