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पुण्यतिथि विशेष: राष्ट्रकवि के बेटे से खास बातचीत, पिता को याद कर हुए भावुक

'रेणुका' और 'हुंकार' में देशभक्ति की भावना इस कदर भरी हुई थी कि घबराकर अंग्रेजों ने इन किताबों पर प्रतिबंध लगा दिया था. इतना ही नहीं, 1962 के युद्ध में सैनिकों की मौत के मुद्दे पर, दिनकर...नेहरू की आलोचना से भी नहीं चूके.

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Published : Apr 24, 2019, 9:01 PM IST

Updated : Apr 24, 2019, 9:09 PM IST

ईटीवी भारत से खास बातचीत

बेगूसराय: भारत के हिंदी साहित्य के इतिहास में रामधारी सिंह दिनकर का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. एक साधारण किसान परिवार में जन्म लेकर राष्ट्रकवि दिनकर की उपाधि, राज्यसभा सदस्य, पद्मभूषण पुरस्कार यह तमाम उपलब्धि उनके व्यक्तित्व और उनकी विद्वता के बल पर उन्होंने अर्जित किये.

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की बुधवार को पुण्यतिथि है. दिनकर का निधन 24 अप्रैल, 1974 को हुआ था. रामधारी सिंह दिनकर राष्ट्रकवि होने के साथ ही जनकवि भी थे. दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार राज्य में पड़ने वाले बेगूसराय जिले के सिमरिया ग्राम में हुआ था. उनकी प्रसिद्ध रचनाएं उर्वशी, रश्मिरथी, रेणुका, संस्कृति के चार अध्याय, हुंकार, सामधेनी, नीम के पत्ते हैं. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर पुत्र ने बताया कि कैसे दिनकर की यादें सिमरिया ग्राम से जुड़ी है.

great poet
रामधारी सिंह दिनकर का पैतृक आवास

'समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध'

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को लोग यूं ही राष्ट्रकवि नहीं कहते. उनकी कविता आज भी हमारे अंदर जोश भर देती है. यही वजह है कि आज भी दिनकर की कविता लोगों की जुबान पर रहती है. बेगूसराय के सिमरिया ग्राम की हर दीवार पर दिनकर की काव्य पंक्तियां लिखीं हुई हैं.

'दो राह समय के रथ का घर्घर नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है.'

जब अंग्रेजों ने डरकर किताबों को किया बैन
'रेणुका' और 'हुंकार' में देशभक्ति की भावना इस कदर भरी हुई थी कि घबराकर अंग्रेजों ने इन किताबों पर प्रतिबंध लगा दिया था. इतना ही नहीं, 1962 के युद्ध में सैनिकों की मौत के मुद्दे पर, दिनकर...नेहरू की आलोचना से भी नहीं चूके. 'परशुराम की प्रतीक्षा' में उन्होंने लिखा-

'घातक है, जो देवता-सदृश दिखता है, लेकिन, कमरे में गलत हुक्म लिखता है,
जिस पापी को गुण नहीं; गोत्र प्यारा है, समझो, उसने ही हमें यहां मारा है.'

बता दें कि दिनकर की मशहूर किताब 'संस्कृति के चार अध्याय' की भूमिका जवाहर लाल नेहरू ने ही लिखी थी.

great poet
यादें..

रामधारी सिंह दिनकर...

  • बीए...इतिहास में किया.
  • हिन्दी के शिक्षक रहें.
  • शिक्षक से लेकर प्रोफेसर तक की नौकरी की.
  • भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे.
  • दिनकर राज्यसभा के सदस्य भी थे.
  • 1972 में काव्य रचना 'उर्वशी' के लिए मिला ज्ञानपीठ पुरस्कार.
  • डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद जी ने 1959 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया.
  • करीब 34 काव्य ओर 61 गद्य की रचनाएं कीं.
  • महान काव्य रचनाओं में रश्मिरथी (1952), परशुराम की प्रतीक्षा, हुंकार, रेणुका, रसवंती, कुरूक्षेत्र (1946) और उर्वशी (1961 ) शामिल है, जिसमें महाभारत के पात्र से लेकर वीर रस तक की सारी कविताएं शामिल हैं.
    बेटे ने साझा की यादें

सिमरिया ग्राम को नहीं भूले....
हालांकि, दिनकर जीवन-भर गांव से बाहर रहे, लेकिन वे अपने गांव को कभी नहीं भूले. उन्होंने अपने गांव को याद करते हुए लिखा था:
'हे जननी जन्मभूमि सतबार नमन, तुझ सा ना सिमरिया घाट अन्य.

बेगूसराय: भारत के हिंदी साहित्य के इतिहास में रामधारी सिंह दिनकर का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. एक साधारण किसान परिवार में जन्म लेकर राष्ट्रकवि दिनकर की उपाधि, राज्यसभा सदस्य, पद्मभूषण पुरस्कार यह तमाम उपलब्धि उनके व्यक्तित्व और उनकी विद्वता के बल पर उन्होंने अर्जित किये.

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की बुधवार को पुण्यतिथि है. दिनकर का निधन 24 अप्रैल, 1974 को हुआ था. रामधारी सिंह दिनकर राष्ट्रकवि होने के साथ ही जनकवि भी थे. दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार राज्य में पड़ने वाले बेगूसराय जिले के सिमरिया ग्राम में हुआ था. उनकी प्रसिद्ध रचनाएं उर्वशी, रश्मिरथी, रेणुका, संस्कृति के चार अध्याय, हुंकार, सामधेनी, नीम के पत्ते हैं. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर पुत्र ने बताया कि कैसे दिनकर की यादें सिमरिया ग्राम से जुड़ी है.

great poet
रामधारी सिंह दिनकर का पैतृक आवास

'समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध'

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को लोग यूं ही राष्ट्रकवि नहीं कहते. उनकी कविता आज भी हमारे अंदर जोश भर देती है. यही वजह है कि आज भी दिनकर की कविता लोगों की जुबान पर रहती है. बेगूसराय के सिमरिया ग्राम की हर दीवार पर दिनकर की काव्य पंक्तियां लिखीं हुई हैं.

'दो राह समय के रथ का घर्घर नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है.'

जब अंग्रेजों ने डरकर किताबों को किया बैन
'रेणुका' और 'हुंकार' में देशभक्ति की भावना इस कदर भरी हुई थी कि घबराकर अंग्रेजों ने इन किताबों पर प्रतिबंध लगा दिया था. इतना ही नहीं, 1962 के युद्ध में सैनिकों की मौत के मुद्दे पर, दिनकर...नेहरू की आलोचना से भी नहीं चूके. 'परशुराम की प्रतीक्षा' में उन्होंने लिखा-

'घातक है, जो देवता-सदृश दिखता है, लेकिन, कमरे में गलत हुक्म लिखता है,
जिस पापी को गुण नहीं; गोत्र प्यारा है, समझो, उसने ही हमें यहां मारा है.'

बता दें कि दिनकर की मशहूर किताब 'संस्कृति के चार अध्याय' की भूमिका जवाहर लाल नेहरू ने ही लिखी थी.

great poet
यादें..

रामधारी सिंह दिनकर...

  • बीए...इतिहास में किया.
  • हिन्दी के शिक्षक रहें.
  • शिक्षक से लेकर प्रोफेसर तक की नौकरी की.
  • भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे.
  • दिनकर राज्यसभा के सदस्य भी थे.
  • 1972 में काव्य रचना 'उर्वशी' के लिए मिला ज्ञानपीठ पुरस्कार.
  • डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद जी ने 1959 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया.
  • करीब 34 काव्य ओर 61 गद्य की रचनाएं कीं.
  • महान काव्य रचनाओं में रश्मिरथी (1952), परशुराम की प्रतीक्षा, हुंकार, रेणुका, रसवंती, कुरूक्षेत्र (1946) और उर्वशी (1961 ) शामिल है, जिसमें महाभारत के पात्र से लेकर वीर रस तक की सारी कविताएं शामिल हैं.
    बेटे ने साझा की यादें

सिमरिया ग्राम को नहीं भूले....
हालांकि, दिनकर जीवन-भर गांव से बाहर रहे, लेकिन वे अपने गांव को कभी नहीं भूले. उन्होंने अपने गांव को याद करते हुए लिखा था:
'हे जननी जन्मभूमि सतबार नमन, तुझ सा ना सिमरिया घाट अन्य.

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Last Updated : Apr 24, 2019, 9:09 PM IST
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