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ऐसा नहीं कहा जा सकता कि वकीलों का जीवन अन्य लोगों से 'अधिक मूल्यवान' है: न्यायालय

सुप्रीम कोर्ट ने कोविड से जान गंवाने वाले वकीलों को मुआवजा देने की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Sep 14, 2021, 2:51 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 या अन्य किसी कारण से जान गंवाने वाले 60 वर्ष से कम आयु के वकीलों के परिजनों को 50-50 लाख रुपए का मुआवजा देने का केन्द्र को निर्देश देने के लिये दायर याचिका मंगलवार को खारिज कर दी. न्यायालय ने कहा कि ऐसा नहीं कहा जा सकता कि वकीलों का जीवन अन्य लोगों से 'अधिक मूल्यवान' है.

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि वह वकीलों द्वारा फर्जी जनहित याचिकाएं दायर करने को प्रोत्साहित नहीं कर सकती हैं. पीठ ने कहा कि यह याचिका प्रचार पाने के लिए है और इसका एक भी प्रासंगिक आधार नहीं है.

न्यायालय ने कहा कि देश में कोविड-19 के कारण अनेक लोगों की मृत्यु हुई और कोरोना वायरस के परिणामस्वरूप जिन लोगों की मौत हुई है उनके परिजनों को मुआवजे के वितरण संबंधी दिशा-निर्देश बनाने के बारे में शीर्ष अदालत पहले ही फैसला दे चुकी है.

पीठ ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता प्रदीप कुमार यादव से कहा, क्या समाज के अन्य लोगों का महत्व नहीं है. यह एक पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन है, आपने काला कोट पहना है तो इसका मतलब यह नहीं है कि आपका जीवन अन्य लोगों से अधिक मूल्यवान है. हमें वकीलों को फर्जी जनहित याचिकाएं दायर करने के लिए प्रेरित नहीं करना चाहिए.

पढ़ें :- कोविड पीड़ित की आत्महत्या को कोरोना से मौत न मानने के फैसले पर फिर विचार करे केंद्र : SC

यादव ने पीठ से कहा कि वह याचिका वापस लेंगे और बेहतर आधारों के साथ इसे दायर करेंगे. लेकिन पीठ ने याचिका खारिज कर दी और याचिकाकर्ता पर दस हजार रूपये का जुर्माना लगाया.

पीठ ने यादव को जुर्माने की राशि एक हफ्ते के भीतर उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन में जमा कराने का निर्देश दिया है.

यादव ने अपनी याचिका में केन्द्र, बार काउंसिल आफ इंडिया और कई अन्य बार संगठनों को प्रतिवादी बनाया था.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 या अन्य किसी कारण से जान गंवाने वाले 60 वर्ष से कम आयु के वकीलों के परिजनों को 50-50 लाख रुपए का मुआवजा देने का केन्द्र को निर्देश देने के लिये दायर याचिका मंगलवार को खारिज कर दी. न्यायालय ने कहा कि ऐसा नहीं कहा जा सकता कि वकीलों का जीवन अन्य लोगों से 'अधिक मूल्यवान' है.

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि वह वकीलों द्वारा फर्जी जनहित याचिकाएं दायर करने को प्रोत्साहित नहीं कर सकती हैं. पीठ ने कहा कि यह याचिका प्रचार पाने के लिए है और इसका एक भी प्रासंगिक आधार नहीं है.

न्यायालय ने कहा कि देश में कोविड-19 के कारण अनेक लोगों की मृत्यु हुई और कोरोना वायरस के परिणामस्वरूप जिन लोगों की मौत हुई है उनके परिजनों को मुआवजे के वितरण संबंधी दिशा-निर्देश बनाने के बारे में शीर्ष अदालत पहले ही फैसला दे चुकी है.

पीठ ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता प्रदीप कुमार यादव से कहा, क्या समाज के अन्य लोगों का महत्व नहीं है. यह एक पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन है, आपने काला कोट पहना है तो इसका मतलब यह नहीं है कि आपका जीवन अन्य लोगों से अधिक मूल्यवान है. हमें वकीलों को फर्जी जनहित याचिकाएं दायर करने के लिए प्रेरित नहीं करना चाहिए.

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यादव ने पीठ से कहा कि वह याचिका वापस लेंगे और बेहतर आधारों के साथ इसे दायर करेंगे. लेकिन पीठ ने याचिका खारिज कर दी और याचिकाकर्ता पर दस हजार रूपये का जुर्माना लगाया.

पीठ ने यादव को जुर्माने की राशि एक हफ्ते के भीतर उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन में जमा कराने का निर्देश दिया है.

यादव ने अपनी याचिका में केन्द्र, बार काउंसिल आफ इंडिया और कई अन्य बार संगठनों को प्रतिवादी बनाया था.

(पीटीआई-भाषा)

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