नई दिल्ली : यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने दुनिया भर में बिजनेस सेंटिमेंट्स को प्रभावित किया है क्योंकि कच्चे तेल की कीमतें बढ़ गई हैं. इस युद्ध के कारण विश्व अर्थव्यवस्था से जोड़ने वाली सप्लाई लाइन पर बड़ा असर पड़ा है. एक सर्वेक्षण से पता चला है कि इस स्थिति से दुनिया भर की अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम बढ़ गया है कि कारोबार में निराशा का माहौल बन गया है.
युद्ध की शुरुआत के बाद से थिंक टैंक ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स की ओर से किए गए एक सर्वेक्षण किया गया, जिसमें दुनिया की 165 बड़ी कंपनियों की स्टडी की गई. इनमें अधिकतर कंपनियां उत्तरी अमेरिका और यूरोप की हैं. सर्वे में यह सामने आया कि रूस-यूक्रेन युद्ध को विश्व अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ा खतरा है. सर्वे से यह भी पता चला है कि पिछले एक महीने में लगभग 84 फीसदी कारोबारी ग्लोबल ग्रोथ संभावनाओं के बारे में अधिक निगेटिव हो गए हैं. पिछले महीने की तुलना मे आधे से अधिक यानी 55 फीसदी फाइनेंशियल रिपोर्ट निगेटिव हो गई है. इस कारण पिछले क्वॉर्टर में 29 फीसदी की गिरावट आई है.
बिजनेस सेंटिमेंट में हो रही तेज गिरावट : ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स का कहना है कि यूक्रेन पर हमले शुरू होने के एक सप्ताह बाद सर्वे शुरू किया गया था, इसमें यह स्पष्ट तौर से सामने आया है कि बिजनेस सेंटिमेंट खराब हो गई है. ऐसा पहले तब हुआ था, जब पहली बार 2020 में पहली बार कोरोनोवायरस लहर फैली थी. उस दौरान भी बिजनेस सेंटिमेंट में तेज गिरावट दर्ज की गई थी. मार्च में किए गए सर्वेक्षण से पता चला है कि 2022 में ग्लोबल ग्रोथ की संभावनाओं को लेकर कारोबार में निराशा का माहौल बन गया है. जनवरी के बाद से औसत उम्मीद 1.3% गिर गई है, जो पहले लगाए अनुमान से तीन गुना है. सर्वे के दौरान लगभग एक चौथाई उत्तरदाताओं का मानना है कि ग्लोबल इकोनॉमी भारी गिरावट की ओर जा रही है, जिससे अर्थव्यवस्था में जोखिम बढ़ गया है.
महंगाई का असर भी बढ़ेगा : सर्वे में मिले जवाबों के आकलन के बाद यह निष्कर्ष आया है कि रूस-यूक्रेन युद्ध इस वर्ष न केवल वैश्विक आर्थिक विकास को प्रभावित करेगा बल्कि यह दुनिया भर में महंगाई को भी बढ़ाएगा. इससे उन देशों की दिक्कतें और बढ़ जाएंगी, जहां पहले से ही महंगाई रिकॉर्ड स्तर पर है. सर्वेक्षण में 2 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का कारोबार करने वाली 165 कंपनियों को शामिल किया गया था. इन कंपनियों ने बताया कि मुद्रास्फीति के कारण उन्होंने अपने लक्ष्य को इस उम्मीद के साथ संशोधित किया कि इस वर्ष इसमें 1.5 फीसदी की वृद्धि होगी. भारत में थोक मूल्य सूचकांक पिछले 11 महीनों से दोहरे अंकों में है. यह भारत सरकार और नीति निर्माताओं के लिए एक नई चुनौती है क्योंकि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से स्थिति और खराब होगी.
ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के अनुसार सर्वे में शामिल 100 कंपनियों को उम्मीद है कि सप्लाई चेन में 2023 तक दिक्कत बनी रहेगी. इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि यह युद्ध ऐसे समय में हो रहा है, जब दुनिया की अर्थव्यवस्था कोरोना के ओमीक्रोन वैरिएंट से जूझ रही है. यह आशंका जताई जा रही है कि कोरोना और युद्ध की दोहरी मार से ग्लोबल इकोनॉमी में गिरावट बनी रहेगी.
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