सिवानः रक्षाबंधन की मान्यताएं कई सारी हैं, लेकिन एक ऐसी मान्यता हम आपको बताने जा रहे हैं, जो अपने आप में एक अद्भुत है. बिहार के सिवान में एक मंदिर हैं, जहां भगवान नहीं बल्कि भाई-बहन की पूजा की जाती है. मंदिर परिसर में वट वृक्ष है जो आपस में जुड़े हुए है. मान्यता है कि यह भाई बहन का प्रतीक है. रक्षा बंधन के दिन इस मंदिर में बहनें अपने भाई की लंबी उम्र की कामना करती हैं, तो भाई बहन की रक्षा करने का संकल्प लेता है.
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सिवान में भाई-बहन के प्यार का प्रतीक 'भैया बहिनी मंदिर' : जिले के दरौंदा प्रखंड में एक भैया-बहिनी मंदिर (Siwan Bhaiya Bahini Temple) है. इस मंदिर के नाम पर ही इस गांव का नाम भैया बहिनी (Bhaiya Bahini Village) है. इसके पीछे भाई-बहन के प्यार की एक अटूट कहानी है. ऐसे भाई-बहन, जिसकी लाज बचाने के लिए भगवान खुद प्रकट हुए थे. तब से इस गांव में रक्षा बंधन के मौके पर भाई-बहन की पूजा करने के लिए भीड़ जुटती है.
500 साल पुरानी परंपरा : गांव वालों की मानें तो यह मान्यता करीब 500 साल पुरानी है. ग्रामीण बताते है कि जिस जगह पर मंदिर का निर्माण हुआ है, वहां एक भाई-बहन ने धरती में समाधी ले ली थी. मंदिर परिवार में यहां कई बरगद के पेड़ हैं, जो आपस में जुड़े हुए हैं. मान्यता है कि यह वट वृक्ष भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है. कई साल पहले गांव के लोगों ने यहां एक मंदिर का निर्माण कराया.
मुगल शासनकाल से जुड़ा है इतिहासः ग्रामीण बताते हैं कि इसके पीछे एक सच्ची कहानी है, जो मुगल शासनकाल की है. एक भाई अपनी बहन को कैमूर उसके ससुराल पहुंचाने जा रहा था. तभी रास्ते में डाकुओं (मुगल सिपाही) ने दोनों भाई-बहन को घेर लिया. डाकुओं की नजर युवती पर पड़ी और उसके साथ गलत हरकत करने लगे. भाई ने डाकुओं (मुगल सिपाही) से लड़ने की बहुत कोशिश की, लेकिन अकेला होने के कारण वह हिम्मत हार गया. इसके बाद दोनों भाई-बहन ने जान बचाने के लिए भगवान का आह्वान किया.
'धरती फटी और समा गए थे भाई-बहन..' : डाकुओं (मुगल सिपाही) से बचने के लिए दोनों भाई बहन भागवान को पुकराते हुए कहा कि 'हे धरती मां मुझे अपने अंदर समा लीजिए, मेरी रक्षा कीजिए'. पुकार सुनते ही भगवान प्रकट हो गए और धरती अचानक फट गई. धरती फटता देख डाकू भी डर गए. दोनों भाई बहन डाकुओं के चंगुल से छूटकर धरती में समा गए. यह घटना पूरे गांव में फैल गई. इसके बाद दोनों भाई बहन लोगों के सपने में आए. इसके बाद गांव के लोगों ने दोनों का मंदिर बनवाया, तब से यहां रक्षा बंधन के मौके पर पूजा अर्चना की जाती है.
"डाकू घोड़ा पर चढ़कर आए थे, जिसे देखकर दोनों भाई-बहन डर गए थे. दोनों ने भगवान से आह्वान किया कि धरती मैया हमें अपने में समा लीजिए. इसके बाद दोनों धरती में समा गए. अगले दिन कंगन पहने हाथ धरती से बाहर निकला. गांव के लोगों को सपना आया तो यहां मंदिर का निर्माण कराया गया. तब से यहां पूजा हो रही है." - उमापति देवी, स्थानीय
'ये पेड़ नहीं भाई बहिन हैं, जो एक दूसरे से लिपटे हैं': मान्यता है कि जिस जगह दोनों भाई बहन धरती में समाए थे, अगले दिन बहन का कंगन दिखा और लोगों को सपना भी आया. तब मंदिर बनाया गया. यहां कई वटवृक्ष हैं, जो एक दूसरे से लिपटे हैं. ऐसा माना जाता है कि ये दोनों भाई बहन का प्रतीक है. मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है, लेकिन एक मिट्टी का पिंड बना हुआ है, जिसको यहां के लोग भाई बहन का प्रतीक बताते हैं. मंदिर निर्माण होने के बाद इस मंदिर का नाम भैया बहिनी रखा गया. तब से यह मंदिर जिले में विख्यात हो गया है.