पटना: बिहार में चल रही जातिगत जनगणना को लेकर केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया गया था. बाद में हलफनामे को बदल दिया गया. बिहार की सत्ताधारी दल जनता दल यूनाइटेड ने केंद्र के रुख पर सवाल खड़े किए हैं तो भाजपा ने भी प्रतिवाद किया है. बीजेपी के नेताओं का दावा है कि वो जातीय गणना के खिलाफ नहीं है लेकिन नीतीश सरकार से रिपोर्ट को सार्वजनिक किए जाने को लेकर वे बार-बार सवाल कर रहे हैं.
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पुराने हलफनामा में क्या कहा गया था?: पहले केंद्र ने एक हलफनामा दायर करते हुए उसके पैराग्राफ 5 में कहा था कि "संविधान के तहत या अन्यथा कोई भी अन्य निकाय जनगणना या जनगणना के समान कोई कार्रवाई करने की हकदार नहीं है. हालांकि, बाद में एक संशोधित हलफनामे में कहा गया कि प्रारंभिक हलफनामे में संबंधित पैराग्राफ "अनजाने में आ गया था", जिसके कारण वो हलफनामा वापस ले लिया गया है.
केंद्र सरकार का नया हलफनामा: सोमवार को 24 घंटे के अंदर ही केंद्र ने पहला हलफनामा वापस लेकर दूसरा दायर किया. सरकार ने अपने दूसरे हलफनामे में कहा कि 5वें पैराग्राफ में गलती हो गई है, केंद्र सरकार ने शाम को पहला हलफनामा वापस ले लिया. सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि पहले वाले हलफनामे के 5वें पैराग्राफ में एक गलती हो गई थी, जिसके चलते उसे वापस लिया जा रहा है.
नए हलफनामा में केंद्र ने घुमा फिरा कर पहले ही वाली बातों को कहा है. नए एफिडेविट में कहा गया कि जनगणना एक वैधानिक प्रक्रिया है, जिसका संचालन जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत किया जाता है. यह केंद्रीय सूची के अंतर्गत आता है और संविधान की सातवीं अनुसूची में इसका जिक्र किया गया है. इसमें कहा गया है कि यह अधिनियम केवल केंद्र सरकार को ही यह शक्ति देता है कि वह जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत जनगणना करा सके. इसका प्रावधान एक्ट के सेक्शन 3 में किया गया है.
केन्द्र के हलफनामे पर क्या बोले CM नीतीश : जातीय गणना पर केन्द्र सरकार के शपथपत्र को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि हम लोगों ने जातीय गणना की बात कही थी. मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार में जातीय गणना का काम लगभग पूरा हो चुका है. हम लोग बराबर यह मांग कर रहे थे. लेकिन जब केंद्र ने यह नहीं किया तब हमने करवाया. जनगणना कराना केंद्र का काम है.
लालू ने केंद्र को हलफनामा पर घेरा: केंद्र के हलफनामे पर आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने बीजेपी और केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि "बीजेपी का जन्म ही पिछड़ों के विरोध में हुआ है. बीजेपी कभी भी नहीं चाहती कि वंचित वर्गों का सामाजिक और आर्थिक उत्थान हो. किसी भी वर्ग के गरीबों के कल्याण के लिए बिहार सरकार द्वारा कोई सामाजिक सर्वे कराना गरीब विरोधी बीजेपी को अनुचित कैसे लगता है?"
"हलफनामा देना ही हास्यास्पद'- विजय कुमार चौधरी: वहीं बिहार सरकार के वरिष्ठ मंत्री विजय कुमार चौधरी ने निशाना साधते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय में केंद्र सरकार की ओर से जो कारनामा हुआ है वह हास्यास्पद है. साथ ही आश्चर्यजनक भी है. बिहार के गरीब लोगों के विपरीत है. पिछले कई महीनों से पटना हाईकोर्ट से उच्चतम न्यायालय तक सुनवाई चलती रही, लेकिन जब उच्चतम न्यायालय में भी फैसला पक्ष में आने वाला लग रहा है, तब केंद्र सरकार की ओर से अचानक इसमें हलफनामा दिया जाता है और वह भी ना तो पक्ष में और ना ही विरोध में होने की बात कही जाती है.
"आखिर इसका अर्थ क्या है? बेचैनी बदहवासी का आलम यह है कि अभी शपथ पत्र दायर किया जाता है और 2 घंटे बाद उसमें संशोधन किया जाता है. यह पूरी तरह से षड्यंत्र के तहत है, जातीय गणना को रोकने की कोशिश है. जातीय गणना सभी जातियों की संख्या के साथ उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति को लेकर किया जा रहा है, जिससे उनके लिए योजना बनाया जा सके."- विजय कुमार चौधरी, मंत्री, बिहार सरकार
नीरज कुमार ने बीजेपी की मंशा पर उठाए सवाल: केंद्र सरकार ने यह भी साफ किया कि वह "सिर्फ संवैधानिक और कानूनी स्थिति को इस अदालत के समक्ष विचारार्थ रखने के उद्देश्य से" हलफनामा दाखिल कर रही है. वहीं जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि "केंद्र सरकार की ओर से उच्च न्यायालय में जो पहले हलफनामा दिया गया उसमें कहा गया कि जातिगत जनगणना का अधिकार किसी दूसरे संस्था को नहीं है, जबकि पटना उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा था कि राज्य सरकार सर्वे कर रही है. कोर्ट ने इसे कानून संवत कहा था. लगता है भाजपा के लोगों को आत्मज्ञान हुआ और फिर कुछ घंटे बाद दूसरा हलफनामा दिया गया."
बीजेपी की सफाई: वहीं भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष संतोष पाठक ने कहा है कि "भाजपा जातिगत जनगणना के पक्ष में है. सभी मौके पर हमने जातिगत जनगणना के पक्ष में काम किया है. अगर जदयू जातीय जनगणना के पक्ष में है तो फौरन रिपोर्ट प्रकाशित करें."
बिहार सरकार का तर्क: बता दें कि बिहार सरकार ने अपने हलफनामे में पहले ही कहा है कि वो जनगणना नहीं बल्कि जातिगत सर्वे करा रही है. यह किसी भी राज्य में तमाम जाति और गरीबों को समान रूप से योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए जरूरी है. इसमें पिछड़े, अति पिछड़े और गरीबों को उनकी जाति के अनुसार योजनाओं का लाभ मिल सकेगा. जातीय गणना का बिहार में अस्सी फीसदी काम पूरा हो चुका है. पटना हाईकोर्ट के फैसले के बाद राज्य सरकार ने जातिगत जनगणना के प्रारूप को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है, वहीं सुप्रीम कोर्ट में मामला चल रहा है.