ETV Bharat / business

रूस-सऊदी की तेल प्राइस वार से भारत को हो सकता है फायदा, जानिए पूरा मामला - कच्चे तेल की कीमतों में 1991 के बाद सबसे बड़ी गिरावट

कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती करने के प्रस्ताव पर ओपेक द्वारा रूस को राजी करने में विफल रहने के बाद सउदी अरब ने प्राइस वार शुरु कर दिया. जिससे कच्चे तेल की कीमतों में 1991 के बाद सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिली. कच्चे तेल में इस गिरावट का सीधा असर आने वाले दिनों में भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर भी पड़ेगा.

रूस-सऊदी की तेल प्राइस वार से भारत को हो सकता है फायदा, जानिए पूरा मामला
रूस-सऊदी की तेल प्राइस वार से भारत को हो सकता है फायदा, जानिए पूरा मामला
author img

By

Published : Mar 9, 2020, 12:40 PM IST

सिंगापुर: दुनिया के प्रमुख तेल उत्पादक देशों के बीच उत्पादन में कटौती के लेकर सहमति नहीं बन पाने के बाद सऊदी अरब ने कीमत युद्ध छेड़ दिया है, जिसके बाद कच्चे तेल के दामों में सोमवार को लगभग 30 प्रतिशत की गिरावट हुई. यह 1991 के खाड़ी युद्ध के बाद की सबसे बड़ी गिरावट है.

ब्रेंट क्रूड ऑयल के दाम 31 डॉलर प्रति बैरल जबकि अमेरिकी डबल्यूटीआई ऑयल के दाम 32 डॉलर प्रति बैरल पर आ गए हैं. ब्लूमबर्ग की खबर के अनुसार ओपेक और उसके सहयोगी देशों के बीच तेल का उत्पादन बंद करने को लेकर कोई करार नहीं होने के बाद सऊदी अरब ने रविवार को तेल के दामों में पिछले 20 साल में सबसे बड़ी कटौती करने का ऐलान किया था.

ये भी पढ़ें- भारतीय बैंक पूरी तरह सुरक्षित, चिंता की कोई वजह नहीं: मुख्य आर्थिक सलाहकार

अनुमान जताया जा रहा था कि मुख्य तेल उत्पादकों की बैठक में उत्पादन में भारी कटौती का फैसला किया जाएगा, लेकिन रूस ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. ब्लूमबर्ग के मुताबिक सऊदी अरब ने इसके जवाब में पिछले 20 साल में तेल के दामों में सबसे बड़ी कटौती की है.

उसने एशिया के लिए अप्रैल डिलीवरी की कीमत 4-6 डॉलर प्रति बैरल और अमेरिका के लिए सात अरब डॉलर प्रति बैरल घटा दी. अरैमको अपना अरैबियन लाइट तेल 10.25 डॉलर प्रति बैरल की दर से यूरोप को बेच रही है.

क्यों आई इतनी गिरावट

रूस और तेल निर्यातक देशों का संगठन ओपेक के बीच तेल के उत्पादन में कटौती के प्रस्ताव पर सहमति नहीं बनने के बाद सउदी अरब ने कच्चे तेल का प्रोडक्शन बढ़ा दिया. इसके बाद सऊदी अरब ने अप्रैल के लिए अपने कच्चे तेल की कीमतें छह से आठ डॉलर प्रति बैरल तक घटा दीं और इसका सीधा असर तेल के बाजार पर देखने को मिला.

बता दें कि खाड़ी युद्ध के दौरान 17 जनवरी, 1991 के बाद ये सबसे बड़ी प्रतिशत गिरावट और 12 फरवरी, 2016 के बाद कीमतों में सबसे बड़ी गिरावट है.

क्या है पूरा मामला

बता दें कि कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप की वजह से दुनियाभर में तेल की मांग में गिरावट हुई. जिसे देखते हुए ओपेक देश कोरोना वायरस के कारण तेल के दाम पर पड़े असर को थामने के लिये उत्पादन में कटौती करना चाह रहे थे और इसे लेकर शुक्रवार को रूस के साथ उसकी बैठक हुई थी लेकिन रूस ने कोरोना वायरस के प्रभाव से निपटने के लिये आपूर्ति में कमी से इनकार कर दिया.

सऊदी-रूस के बीच तेल की लड़ाई से भारत को हो सकता है फायदा
तेल की वैश्विक गिरावट से भारत के लिए अच्छी अच्छी खबर हो सकती है. कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से भारत में पेट्रोल-डीजल 5-6 रुपये प्रति लीटर सस्ता हो सकता है. बता दें कि भारत अपनी घरेलू तेल आवश्यकताओं का 83 प्रतिशत आयात करता है. विश्लेषकों ने कहा कि अगर 2020 तक मौजूदा कीमतों में बढ़ोतरी होती है तो देश अपने तेल आयात बिल में 30-40 बिलियन डॉलर से अधिक की बचत कर सकता है.

रविवार को कोटक महिंद्रा बैंक के प्रबंध निदेशक और सीईओ उदय कोटक ने एक ट्वीट में कहा, "अशांति और वायरस के बीच, कुछ अच्छी खबर तेल 45 डॉलर प्रति बैरल पर है. हाल ही में 20 डॉलर की गिरावट से भारत में प्रति वर्ष 30 डॉलर बिलियन की बचत होती है. विकास को बढ़ावा देने के लिए नीति का लाभ उठाना चाहिए."

सिंगापुर: दुनिया के प्रमुख तेल उत्पादक देशों के बीच उत्पादन में कटौती के लेकर सहमति नहीं बन पाने के बाद सऊदी अरब ने कीमत युद्ध छेड़ दिया है, जिसके बाद कच्चे तेल के दामों में सोमवार को लगभग 30 प्रतिशत की गिरावट हुई. यह 1991 के खाड़ी युद्ध के बाद की सबसे बड़ी गिरावट है.

ब्रेंट क्रूड ऑयल के दाम 31 डॉलर प्रति बैरल जबकि अमेरिकी डबल्यूटीआई ऑयल के दाम 32 डॉलर प्रति बैरल पर आ गए हैं. ब्लूमबर्ग की खबर के अनुसार ओपेक और उसके सहयोगी देशों के बीच तेल का उत्पादन बंद करने को लेकर कोई करार नहीं होने के बाद सऊदी अरब ने रविवार को तेल के दामों में पिछले 20 साल में सबसे बड़ी कटौती करने का ऐलान किया था.

ये भी पढ़ें- भारतीय बैंक पूरी तरह सुरक्षित, चिंता की कोई वजह नहीं: मुख्य आर्थिक सलाहकार

अनुमान जताया जा रहा था कि मुख्य तेल उत्पादकों की बैठक में उत्पादन में भारी कटौती का फैसला किया जाएगा, लेकिन रूस ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. ब्लूमबर्ग के मुताबिक सऊदी अरब ने इसके जवाब में पिछले 20 साल में तेल के दामों में सबसे बड़ी कटौती की है.

उसने एशिया के लिए अप्रैल डिलीवरी की कीमत 4-6 डॉलर प्रति बैरल और अमेरिका के लिए सात अरब डॉलर प्रति बैरल घटा दी. अरैमको अपना अरैबियन लाइट तेल 10.25 डॉलर प्रति बैरल की दर से यूरोप को बेच रही है.

क्यों आई इतनी गिरावट

रूस और तेल निर्यातक देशों का संगठन ओपेक के बीच तेल के उत्पादन में कटौती के प्रस्ताव पर सहमति नहीं बनने के बाद सउदी अरब ने कच्चे तेल का प्रोडक्शन बढ़ा दिया. इसके बाद सऊदी अरब ने अप्रैल के लिए अपने कच्चे तेल की कीमतें छह से आठ डॉलर प्रति बैरल तक घटा दीं और इसका सीधा असर तेल के बाजार पर देखने को मिला.

बता दें कि खाड़ी युद्ध के दौरान 17 जनवरी, 1991 के बाद ये सबसे बड़ी प्रतिशत गिरावट और 12 फरवरी, 2016 के बाद कीमतों में सबसे बड़ी गिरावट है.

क्या है पूरा मामला

बता दें कि कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप की वजह से दुनियाभर में तेल की मांग में गिरावट हुई. जिसे देखते हुए ओपेक देश कोरोना वायरस के कारण तेल के दाम पर पड़े असर को थामने के लिये उत्पादन में कटौती करना चाह रहे थे और इसे लेकर शुक्रवार को रूस के साथ उसकी बैठक हुई थी लेकिन रूस ने कोरोना वायरस के प्रभाव से निपटने के लिये आपूर्ति में कमी से इनकार कर दिया.

सऊदी-रूस के बीच तेल की लड़ाई से भारत को हो सकता है फायदा
तेल की वैश्विक गिरावट से भारत के लिए अच्छी अच्छी खबर हो सकती है. कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से भारत में पेट्रोल-डीजल 5-6 रुपये प्रति लीटर सस्ता हो सकता है. बता दें कि भारत अपनी घरेलू तेल आवश्यकताओं का 83 प्रतिशत आयात करता है. विश्लेषकों ने कहा कि अगर 2020 तक मौजूदा कीमतों में बढ़ोतरी होती है तो देश अपने तेल आयात बिल में 30-40 बिलियन डॉलर से अधिक की बचत कर सकता है.

रविवार को कोटक महिंद्रा बैंक के प्रबंध निदेशक और सीईओ उदय कोटक ने एक ट्वीट में कहा, "अशांति और वायरस के बीच, कुछ अच्छी खबर तेल 45 डॉलर प्रति बैरल पर है. हाल ही में 20 डॉलर की गिरावट से भारत में प्रति वर्ष 30 डॉलर बिलियन की बचत होती है. विकास को बढ़ावा देने के लिए नीति का लाभ उठाना चाहिए."

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.