हैदराबाद : निमोनिया (pneumonia) एक ऐसा संक्रमण है जो हर उम्र के लोगों को प्रभावित करता है, लेकिन बच्चों पर इस संक्रमण का प्रभाव ज्यादा नजर आता है. दुनिया भर में लोगों को निमोनिया के लिए सचेत तथा जागरूक करने के उद्देश्य से 12 नवंबर को विश्व निमोनिया दिवस मनाया जाता है.
ध्यान न देने पर जानलेवा हो सकता है निमोनिया
क्या आप जानते हैं कि वैश्विक स्तर पर निमोनिया पांच साल से कम आयु वर्ग के बच्चों की मृत्यु का प्रमुख कारण है! यही नही निमोनिया से वर्ष 2015 में पांच वर्ष से कम आयु वर्ग के 9,20,136 बच्चों की मृत्यु हुई थी.
वहीं वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017 में यह आंकड़ा 8,08,694 था. हालांकि सही समय पर जांच और इलाज की मदद से निमोनिया को गंभीर होने से आसानी से रोका जा सकता है लेकिन इसके बावजूद पूरी दुनिया में हर बीस सेकंड में इस संक्रमण से एक बच्चे की मृत्यु हो जाती है. कहने को निमोनिया एक सामान्य फेफड़ों का संक्रमण है, लेकिन यह किसी भी उम्र में जीवन के लिए खतरा हो सकता है.
इसी खतरे को लेकर दुनिया को आगाह करने तथा इससे बचाव के लिए लक्षणों और सावधानियों को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए दुनिया भर में हर साल 12 नवंबर को विश्व निमोनिया दिवस मनाया जाता है.
क्या है निमोनिया
निमोनिया फेफड़ों में होने वाला संक्रमण है, जो शरीर में एयरसैक को संक्रमित करता है. कारण चाहे जो भी ही निमोनिया के लिए बैक्टीरिया को जिम्मेदार माना जाता है. इस संक्रमण में संक्रमित व्यक्ति के फेफड़ों में मौजूद वायु थैली में पानी (द्रव्य) या मवाद भर जाता है, जिससे व्यक्ति को खांसी, सीने में दर्द होने के अलावा सांस लेने में भी समस्या होने लगती है. स्थिति गंभीर होने पर कई बार पीड़ित की जान तक चली जाती है. चिकित्सक बताते हैं कि सामान्य अवस्था में निमोनिया हमेशा घातक नहीं होता, लेकिन यदि इसके इलाज में देर हो तो इसके गंभीर प्रभाव नजर आने लगते हैं. निमोनिया दो प्रकार का होता है- लोबर निमोनिया और ब्रोंकाइल निमोनिया.
बच्चों में निमोनिया
बच्चों में निमोनिया का प्रभाव काफी देखने में आता है. आंकड़ों की माने तो सिर्फ भारत में प्रत्येक एक मिनट में एक बच्चा निमोनिया का शिकार होता है, वहीं दुनिया भर में होने वाली बच्चों की मौतों में 18 फीसदी का कारण निमोनिया होता है. विश्व में हर साल 5 साल से कम उम्र के लगभग 20 लाख बच्चों की मौत निमोनिया से हो जाती है.
सेव द चिल्ड्रेन के एक वैश्विक अध्ययन की माने तो दुनियाभर में वर्ष 2030 तक पांच साल से कम उम्र के 1.10 करोड़ बच्चों तथा देश में 17 लाख से अधिक बच्चों को निमोनिया के संक्रमण का खतरा है. बच्चों में निमोनिया के लिए माइकोप्लाज्मा निमोनी और क्लैमिडोफिला निमोनी जैसे बैक्टीरिया को कारण माना जाता है. जिसके चलते आमतौर पर बच्चों में निमोनिया के हल्के लक्षण दिखते हैं, जिसे साधारण भाषा में वॉकिंग निमोनिया भी कहा जाता हैं.
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इस अवस्था में बच्चों में सूखी खांसी, हल्का बुखार, सिरदर्द और थकान जैसे लक्षण दिखते हैं. जिनका सामान्य एंटीबायोटिक ट्रीटमेंट से इलाज हो जाता है. लेकिन समस्या बढ़ने पर तेज बुखार, पसीना आने या ठंड लगने, नाखूनों या होठों के नीले पड़ जाने, सीने में घरघराहट महसूस होने तथा सांस लेने में दिक्कत महसूस होने जैसे लक्षण नजर आने लगते हैं. गंभीर रूप से निमोनिया ग्रसित बच्चे खाने या पीने में असमर्थ भी हो सकते हैं तथा उनमे बेहोशी, हाइपोथर्मिया और अकड़न के लक्षण भी नजर आने लगते हैं.
हालांकि हमारे देश में बच्चों को इस संक्रमण से बचाने के लिए उनके नियमित टीकाकरण के तहत उन्हे पीसीवी का टीका लगाया जाता है, जो नवजात तथा छोटे बच्चों को 2, 4, 6, 12 एवं 15 माह की आयु में लगाया जाता है.
बुजुर्गों में निमोनिया
बच्चों के अलावा 65 वर्ष से अधिक उम्र के वे लोग जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर है तथा जो पहले से किसी बीमारी से जूझ रहे हों, निमोनिया का सरलता से शिकार बन जाते हैं. ज्यादा उम्र में भी निमोनिया के लक्षण हल्के तथा गंभीर दोनों प्रकार के हो सकते हैं.
इन आयु में निमोनिया के सबसे आम लक्षणों में खांसी, बुखार, ठंड लगना, बलगम बनना और सांस लेने में तकलीफ होना, भ्रम, सीने में दर्द, नीले होंठ और नाखून, और भूख न लगना जैसे लक्षण शामिल हैं.