नई दिल्ली: जैसा की उम्मीद थी सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2019-20 के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.8 प्रतिशत कर दिया है. पहले इसके 3.3 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था.
पिछले साल जुलाई में पेश किए गए अपने पहले बजट में सीतारमण ने अनुमान लगाया था कि केंद्र सरकार को 7.03 लाख करोड़ रुपये उधार लेने की आवश्यकता होगी. हालांकि, संशोधित अनुमानों के अनुसार केंद्र सरकार ने अपने बजट अनुमान से इस वर्ष 63,000 करोड़ रुपये अधिक उधार लिए हैं.
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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2020-21 का बजट पेश करते हुए कहा, "हम 2019-20 के संशोधित अनुमान में राजकोषीय घाटा 3.8 प्रतिशत कर रहे हैं. 2020-21 में इसका बजट अनुमान 3.5 प्रतिशत रखा गया है."
उन्होंने कहा कि यह अनुमान सरकार की वृहद आर्थिक स्थिरता को लेकर प्रतिबद्धता के अनुरूप है. सरकार ने वित्तीय दायित्व एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) कानून के तहत बचाव धारा का इस्तेमाल किया है. इसके तहत किसी दबाव के समय में राजकोषीय घाटे की रूपरेखा में ढील दी जा सकती है.
वित्त मंत्री ने कहा कि एफआरबीएम कानून की धारा 4 (2) अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक सुधारों तथा गैर अनुमानित वित्तीय प्रभाव की स्थिति में राजकोषीय घाटे के लक्ष्य से हटने की व्यवस्था देती है. बचाव की यह धारा सरकार को राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को 0.5 प्रतिशत अंक तक बढ़ाने की अनुमति देती है.
बजट में व्यापक रूप से अनुमान लगाया गया था कि सरकार राजकोषीय समेकन के मार्ग पर नहीं टिकेगी लेकिन बजट में केंद्र सरकार के वित्त की कमजोरी की सही सीमा का पता चल गया. केंद्र सरकार का शुद्ध कर संग्रह केवल सात महीने पहले दिए गए बजट अनुमानों से 1.46 लाख करोड़ रुपये कम था.
इस कारण निर्मला सीतारमण को राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में बढ़ोतरी करना पड़ा. इसके अलावा अर्थव्यवस्था इतनी नाजुक है कि उसने वित्तीय वर्ष 2019-20 और 2020-21 में लगातार दो वर्षों तक विचलन का उपयोग करने का फैसला किया.
राजकोषीय घाटा क्या है?
सरकार की कुल आय और व्यय में अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है. इससे पता चलता है कि सरकार को कामकाज चलाने के लिए कितनी उधारी की जरूरत होगी. कुल राजस्व का हिसाब-किताब लगाने में उधारी को शामिल नहीं किया जाता है. राजकोषीय घाटा आमतौर पर राजस्व में कमी या पूंजीगत व्यय में अत्यधिक वृद्धि के कारण होता है. वित्तवर्ष 2019-20 में सरकार 7.67 लाख करोड़ रुपये उधार लेगी जो कि सरकार के कुल बजटीय खर्च का 28 प्रतिशत से अधिक है. बजट के संशोधित अनुमान के अनुसार यह कुल 26.99 लाख करोड़ रुपये आंकी गई है.
एक उच्च राजकोषीय घाटे का मतलब है कि सरकार अपने कर और गैर-कर राजस्व प्राप्तियों की तुलना में काफी अधिक पैसा खर्च कर रही है जो उसके ऋण बोझ को बढ़ाएगा.
एफआरबीएम अधिनियम के तहत राजकोषीय घाटे के विचलन की अनुमति क्या है?
एनके सिंह समिति जिसका गठन 2004 के एफआरबीएम अधिनियम के कामकाज की समीक्षा करने के लिए किया गया था. समिति ने वित्तीय वर्ष में अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण की वजह से 50 आधार अंकों के कम का सुझाव दिया ताकि सरकार को अर्थव्यवस्था या संरचना में संरचनात्मक परिवर्तनों के कारण कठिन परिस्थितियों से निपटने की अनुमति मिल सके.
हालांकि एनके सिंह पैनल असाधारण परिस्थितियों में राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को शिथिल करने की आवश्यकता पर विचार कर रहे थे लेकिन लक्ष्य को कम करने के लिए सरकार की शक्ति को बढ़ाने के लिए यह आवश्यक भी था.
सीतारमण ने आम बजट 2020-21 संसद में पेश करते हुए कहा, "राजकोषीय दायित्व एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम में अप्रत्याशित वित्तीय पहलुओं से अर्थव्यवसथा में संरचनात्मक सुधारों के कारण अनुमानित राजकोषीय घाटा से विचलन के लिए प्रोत्साहन व्यवस्था का प्रावधान है."
उन्होंने कहा, "इसलिए मैंने वित्त वर्ष 2019-20 के संशोधित अनुमान और बजटीय अनुमान दोनों के लिए एफआरबीएम अधिनियम की धारा 4 (3) के अनुसार, 0.5 फीसदी का विलचन लिया है."
सीताररमण ने शनिवार को अपने बजट भाषण में कहा कि सुस्ती के कारण वित्तीय व्यवस्था खराब होने और बाजार का मनोबल टूटने की स्थिति में सरकार आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए अपने राजकोषीय समेकन नीति में आपात राहत उपबंध का उपयोग करना चाहती है. यह कदम इसलिए महत्वपूर्ण है कि जीएसटी संग्रह पूर्व अनुमान के मुकाबले घट गया है. वहीं, निवेश और रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए सरकार ने कॉरपोरेट कर में कटौती की है.
(लेखक - कृष्णानन्द त्रिपाठी, वरिष्ट पत्रकार)