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बापू की हत्या के समय हर साल सायरन बजाने की परंपरा बहाल की जाए : तुषार गांधी

महात्मा गांधी के परपोते, तुषार ए. गांधी और अन्य लोगों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से आग्रह किया है कि वे 30 जनवरी को हर साल 'बापू' को श्रद्धांजलि के रूप में 'सायरन बजाने' की परंपरा को फिर से बहाल करें.

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Published : Jan 24, 2021, 4:51 PM IST

मुंबई : 30 जनवरी को महात्मा गांधी की हत्या की 73वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी. महात्मा गांधी के वंशजों ने एक पुरानी परंपरा को बहाल करने की अपील की है, जिसके तहत राष्ट्रपिता की गोली मारकर हत्या करने के समय सायरन बजा कर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती थी.

महात्मा गांधी के परपोते, तुषार ए. गांधी और अन्य लोगों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से आग्रह किया है कि वे अपने कार्यालय का उपयोग करें और 30 जनवरी को हर साल 'बापू' को श्रद्धांजलि के रूप में 'सायरन बजाने' की परंपरा को फिर से बहाल करें.

तुषार गांधी ने कहा, 'इसे उस ठंड में (शाम 5.17 बजे) हत्या किए जाने के तुरंत बाद शुरू किया गया था. एक नाराज राष्ट्र के 'बापू' को मौन श्रद्धांजलि पेश की थी. उद्देश्य सरल था - सभी को स्वेच्छा से उन्हें शांति से याद करना था.'

तुषार गांधी द्वारा लिखा गया पत्र.
तुषार गांधी द्वारा लिखा गया पत्र.
हालांकि, स्कूल और सरकारी या निजी कार्यालय शाम 5 बजे तक बंद हो जाते थे, इसलिए लोगों के लिए नियम का पालन करना संभव नहीं था.
तुषार गांधी द्वारा लिखा गया पत्र.
तुषार गांधी द्वारा लिखा गया पत्र.
कुछ समय बाद, हर साल 30 जनवरी को सुबह 11 बजे श्रद्धांजलि अर्पित करने का निर्णय लिया गया, ताकि सभी संस्थान इसका अनुपालन कर सकें, क्योंकि इसे 'शहीद दिवस' घोषित किया गया था.यह कई दशकों तक जारी रहा, लेकिन 1980 के दशक के अंत या कहें तो 1990 के दशक की शुरुआत में, इस परंपरा को धीरे-धीरे समाप्त कर दिया गया.तुषार गांधी ने कहा, 'इस नए दशक की नई शुरुआत करने के लिए, मैं राष्ट्रपति कोविंद जी से विनम्रतापूर्वक निवेदन करता हूं कि वे सोमवार को अपने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या भाषण में राष्ट्र और देशवासियों से इसके संबोधन के बारे में विचार करें.'82 वर्षीय श्रीकांत मातोंडकर ने कहा, 'एक छात्र के रूप में मुझे अच्छी तरह से याद है कि, सायरन बजता था और हम इसके बंद होने से पहले दो मिनट का मौन रखते थे.'अभिनेत्री और शिवसेना नेता उर्मिला मातोंडकर के पिता श्रीकांत मातोंडकर ने कहा कि फिर यह परंपरा चुपचाप समाप्त हो गई, लेकिन उम्मीद है कि इसे जनता के लिए फिर से बहाल किया जाएगा. मुंबई के एक प्रमुख व्यवसायी, प्रताप एस. बोहरा (66) ने कहा, 'केवल सायरन ही क्यों? आधुनिक तकनीक के साथ, सरकार मोबाइल फोन पर, टीवी, रेडियो चैनलों और सोशल मीडिया पर भी सभी लोगों को एक रिमाइंडर दे सकती है. यह एक अच्छा राष्ट्रवादी अभ्यास होगा और नई पीढ़ियों को इससे निश्चित ही अवगत कराना चाहिए.'तुषार गांधी ने कहा, 'हर साल शाम 5.17 बजे लोग स्वेच्छा से खड़े हो सकते हैं और मन ही मन यह संकल्प ले सकते हैं कि शांति की इस धरती पर इस तरह के जघन्य अपराध दोबारा नहीं होने चाहिए.'

पढ़ेंः तमिलनाडु दौरे पर राहुल, बोले- 'मन की बात' बताने नहीं आया


जब एक शीर्ष महाराष्ट्र पुलिस अधिकारी से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि शहीद दिवस पर 'यह रिवाज अभी भी जिंदा है', बड़े पैमाने पर सरकारी कार्यालयों में इसका अभ्यास किया जाता है.

अधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा, 'समय-समय पर, गृह मंत्रालय (एमएचए) सरकारी, निजी कार्यालयों, शैक्षिक संस्थानों, वाणिज्य और उद्योग के मंडलों और अन्य सभी संगठनों के लिए विस्तृत निर्देश जारी करता है.'

(आईएएनएस)

मुंबई : 30 जनवरी को महात्मा गांधी की हत्या की 73वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी. महात्मा गांधी के वंशजों ने एक पुरानी परंपरा को बहाल करने की अपील की है, जिसके तहत राष्ट्रपिता की गोली मारकर हत्या करने के समय सायरन बजा कर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती थी.

महात्मा गांधी के परपोते, तुषार ए. गांधी और अन्य लोगों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से आग्रह किया है कि वे अपने कार्यालय का उपयोग करें और 30 जनवरी को हर साल 'बापू' को श्रद्धांजलि के रूप में 'सायरन बजाने' की परंपरा को फिर से बहाल करें.

तुषार गांधी ने कहा, 'इसे उस ठंड में (शाम 5.17 बजे) हत्या किए जाने के तुरंत बाद शुरू किया गया था. एक नाराज राष्ट्र के 'बापू' को मौन श्रद्धांजलि पेश की थी. उद्देश्य सरल था - सभी को स्वेच्छा से उन्हें शांति से याद करना था.'

तुषार गांधी द्वारा लिखा गया पत्र.
तुषार गांधी द्वारा लिखा गया पत्र.
हालांकि, स्कूल और सरकारी या निजी कार्यालय शाम 5 बजे तक बंद हो जाते थे, इसलिए लोगों के लिए नियम का पालन करना संभव नहीं था.
तुषार गांधी द्वारा लिखा गया पत्र.
तुषार गांधी द्वारा लिखा गया पत्र.
कुछ समय बाद, हर साल 30 जनवरी को सुबह 11 बजे श्रद्धांजलि अर्पित करने का निर्णय लिया गया, ताकि सभी संस्थान इसका अनुपालन कर सकें, क्योंकि इसे 'शहीद दिवस' घोषित किया गया था.यह कई दशकों तक जारी रहा, लेकिन 1980 के दशक के अंत या कहें तो 1990 के दशक की शुरुआत में, इस परंपरा को धीरे-धीरे समाप्त कर दिया गया.तुषार गांधी ने कहा, 'इस नए दशक की नई शुरुआत करने के लिए, मैं राष्ट्रपति कोविंद जी से विनम्रतापूर्वक निवेदन करता हूं कि वे सोमवार को अपने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या भाषण में राष्ट्र और देशवासियों से इसके संबोधन के बारे में विचार करें.'82 वर्षीय श्रीकांत मातोंडकर ने कहा, 'एक छात्र के रूप में मुझे अच्छी तरह से याद है कि, सायरन बजता था और हम इसके बंद होने से पहले दो मिनट का मौन रखते थे.'अभिनेत्री और शिवसेना नेता उर्मिला मातोंडकर के पिता श्रीकांत मातोंडकर ने कहा कि फिर यह परंपरा चुपचाप समाप्त हो गई, लेकिन उम्मीद है कि इसे जनता के लिए फिर से बहाल किया जाएगा. मुंबई के एक प्रमुख व्यवसायी, प्रताप एस. बोहरा (66) ने कहा, 'केवल सायरन ही क्यों? आधुनिक तकनीक के साथ, सरकार मोबाइल फोन पर, टीवी, रेडियो चैनलों और सोशल मीडिया पर भी सभी लोगों को एक रिमाइंडर दे सकती है. यह एक अच्छा राष्ट्रवादी अभ्यास होगा और नई पीढ़ियों को इससे निश्चित ही अवगत कराना चाहिए.'तुषार गांधी ने कहा, 'हर साल शाम 5.17 बजे लोग स्वेच्छा से खड़े हो सकते हैं और मन ही मन यह संकल्प ले सकते हैं कि शांति की इस धरती पर इस तरह के जघन्य अपराध दोबारा नहीं होने चाहिए.'

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जब एक शीर्ष महाराष्ट्र पुलिस अधिकारी से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि शहीद दिवस पर 'यह रिवाज अभी भी जिंदा है', बड़े पैमाने पर सरकारी कार्यालयों में इसका अभ्यास किया जाता है.

अधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा, 'समय-समय पर, गृह मंत्रालय (एमएचए) सरकारी, निजी कार्यालयों, शैक्षिक संस्थानों, वाणिज्य और उद्योग के मंडलों और अन्य सभी संगठनों के लिए विस्तृत निर्देश जारी करता है.'

(आईएएनएस)

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