नई दिल्ली : सरकारी विज्ञापनों में किन-किन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में एक दिशानिर्देश जारी किया था. आम आदमी पार्टी पर इन दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने का आरोप लगा है. इस वजह से पार्टी पर 163.6 करोड़ रु. का जुर्माना लगा है. हालांकि, आप ने इन आरोपों का खंडन किया है. आप ने दिल्ली के एलजी पर ही सवाल उठा दिए हैं. बहरहाल, पहले हम यह जान लेते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने दिशा निर्देश में क्या कहा था. कोर्ट ने सरकारी एड में छपने वाले कंटेंट की निगरानी के लिए एक कमेटी बनाने को कहा था.
क्या है सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन -
- सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को अपने-अपने यहां एक कमेटी बनाने को कहा था. कोर्ट के अनुसार यह एक तीन सदस्यीय कमेटी होगी. यह कमेटी ही कंटेंट की निगरानी करेगी.
- कोर्ट ने अपने दिशानिर्देश में साफ तौर पर कहा कि कंटेंट में किसी भी राजनीतिक पार्टी को प्रमोट नहीं किया जाएगा. उनमें किसी भी राजनीतिक व्यक्ति को प्रमुखता नहीं मिलेगी.
- सरकारी विज्ञापनों में किसी भी राजनीतिक दल का नाम नहीं छपेगा. किसी भी पार्टी का सिंबल भी नहीं दिखेगा. न ही किसी पार्टी का झंडा और न ही उसका लोगो उस एड में दिखना चाहिए.
- कोर्ट ने यह भी कहा कि विज्ञापनों में किसी भी नेता की तस्वीर छापने से बचें. और जरूरी हो तो राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या फिर मुख्यमंत्री या राज्यपाल की तस्वीरों का इस्तेमाल किया जा सकता है.
- सरकार को यह भी पहले से बताना होगा कि वह इस साल किन हस्तियों का विज्ञापन छापेगी. इसकी सूची पहले ही जारी होनी चाहिए. किनकी जयंती और किनकी पुण्यतिथि में एड जारी होंगे, यह सब पहले से ही सबको पता होना चाहिए.
- एड जारी करने से पहले सभी प्रावधानों का पूरी तरह से लागू करें, यानि गोपनीयता का ध्यान रखें. कॉपीराइट कानून का उल्लंघन न हो. उपभोक्ता कानून का पूरी तरह से पालन किया जाए.
- अगर कोई भी शिकायत आती है, तो उसका निपटारा होना जरूरी है. इसके लिए एक लोकपाल का होना जरूरी है. वह दिशानिर्देशों के उल्लंघन की जांच करेगी.
- एड में किसी भी मीडिया समूह को तरजीह नहीं दी जाएगी. और इसके बदले उस व्यक्ति या पार्टी को उस मीडिया समूह में तरजीह न मिले.
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