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बिहार में AES : 'नन्ही बच्ची की तोतली बोली की गूंज अब घर में धीमी हो गई है'

एसकेएमसीएच के शिशु रोग विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ. गोपाल शंकर सहनी कहते हैं कि इस बीमारी से उबरने वाले बच्चों को मानसिक रूप से कमजोर होने का डर बना रहता है. सहनी के मुताबिक बीमारी का प्रारंभ में पता चल जाए तो पीड़ित की जान बचाई जा सकती है. मरने वाले बच्चों में से अधिकांश की उम्र एक से सात साल के बीच है.

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Published : Jun 27, 2019, 9:40 AM IST

बिलखते परिजन.

मुजफ्फरपुर: बिहार के मुजफ्फरपुर सहित करीब 20 जिलों में फैले एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के कारण अभिभावक जहां अपने बच्चों को खोने को लेकर भयभीत हैं, वहीं इस बीमारी से पीड़ित बच्चे अपना बचपन खो रहे हैं. इस बीमारी से बचकर अस्पताल से घर लौटे बच्चों की स्थिति ठीक नहीं है। पहले से ही गरीबी और कुपोषण के शिकार इन बच्चों को एईएस ने पूरी तरह तोड़ दिया है.
मुजफ्फरपुर जिले के गायघाट के मंतोष कुमार अपनी पांच वर्षीय बेटी श्वेता का बचपन लौटाने के लिए अस्पताल, मंदिर-मस्जिद से लेकर झाड़-फूंक करने वाले ओझाओं के दरवाजे पर दस्तक दे चुके हैं, लेकिन श्वेता अपनी बचपन वाली ठिठोली और चंचलता भूल गई है.

मंतोष के मन में मलाल
मंतोष को इस बात का मलाल है कि उसकी नन्ही बच्ची की तोतली बोली की गूंज अब घर में धीमी हो गई है, परंतु उन्हें इस बात का संतोष भी है कि भगवान की कृपा से उनकी बच्ची कम से कम बच गई है. श्वेता उन बच्चों में से एक है, जिसे एक्यूट इंसेफलाइटिस सिन्ड्रोम (एईएस) ने अपनी चपेट में ले लिया था.

encephalitis syndrome
चिकित्साधीन बच्चा.

श्वेता को ले गए ओझा-गुणी के पास
मंतोष कहते हैं, '17 जून को श्वेता को मुजफ्फरपुर के श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एसकेएमसीएच) इलाज के लिए ले जाया गया था और उसे 22 जून को छुट्टी दे दी गई.' उन्होंने कहा, 'श्वेता को तो घर ले आए, लेकिन उसकी हालत ठीक नहीं हुई. दूसरे ही दिन उसकी हालत एकबार फिर खराब हो गई. उसे ओझा-गुणी के पास ले गए, परंतु कुछ नहीं हुआ.'
यह स्थिति सिर्फ श्वेता की ही नहीं है. वे सभी बच्चे इस स्थिति से गुजर रहे हैं, जो एईएस का इलाज करा कर अस्पताल से घर लौट आए हैं. मुजफ्फरपुर, सारण, वैशाली जिलों में कई बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें एईएस ने तोड़ कर रख दिया है.

encephalitis syndrome
चिकित्साधीन बच्चे को निहारती मां.

पिंकी की हालत बेहद नाजुक
मीनापुर के पिंकी की हालत कुछ ऐसी ही है. पिंकी अभी भी मुजफ्फरपुर के एक अस्पताल में एईएस से लड़ रही है, और वह शारीरिक और मानसिक रूप से बिल्कुल कमजोर हो गई है. पिंकी के परिजन कहते हैं, 'पिंकी शाम को लीची बागान गई थी और रात में भोजन नहीं किया और देर रात बेहोश हो गई. जब होश आया तब वह कमजोर नजर आने लगी.'

चिकित्सकों को दिए गए हैं आवश्यक निर्देश
एईएस के फैलने के बाद स्वसंसेवी संस्थाओं, सरकार और नेताओं द्वारा प्रभावित क्षेत्रों में राहत और जागरूकता अभियान चलाने की बात कही जा रही है, लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि अगर सरकार वर्षों से इस बीमारी से निपटने की कोशिश कर रही है, फिर भी इस बीमारी से बच्चों का बचपन क्यों बर्बाद हो रहा है.
बता दें कि केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मुजफ्फरपुर में एसकेएमसीएच का दौरा कर चिकित्सकों को आवश्यक निर्देश दे चुके हैं.

encephalitis syndrome
चिकित्साधीन बच्चे को निहारती मां.

अधिकांश मृत बच्चों की उम्र 1 से 7 साल के बीच
एसकेएमसीएच के शिशु रोग विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ. गोपाल शंकर सहनी कहते हैं कि इस बीमारी से उबरने वाले बच्चों को मानसिक रूप से कमजोर होने का डर बना रहता है सहनी के मुताबिक बीमारी का प्रारंभ में पता चल जाए तो पीड़ित की जान बचाई जा सकती है.
गौरतलब है कि 15 वर्ष तक की उम्र के बच्चे इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं, और मरने वाले बच्चों में से अधिकांश की उम्र एक से सात साल के बीच है.

encephalitis syndrome
बच्चे के साथ उसकी मां.

175 से ज्यादा बच्चों की मौत
उल्लेखनीय है कि इस वर्ष अब तक 175 से ज्यादा बच्चों की मौत एईएस से हो चुकी है. एसकेएमसीएच में अबतक 436 एईएस पीड़ित बच्चे इलाज के लिए पहुंच चुके हैं। इनमें से 111 बच्चों की मौत हो गई है, जबकि 290 बच्चों को इलाज के बाद छुट्टी दे दी गई है.

मुजफ्फरपुर: बिहार के मुजफ्फरपुर सहित करीब 20 जिलों में फैले एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के कारण अभिभावक जहां अपने बच्चों को खोने को लेकर भयभीत हैं, वहीं इस बीमारी से पीड़ित बच्चे अपना बचपन खो रहे हैं. इस बीमारी से बचकर अस्पताल से घर लौटे बच्चों की स्थिति ठीक नहीं है। पहले से ही गरीबी और कुपोषण के शिकार इन बच्चों को एईएस ने पूरी तरह तोड़ दिया है.
मुजफ्फरपुर जिले के गायघाट के मंतोष कुमार अपनी पांच वर्षीय बेटी श्वेता का बचपन लौटाने के लिए अस्पताल, मंदिर-मस्जिद से लेकर झाड़-फूंक करने वाले ओझाओं के दरवाजे पर दस्तक दे चुके हैं, लेकिन श्वेता अपनी बचपन वाली ठिठोली और चंचलता भूल गई है.

मंतोष के मन में मलाल
मंतोष को इस बात का मलाल है कि उसकी नन्ही बच्ची की तोतली बोली की गूंज अब घर में धीमी हो गई है, परंतु उन्हें इस बात का संतोष भी है कि भगवान की कृपा से उनकी बच्ची कम से कम बच गई है. श्वेता उन बच्चों में से एक है, जिसे एक्यूट इंसेफलाइटिस सिन्ड्रोम (एईएस) ने अपनी चपेट में ले लिया था.

encephalitis syndrome
चिकित्साधीन बच्चा.

श्वेता को ले गए ओझा-गुणी के पास
मंतोष कहते हैं, '17 जून को श्वेता को मुजफ्फरपुर के श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एसकेएमसीएच) इलाज के लिए ले जाया गया था और उसे 22 जून को छुट्टी दे दी गई.' उन्होंने कहा, 'श्वेता को तो घर ले आए, लेकिन उसकी हालत ठीक नहीं हुई. दूसरे ही दिन उसकी हालत एकबार फिर खराब हो गई. उसे ओझा-गुणी के पास ले गए, परंतु कुछ नहीं हुआ.'
यह स्थिति सिर्फ श्वेता की ही नहीं है. वे सभी बच्चे इस स्थिति से गुजर रहे हैं, जो एईएस का इलाज करा कर अस्पताल से घर लौट आए हैं. मुजफ्फरपुर, सारण, वैशाली जिलों में कई बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें एईएस ने तोड़ कर रख दिया है.

encephalitis syndrome
चिकित्साधीन बच्चे को निहारती मां.

पिंकी की हालत बेहद नाजुक
मीनापुर के पिंकी की हालत कुछ ऐसी ही है. पिंकी अभी भी मुजफ्फरपुर के एक अस्पताल में एईएस से लड़ रही है, और वह शारीरिक और मानसिक रूप से बिल्कुल कमजोर हो गई है. पिंकी के परिजन कहते हैं, 'पिंकी शाम को लीची बागान गई थी और रात में भोजन नहीं किया और देर रात बेहोश हो गई. जब होश आया तब वह कमजोर नजर आने लगी.'

चिकित्सकों को दिए गए हैं आवश्यक निर्देश
एईएस के फैलने के बाद स्वसंसेवी संस्थाओं, सरकार और नेताओं द्वारा प्रभावित क्षेत्रों में राहत और जागरूकता अभियान चलाने की बात कही जा रही है, लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि अगर सरकार वर्षों से इस बीमारी से निपटने की कोशिश कर रही है, फिर भी इस बीमारी से बच्चों का बचपन क्यों बर्बाद हो रहा है.
बता दें कि केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मुजफ्फरपुर में एसकेएमसीएच का दौरा कर चिकित्सकों को आवश्यक निर्देश दे चुके हैं.

encephalitis syndrome
चिकित्साधीन बच्चे को निहारती मां.

अधिकांश मृत बच्चों की उम्र 1 से 7 साल के बीच
एसकेएमसीएच के शिशु रोग विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ. गोपाल शंकर सहनी कहते हैं कि इस बीमारी से उबरने वाले बच्चों को मानसिक रूप से कमजोर होने का डर बना रहता है सहनी के मुताबिक बीमारी का प्रारंभ में पता चल जाए तो पीड़ित की जान बचाई जा सकती है.
गौरतलब है कि 15 वर्ष तक की उम्र के बच्चे इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं, और मरने वाले बच्चों में से अधिकांश की उम्र एक से सात साल के बीच है.

encephalitis syndrome
बच्चे के साथ उसकी मां.

175 से ज्यादा बच्चों की मौत
उल्लेखनीय है कि इस वर्ष अब तक 175 से ज्यादा बच्चों की मौत एईएस से हो चुकी है. एसकेएमसीएच में अबतक 436 एईएस पीड़ित बच्चे इलाज के लिए पहुंच चुके हैं। इनमें से 111 बच्चों की मौत हो गई है, जबकि 290 बच्चों को इलाज के बाद छुट्टी दे दी गई है.

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