श्रीनगर : देशभर में कोरोना महामारी में लगातार लॉकडाउन के चलते लोगों की जीवनशैली को काफी प्रभावित किया है. वहीं, कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने घर बैठे-बैठे इस वक्त को बेकार जाने नहीं दिया और अपने कौशल को तराशना शुरू कर दिया.
उनमें से एक हैं जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के जकुरा की रहने वाली मारुख रैना. मारुख ने रेजिन आर्ट्स में कुशलता पाने के बाद अब लघु कलाकृतियों पर हाथ आजमा रहीं हैं.
मारुख इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (IUST) से इंजीनियरिंग में स्नातक हैं और अमेजन के लिए इंटरव्यू भी पास कर ली हैं. मारुख के लिए रेजिन आर्ट हमेशा से प्राथमिक रही है.
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ईटीवी भारत से खास बातचीत में वह कहती हैं कि इन दिनों उनके पास करने को कुछ नहीं था. उन्हें कुछ अलग करना था. इसिलए उन्होंने रेजिन आर्ट को चुना. पिछले पांच महीनों से वह इस कला में महारत हासिल करने की कोशिश कर रही थीं और अब वह कई सारी चीजें इस कला के जरिए बना चुकी हैं.
24 वर्षीया मारुख का मानना है कि जब तक किसी कला में निपूणता नहीं आ जाती है, तब तक इसे जानने का दावा नहीं करना चाहिए. इसलिए वह यू-ट्यूब और अन्य साइट्स के जरिये इस कौशल को तराशने में लगी हैं.
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हालांकि, इस कला को उन्होंने छोटे बजट से शुरू किया था, जिसे भविष्य में विस्तार करने की उन्होंने योजना बनाई है.
रेजिन आर्ट के अलावा वह कैलीग्राफी भी करती हैं.
मारुख कहती हैं कि महामारी का वक्त मेरे लिए एक मौका लेकर आया था, जिसमें मुझे अपने कौशल को तराशने का भरपूर वक्त मिला.
क्या होता है रेज़िन
दरअसल, रेज़िन (resin) को राल भी कहा जाता है. वैज्ञानिक पहलू के मुताबिक यह गोंद जैसा हाइड्रोकार्बन द्रव्य होता है. आम तौर से इसे पेड़ों की छाल और लकड़ी से निकाला जाता है. चीड़ जैसे पेड़ों से रेज़िन अधिक मात्रा में निकलता है.
अन्य पेड़ों की तुलना में चीड़ से निकाले जाने वाले रेज़िन का प्रयोग गोंद, लकड़ी की रोग़न (वार्निश), सुगंध और अगरबत्तियां बनाने में किया जाता है. हालांकि, लंबी अवधि तक निकाल कर रखे जाने या काफी समय बीतने पर कभी-कभी रेज़िन जम जाता है या पत्थर की तरह ठोस हो जाता है. कई स्थानों पर इसका प्रयोग आभूषणों में भी किया जाता है.