पटना : विपक्षी दलों की 23 जून को होने वाली बैठक को लेकर राजनीतिक सरगर्मी अब उफान पर है. 17 से 18 विपक्षी दल पटना में होने वाली बैठक में शामिल होंगे. लेकिन, कई विपक्षी दल के बड़े नेताओं को इस बैठक में आमंत्रित तक नहीं किया गया है. जिसमें मायावती, नवीन पटनायक, कुमार स्वामी, केसीआर शामिल हैं. इसके अलावा एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी को भी आमंत्रित नहीं किया गया है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि इन विपक्षी नेताओं के बिना विपक्षी एकजुटता कैसे संभव होगी?
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पटना में विपक्षी एकता पर महाजुटान : 23 जून की बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव, एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार, पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे, आरएलडी चीफ जयंत चौधरी, भाकपा महासचिव डी राजा, माले महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य सरीखे नेताओं को आमंत्रित किया गया है, यो वो नेता और दल हैं जो बैठक में शामिल होंगे. इनमें से कुछ पटना पहुंच भी गए हैं.
ये दल कर सकते हैं मुश्किलें खड़ी : कुछ नेता बैठक में शामिल नहीं भी हो रहे हैं. जिसमें आरएलडी चीफ जयंत चौधरी, परिवारिक कार्यक्रम के कारण इस बैठक में नहीं आ रहे हैं. इसके अलावा विपक्ष के कई बड़े नेताओं को आमंत्रण तक नहीं भेजा गया है जिसमें तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर, उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, उत्तर प्रदेश की पूर्व सीएम और बसपा सुप्रीमो मायावती, पूर्व सीएम कुमार स्वामी, आंध्र प्रदेश और पंजाब के प्रमुख विपक्षी नेताओं और एआईएमआईएम सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी को भी आमंत्रित नहीं किया गया है. ऐसे में यह बड़ा सवाल है इनके बिना विपक्षी एकजुटता कैसे होगी और बीजेपी को कैसे परास्त किया जा सकेगा?
बीजेपी के खिलाफ एकजुट करना मश्किल : बीजेपी के खिलाफ संयुक्त उम्मीदवार कि जिस प्रकार से बात की जा रही थी कई बड़े राज्यों में वह संभव होता है दिख नहीं रहा है. जदयू के वरिष्ठ नेता और नीतीश कुमार के नजदीकी मंत्री विजय कुमार चौधरी का कहना है कि जिन्हें नहीं बुलाया गया, उनकी चर्चा करने की जरूरत नहीं, जिन को बुलाया गया है उनके बारे में सोचिए. विजय चौधरी का तो यहां तक कहना है कि जिन्हें जनता ने भुला दिया उन्हें बैठक में बुलाकर क्या होगा?
राज्यों में 18 दलों के अलावा और भी धुरंधर : वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का कहना है कि ''विपक्षी एकजुटता की बात हो रही है, लेकिन मायावती को नहीं बुलाया गया. उत्तर प्रदेश में दलितों और मुस्लिमों पर उनकी अच्छी खासी पकड़ है. वहीं अल्पसंख्यक की राजनीति करने वाले असदुद्दीन ओवैसी के बिना मुस्लिमों का वोट अपने साथ करना आसान नहीं होगा. इसी तरह ओडिशा में नवीन पटनायक बड़ा चेहरा हैं. वो वहां लगातार मुख्यमंत्री हैं. उनके बिना उड़ीसा में विपक्ष को कोई लाभ नहीं मिलेगा. इसी तरह आंध्र प्रदेश, पंजाब, कर्नाटक के विपक्षी नेताओं को जब साथ नहीं लिया गया है तो उन राज्यों में विपक्ष को बहुत कुछ हासिल होने वाला नहीं है. इसका सीधा लाभ बीजेपी को मिलेगा.'' रवि उपाध्याय का यह भी कहना है कि जिन दलों को बुलाया गया है, उनके बीच एकजुटता बनाना आसान काम नहीं है.
ये बिगाड़ेंगे नीतीश का खेला : उदाहरण के तौर पर आंध्र प्रदेश में न तो जगन मोहन रेड्डी को मना पाए और न ही तेदेपा के चंद्रबाबू नायडू को शामिल कर पाए. बगल के राज्य तेलंगाना में केसीआर भी विपक्षी एकता की बैठक से दूरी बनाकर रखे हुए हैं. ओडिशा में नवीन पटनायक न्यूटल रुख अख्तियार किए हुए हैं. ओवैसी से नीतीश और तेजस्वी दूरी बनाए हुए हैं. शिरोमणी अकाली दल पंजाब में बड़ी विपक्षी पार्टी है. इसकी सरकार भी रह चुकी है. ऐसे में त्रिकोणीय मुकाबला हुआ तो फायदा बीजेपी को मिल सकता है.
यूपी खोलेगा दिल्ली के द्वार : उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ चुकी है. मोदी की लहर को दोनों मिलकर नहीं रोक पाए. अगर ये गठबंधन 2024 में मूर्त रूप लेता है तो मायावती के साथ न आने से सियासी समीकरण ठीक वैसा ही बनेगा. तब मुकाबला त्रिकोणीय होने से फायदा हर बार की तरह बीजेपी को ही मिलने वाला है. केंद्र की सत्ता पर काबिज होना है तो यूपी की सीट पर दबदबा बनाना जरूरी है. ये हाथ से गया तो समझो उम्मीदों पर पानी फिरा. लेकिन मायावती ने विपक्षी एकता बैठक से दूरी बनाकर रखी है.
विपक्षी एकता बैठक पर देश की नजर : विपक्षी दलों की बैठक को लेकर पूरे देश की नजर है. राजधानी पटना का राजनीतिक तापमान तो बढ़ ही गया है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल विपक्ष के जिन राज्यों के नेताओं को बुलाया नहीं गया है, उनके बिना विपक्षी एकजुटता कैसे संभव होगी. इसका सीधा लाभ कहीं ना कहीं बीजेपी और एनडीए को मिलेगा.