हैदराबाद: जैसे-जैसे कोरोनावायरस जंगल की आग की तरह फैल रहा है. वैसे-वैसे व्यापार और वाणिज्य पर इसका प्रभाव बढ़ते जा रहा है. सियोल स्थित हुंडई ने तेरह ऑटोमोबाइल संयंत्रों में से सात को बंद कर दिया है क्योंकि चीन से स्पेयर पार्ट्स दक्षिण कोरिया के तटों तक नहीं पहुंच पा रहें हैं.
भारत की ओर से चीन को जो भी विभिन्न प्रकार के निर्यात जैसे कि आंध्र प्रदेश से मिर्च और महाराष्ट्र से कपास जाना कम हो था वो अब कम हो गया है. जिससे स्थानीय किसान और उद्योग प्रभावित हो रहें हैं.
उत्तर पूर्वी राज्य मणिपुर ने चीन, म्यांमार और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से पैकेज्ड खाद्य पदार्थों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है जो एफएसएसएआई नियमों का पालन नहीं करते हैं.
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यह स्पष्ट है कि यदि घातक वायरस और फैल गया तो इससे चीन ही नहीं बल्कि इससे जुड़ें देश जो यहां से व्यापार, वाणिज्य और पर्यटन जैसे क्षेत्रों में संबंध रखते हैं वे भी प्रभावित होंगे.
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने गुरुवार को मौद्रिक नीति पर संवाददाताओं से बात करते हुए सुझाव दिया कि अर्थव्यवस्था पर वायरस के प्रभाव से निपटने के लिए एक आकस्मिक योजना तैयार की जानी चाहिए.
सार्स से भी ज्यादा खतरनाक है कोरोना
साल 2003 में आईएचएस मार्केट की रिपोर्ट के अनुसार कोरोनोवायरस का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर सार्स (गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम) के प्रकोप से बड़ा नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.
सार्स के समय चीन छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी. जिसका विश्व जीडीपी का केवल 4.2 प्रतिशत था. चीन अब दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है जो वैश्विक जीडीपी का 16.3 प्रतिशत है.
इसलिए चीनी अर्थव्यवस्था में आई कोई भी मंदी सिर्फ उसे ही नहीं बल्कि दुनिया भर को परेशान करेंगी.
एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों के अलावा, मध्य पूर्व के तेल पर चीन की उच्च निर्भरता के कारण मध्य पूर्व के देश भी प्रभावित होंगे.
साल 2019 में चीन की तेल मांग प्रति दिन 13.9 मिलियन बैरल यानि विश्व बाजार में 14 प्रतिशत थी. जबकि 2003 में यह 5.6 मिलियन बैरल प्रति दिन थी जो कि उस समय दुनिया की मांग का 7 प्रतिशत थी.
अगर चीन में मौजूदा हालात आगे भी जारी रहे और जल्द से जल्द इस महामारी का उपाया नहीं खोजा गया तो जनवरी-मार्च में वैश्विक वास्तविक जीडीपी में 0.8 प्रतिशत और अप्रैल-जून में 0.5 प्रतिशत की कमी होने की आशंका है.
(पीटीआई-भाषा के इनपुट्स के साथ)