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हरिवंश राय बच्चन, जिन्होंने हाला प्याला और मधुशाला को किया मशहूर - हरिवंशराय बच्चन

हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध रचनाकार और अमिताभ बच्चन के पिता हरिवंशराय बच्चन का जन्म प्रतापगढ़ जिले के बाबू पट्टी गांव में 27 नवंबर 1907 को हुआ था. लेकिन, उनकी कर्मस्थली इलाहाबाद विश्वविद्यालय रहा. एक दौर था जब हाला प्याला और मधुशाला के बारे में बात करना सभ्य समाज में वर्जित था. लेकिन, 1935 में मधुशाला के प्रकाशन के बाद जब बच्चनजी की पंक्तियां समाज में प्रसिद्ध हुईं तो हाला प्याला और मधुशाला से जुड़ीं वर्जनाएं धीरे-धीरे समाप्त होती चली गईं.

हरिवंश राय बच्चन
हरिवंश राय बच्चन
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Published : Nov 27, 2020, 10:49 PM IST

प्रयागराज : हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध रचनाकार हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर, 1907 को प्रतापगढ़ जिले के बाबू पट्टी गांव में हुआ था. बच्चनजी अंग्रेजी के उदभट विद्वान थे, परंतु उन्होंने अपनी रचनाएं हिंदी में लिखी हैं. हरिवंश राय बच्चन ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए की उपाधि प्राप्त करने के बाद विश्वविद्यालय में ही करीब डेढ़ दशक तक इंग्लिश डिपार्टमेंट में अध्यापन किया.

पद्म भूषण से किए गए थे अलंकृत
हरिवंश राय बच्चन करीब 15 वर्ष अध्यापन करने के बाद कैंब्रिज विश्वविद्यालय शोध करने के लिए चले गए. वहां से आने के बाद उन्होंने हिंदी साहित्य के विकास के लिए बहुत काम किया. बच्चन जी को उनकी रचनाओं के लिए पद्म भूषण और नेहरू सम्मान से अलंकृत किया जा चुका है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

सरस्वती पुत्र बच्चन
आज भी उनका उनकी कर्मस्थली इलाहाबाद विश्वविद्याय में बड़ा सम्मान है. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ शिक्षक संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर रामसेवक दुबे हरिवंश राय बच्चन को सरस्वती पुत्र बताते हैं. उनका कहना है कि हरिवंश राय बच्चन ऐसे विद्वान थे, जिन्होंने अपनी पढ़ाई और शोध अंग्रेजी में किया, जबकि उनकी सभी प्रमुख रचनाएं हिन्दी में ही हैं. विश्वविद्याय के छात्र और अध्यापक अपने पुरातन छात्र और अध्यापक हरिवंश राय बच्चन को याद करते हैं.

विरल कवि थे बच्चन
वरिष्ठ कवि एवं लेखक अरविंद चतुर्वेद बताते हैं कि हरिवंश राय बच्चन अद्भुत प्रतिभा के साथ उभर कर आते हैं. नरेंद्र शर्मा, डॉ. रामकुमार वर्मा और रामधारी सिंह दिनकर उनके समवर्ती कवि थे. इनमें हरिवंश राय बच्चन इस मायने में विरल कवि हैं कि उन्होंने काव्य भाषा में अलंकरणों का या कहा जाए सजावट के बोझ को उतारा.

विदेश से लौटकर यूनिवर्सिटी में ही रुके
वरिष्ठ साहित्यकार गोपाल चतुर्वेदी बताते हैं कि जब मैं इलाहाबाद से इंग्लिश में एमए कर रहा था. तब हरिवंश राय बच्चन पीएचडी करने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी गए थे. यूनिवर्सिटी में बच्चन जी का नाम तो था ही, साथ में उनकी यादें भी थीं. बच्चन जी जब विदेश से लौटकर आए तो यूनिवर्सिटी में ही रुके. वहीं उन्होंने उमर खय्याम से प्रेरित होकर मधुशाला लिखी. कुछ समय बाद बच्चन जी वित्त मंत्रालय में ओएसडी बनकर चले गए. पंडित जवाहर लाल उनको बहुत अच्छी तरह जानते थे. बच्चन जी कवि के मामले में ऐसे प्रख्यात थे, जैसे आज अमिताभ बच्चन फिल्मों में प्रख्यात हैं.

बच्चन जी की रचनाएं
कहा जाता है कि बच्चन जी ने इलाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन के दौरान ही मधुशाला की रचना की थी. यह बाद में बहुत लोकप्रिय हुई. बच्चन जी की रचनाओं में मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश और निशा निमंत्रण काफी प्रसिद्ध हैं. आइए बच्चन जी के कविता कोष के सौजन्य से मधुशाला के कुछ अंश पढ़ते हैं-

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।

प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।

प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।

भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।

मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।

मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,
'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'

बच्चन की याद में बनी है लाइब्रेरी
उनकी जन्मस्थली रही बाबू पट्टी में आज भी उनके परिवार के कुछ सदस्य रहते हैं. सन 2006 में एक बार सदी के महानायक अभिताभ बच्चन की पत्नी जया बच्चन भी बाबू पट्टी गई थीं. वहां पर उन्होंने बच्चन जी की याद में बने पुस्तकालय का लोकार्पण किया था. आज भी उनके पैतृक गांव के लोग अमिताभ बच्चन और उनके परिवार के आने का इंतजार करते रहते हैं.

प्रयागराज : हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध रचनाकार हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर, 1907 को प्रतापगढ़ जिले के बाबू पट्टी गांव में हुआ था. बच्चनजी अंग्रेजी के उदभट विद्वान थे, परंतु उन्होंने अपनी रचनाएं हिंदी में लिखी हैं. हरिवंश राय बच्चन ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए की उपाधि प्राप्त करने के बाद विश्वविद्यालय में ही करीब डेढ़ दशक तक इंग्लिश डिपार्टमेंट में अध्यापन किया.

पद्म भूषण से किए गए थे अलंकृत
हरिवंश राय बच्चन करीब 15 वर्ष अध्यापन करने के बाद कैंब्रिज विश्वविद्यालय शोध करने के लिए चले गए. वहां से आने के बाद उन्होंने हिंदी साहित्य के विकास के लिए बहुत काम किया. बच्चन जी को उनकी रचनाओं के लिए पद्म भूषण और नेहरू सम्मान से अलंकृत किया जा चुका है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

सरस्वती पुत्र बच्चन
आज भी उनका उनकी कर्मस्थली इलाहाबाद विश्वविद्याय में बड़ा सम्मान है. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ शिक्षक संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर रामसेवक दुबे हरिवंश राय बच्चन को सरस्वती पुत्र बताते हैं. उनका कहना है कि हरिवंश राय बच्चन ऐसे विद्वान थे, जिन्होंने अपनी पढ़ाई और शोध अंग्रेजी में किया, जबकि उनकी सभी प्रमुख रचनाएं हिन्दी में ही हैं. विश्वविद्याय के छात्र और अध्यापक अपने पुरातन छात्र और अध्यापक हरिवंश राय बच्चन को याद करते हैं.

विरल कवि थे बच्चन
वरिष्ठ कवि एवं लेखक अरविंद चतुर्वेद बताते हैं कि हरिवंश राय बच्चन अद्भुत प्रतिभा के साथ उभर कर आते हैं. नरेंद्र शर्मा, डॉ. रामकुमार वर्मा और रामधारी सिंह दिनकर उनके समवर्ती कवि थे. इनमें हरिवंश राय बच्चन इस मायने में विरल कवि हैं कि उन्होंने काव्य भाषा में अलंकरणों का या कहा जाए सजावट के बोझ को उतारा.

विदेश से लौटकर यूनिवर्सिटी में ही रुके
वरिष्ठ साहित्यकार गोपाल चतुर्वेदी बताते हैं कि जब मैं इलाहाबाद से इंग्लिश में एमए कर रहा था. तब हरिवंश राय बच्चन पीएचडी करने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी गए थे. यूनिवर्सिटी में बच्चन जी का नाम तो था ही, साथ में उनकी यादें भी थीं. बच्चन जी जब विदेश से लौटकर आए तो यूनिवर्सिटी में ही रुके. वहीं उन्होंने उमर खय्याम से प्रेरित होकर मधुशाला लिखी. कुछ समय बाद बच्चन जी वित्त मंत्रालय में ओएसडी बनकर चले गए. पंडित जवाहर लाल उनको बहुत अच्छी तरह जानते थे. बच्चन जी कवि के मामले में ऐसे प्रख्यात थे, जैसे आज अमिताभ बच्चन फिल्मों में प्रख्यात हैं.

बच्चन जी की रचनाएं
कहा जाता है कि बच्चन जी ने इलाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन के दौरान ही मधुशाला की रचना की थी. यह बाद में बहुत लोकप्रिय हुई. बच्चन जी की रचनाओं में मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश और निशा निमंत्रण काफी प्रसिद्ध हैं. आइए बच्चन जी के कविता कोष के सौजन्य से मधुशाला के कुछ अंश पढ़ते हैं-

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।

प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।

प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।

भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।

मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।

मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,
'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'

बच्चन की याद में बनी है लाइब्रेरी
उनकी जन्मस्थली रही बाबू पट्टी में आज भी उनके परिवार के कुछ सदस्य रहते हैं. सन 2006 में एक बार सदी के महानायक अभिताभ बच्चन की पत्नी जया बच्चन भी बाबू पट्टी गई थीं. वहां पर उन्होंने बच्चन जी की याद में बने पुस्तकालय का लोकार्पण किया था. आज भी उनके पैतृक गांव के लोग अमिताभ बच्चन और उनके परिवार के आने का इंतजार करते रहते हैं.

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