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Punjab Assembly Election: कुछ ही परिवारों के ईर्द-गिर्द घूमती है पंजाब की राजनीति - Majithia family

देश की राजनीति में वंशवाद और परिवारवाद हमेशा से गर्म विषय रहा है. अधिकांश पार्टियों में परिवारवाद बढ़ रहा है. पंजाब की राजनीति भी कोई अपवाद नहीं है. पंजाब की राजनीति (politics of punjab) कुछ ही परिवारों के इर्द-गिर्द घूमती रही है. ये वो राजनीतिक घराने हैं, जो कभी हावी रहे लेकिन अब उनकी शक्ति सीमित होती जा रही है.

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प्रतीकात्मक फोटो
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Published : Feb 13, 2022, 5:48 PM IST

चंडीगढ़: देश में वंशवाद की बहस दशकों से चल रही है. पंजाब में ही नहीं पूरे देश में वंशवाद का बोलबाला है. बड़े राजवंशों का प्रभुत्व है जबकि छोटे राजवंशों का राजनीति में आना-जाना रहा है. पंजाब की राजनीति (politics of punjab) कुछ राजनीतिक घरानों के इर्द-गिर्द घूमती रही है. बादल परिवार हो या पटियाला का शाही परिवार, मजीठिया परिवार हो या सराय नागा का बराड़ परिवार, कैरों परिवार हो या जाखड़ परिवार सभी की पंजाब में अच्छी राजनैतिक पकड़ है. कुछ परिवार ऐसे भी हैं जिनके आपस में संबंध हैं और सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. सत्ता एक परिवार के हाथ से जाती है तो दूसरे परिवार के हाथ में आती है. लेकिन रिश्तेदारी सभी की बरकरार है. कुछ परिवार ऐसे भी हैं जिनके नाम ब्रांड थे लेकिन अब समय बीतने के साथ वे हाशिए पर चले गए हैं.

बादल परिवार

दस बार के विधायक और पांच बार मुख्यमंत्री रहे 94 वर्षीय प्रकाश सिंह बादल इस राजनीतिक परिवार के मुखिया हैं. प्रकाश सिंह बादल ने शिरोमणि अकाली दल (SAD) की स्थापना की और सिख राजनीति के प्रमुख हैं. उन्हें पूरे देश में मृदुभाषी सिख नेता के रूप में जाना जाता है. अब उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल अकाली दल के अध्यक्ष हैं. बादल के कई परिवारों से राजनीतिक संबंध रहे हैं. मजीठिया परिवार से उनके घनिष्ठ संबंध हैं. मजीठिया राजघराने से आने वाली हरसिमरत कौर प्रकाश सिंह बादल की बहू और सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हैं. मजीठिया परिवार स्वयं सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह के मजीठिया सेनापति अत्तर सिंह मजीठिया के वंशज हैं.

हरसिमरत बादल ने 2009 में अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी. उन्होंने बठिंडा सीट से पटियाला शाही परिवार के उत्तराधिकारी और पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के बेटे रनिंदर सिंह को हराया था. इन दिनों पंजाब की राजनीति में मशहूर बिक्रम सिंह मजीठिया उनके भाई हैं. हाल ही में पंजाब की चरणजीत सिंह चन्नी सरकार ने बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ ड्रग्स रैकेट मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई. प्रकाश सिंह बादल के भाई गुरदास बादल खुद सांसद और विधायक रहे. उनके बेटे मनप्रीत बादल ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत अकाली दल से की लेकिन बाद में उनका अपने चचेरे भाई सुखबीर सिंह बादल से अनबन हो गई. उन्होंने अकाली दल को छोड़कर अपनी पार्टी बनाई, जिसका बाद में कांग्रेस में विलय हो गया. वह निवर्तमान वित्त मंत्री और बठिंडा अर्बन से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं.

पटियाला का शाही परिवार

पटियाला लंबे समय से पंजाब की राजनीति का केंद्र रहा है. पटियाला ने पंजाब को अपनी राजनीतिक स्थिति और प्रभाव से प्रभावित किया है. पटियाला राजपरिवार का कांग्रेस से पुराना नाता रहा. हालांकि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अब कांग्रेस छोड़ दी है और उनकी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस बीजेपी की सहयोगी है. लेकिन 2002 में जब कैप्टन अमरिंदर सिंह प्रकाश सिंह बादल को हराकर पहली बार सीएम बने तो उन्होंने कांग्रेस का झंडा फहराया था. कैप्टन अमरिंदर के पिता यादविंदर सिंह और मां मोहिंदर कौर दोनों ही कांग्रेस से जुड़ी हुई थीं. मोहिंदर कौर पहले कांग्रेस से राज्यसभा गईं, फिर चौथी लोकसभा (1967-71) में कांग्रेस के टिकट पर पटियाला से सांसद बनीं.

उनके इंदिरा गांधी के साथ घनिष्ठ संबंध थे. कैप्टन अमरिंदर के पिता यदविंदर सिंह की हेग में मृत्यु हो गई थी, जब वह नीदरलैंड में भारत के राजदूत के रूप में सेवा दे रहे थे. राजीव गांधी उन्हें राजनीति में लाये. स्कूल के दिनों से ही राजीव उनके दोस्त थे. 1980 में कैप्टन अमरिंदर ने पटियाला सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. ​​1984 के बाद अमरिंदर अकाली दल में चले गए और फिर कांग्रेस में लौट आए. परनीत कौर कैप्टन अमरिंदर की पत्नी हैं. परनीत कौर खुद तीन बार सांसद रह चुकी हैं. वह मनमोहन सिंह सरकार (यूपीए-2) में राज्य मंत्री भी थीं. परनीत और अमरिंदर के बेटे रनिंदर सिंह भी राजनीति में हैं. अपने पिता की तरह उन्होंने भी अपनी राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से की थी. 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने हरसिमरत कौर के खिलाफ बठिंडा से चुनाव लड़ा था. यह चुनाव राजनीतिक परिवारों का राजनीतिक अखाड़ा बन गया था लेकिन वे इस चुनाव में हार गए.

सराय नागा का बराड़ वंश

बराड़ परिवार दक्षिण-पश्चिम पंजाब का एक और शक्तिशाली परिवार है. यह परिवार सरपंच से लेकर पंजाब के सीएम तक का सफर तय कर चुका है. 1919 में एक जाट परिवार में पैदा हुए हरचरण सिंह बराड़ 1995 में कांग्रेस की ओर से पंजाब के मुख्यमंत्री बने. बेअंत सिंह के आतंकवादी हमले में मारे जाने पर उन्हें पंजाब की कुर्सी मिली. हरचरण सिंह बराड़ का जन्म सराय नागा गांव में हुआ था. हरचरण सिंह बराड़ का वैवाहिक संबंध भी एक राजनीतिक परिवार में हुआ. उन्होंने पंजाब के पूर्व सीएम प्रताप सिंह कैरों की भतीजी गुरबिंदर कौर से शादी की थी. हरचरण सिंह बराड़ और गुरबिंदर कौर के दो बच्चे हैं. कंवरजीत सिंह बराड़ और कमलजीत बराड़ उर्फ ​​बबली. कंवरजीत सिंह बराड़ दो बार विधायक बने.

पहली बार 1977 में और दूसरी बार 2007 में. कंवरजीत सिंह बराड़ का निजी जीवन भी राजनीति से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका. उन्होंने करण कौर बराड़ से शादी की है. करण कौर बराड़ की बहन हरिप्रिया की शादी कैप्टन अमरिंदर के छोटे भाई मलविंदर से हुई है. करण कौर बराड़ ने 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में खुद को कैप्टन अमरिंदर सिंह की भाभी के रूप में पेश किया था. कंवरजीत सिंह बराड़ कांग्रेस में कई पदों पर रहे. वह पंजाब कांग्रेस के उपाध्यक्ष थे. कंवरजीत सिंह बराड़ कैंसर से पीड़ित थे. इसके बाद उनकी पत्नी करण कौर बराड़ ने उनकी राजनीतिक विरासत संभाली. वह 2012 में मुक्तसर विधानसभा से कांग्रेस के टिकट पर उतरीं. चुनाव परिणाम आने से बमुश्किल दो दिन पहले उनके पति कंवरजीत सिंह की कैंसर से मृत्यु हो गई. अजीब किस्मत का खेल था कि कंवरजीत सिंह इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन मुक्तसर से करण कौर बराड़ चुनाव जीत गई. अब करण कौर बराड़ के छोटे बेटे करणबीर बराड़ बराड़ परिवार की राजनीतिक विरासत को संभाल रहे हैं.

मजीठिया परिवार

मजीठा अमृतसर जिले का एक इलाका है और यहीं से पंजाब की राजनीति में मजीठिया घराने का उदय हुआ. मजीठिया परिवार ने पंजाब को मुख्यमंत्री नहीं दिया लेकिन राज्य में उनकी स्थिति कम नहीं रही. यह परिवार सिखों की धार्मिक और राजनीतिक धारा को प्रभावित करने की क्षमता रखता है. मजीठिया परिवार पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के दरबार का योद्धा बताता है. सुंदर सिंह मजीठिया शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पहले अध्यक्ष बने और विभाजन से पहले और बाद में संयुक्त पंजाब में सिख राजनीति पर प्रभाव डाला. सुंदर सिंह मजीठिया बिक्रम मजीठिया के दादा थे.

बिक्रम मजीठिया और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर भाई-बहन हैं. बिक्रम मजीठिया के दादा सुरजीत सिंह मजीठिया जवाहरलाल नेहरू के समय में भारत के उप रक्षा मंत्री (1952-62) थे. बिक्रम मजीठिया के पिता का नाम सत्यजीत मजीठिया है. बादल और मजीठिया परिवार के पारिवारिक संबंधों ने सत्ता और धन के मेल को और भी शक्तिशाली बना दिया. सत्यजीत मजीठिया एक बड़े बिजनेस हाउस के मालिक हैं. सराया ग्रुप सत्यजीत मजीठिया का है. चीनी और शराब के क्षेत्र में इस समूह का बड़ा दखल है. बादलों के साये में बिक्रम मजीठिया अकाली दल में तेजी से उभरे. 2002 में वे यूथ अकाली दल में शामिल हो गए फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

2007 में उन्होंने अकाली दल के टिकट पर मजीठा सीट से चुनाव लड़ा और कांग्रेस को इस सीट से इस तरह बाहर कर दिया कि कांग्रेस वापसी नहीं कर पाई. बिक्रम मजीठिया यहां से लगातार 2007, 12 और 17 में विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं. वह अकाली सरकार में कैबिनेट मंत्री बने. बिक्रम का नाम अब चर्चा में है क्योंकि वह पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ अमृतसर पूर्व से चुनाव लड़ रहे हैं. अकाली सरकार के दौरान बिक्रम मजीठिया का कद इस तरह से बढ़ गया कि उन्हें माझा क्षेत्र के जरनैल के रूप में जाना जाने लगा. बिक्रम मजीठिया ड्रग्स मामले में कानूनी कार्रवाई का सामना कर रहे हैं.

कैरों परिवार

कैरों तरनतारन जिले का एक गांव है. जाट सिखों के वर्चस्व वाले इस गांव से कैरों वंश का उदय हुआ. पंजाब को मुख्यमंत्री जिसने दिया, उसका नाम प्रताप सिंह कैरों है. अमृतसर से ग्रेजुएशन करने के बाद कैरों उस दौर में पढ़ने के लिए अमेरिका चले गए. प्रताप सिंह कैरों भी स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए और जेल गए. आजादी के बाद 1956 में वे पंजाब के मुख्यमंत्री बने और 1964 तक इस पद पर रहे. उन्होंने अमेरिका में सीखी गई नई कृषि तकनीकों का इस्तेमाल पंजाब में किया और राज्य में हरित क्रांति का रास्ता खोल दिया. दिल्ली से चंडीगढ़ आते समय 6 फरवरी 1965 को सोनीपत में उनकी हत्या कर दी गई थी.

प्रताप सिंह कैरों की राजनीतिक विरासत उनके बेटों सुरिंदर सिंह कैरों और गुरिंदर सिंह कैरों ने संभाली. गुरिंदर सिंह कैरों अपने पिता की तरह कांग्रेसी बने रहे लेकिन उनके बड़े बेटे सुरिंदर सिंह कैरों शिरोमणि अकाली दल में शामिल हो गए. वे तरनतारन से सांसद बने और 3 बार विधायक भी रहे. सुरिंदर सिंह कैरों की राजनीतिक विरासत वर्तमान में अकाली दल के वरिष्ठ नेता आदेश प्रताप सिंह कैरों के हाथों में है. आदेश प्रताप सिंह कैरों पट्टी विधानसभा से चार चुनाव जीत चुके हैं और अकाली सरकार में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री थे. वह अभी भी विधानसभा चुनाव के क्षेत्र से अकाली दल के टिकट पर लड़ रहे हैं. आदेश प्रताप सिंह कैरों पंजाब के पूर्व सीएम और वरिष्ठ बादल प्रकाश सिंह बादल के दामाद हैं. 1982 में उन्होंने परनीत कौर से शादी कर ली.

यह भी पढ़ें- पंजाब विधानसभा चुनाव : सीएम उम्मीदवार के नामों का ऐलान करना सियासी मजबूरी

मान परिवार

पूर्व सांसद सिमरनजीत सिंह मान और कैप्टन अमरिंदर सिंह साढ़ू-भाई हैं और पंजाब की राजनीति में सक्रिय हैं. कैप्टन अमरिंदर की पत्नी परनीत कौर और सिमरनजीत सिंह मान की पत्नी गीतिंदर कौर सगी बहनें हैं. परनीत और गीतिंदर के पिता ज्ञान सिंह कहलों नौकरशाह रह ​​चुके हैं. वह पंजाब के पूर्व मुख्य सचिव रह चुके हैं. ज्ञान सिंह कहलों ने अपनी दोनों बेटियों को विरासत में राजनीति दी. इसलिए दोनों सक्रिय राजनीति में बनी हुई हैं. परनीत केंद्रीय मंत्री रह चुकी हैं जबकि गीतिंदर पार्टी में काम करती हैं. सिमरनजीत सिंह मान शिरोमणि अकाली दल अमृतसर नाम से एक अलग पार्टी चलाते हैं. सिमरनजीत सिंह मान ने इस विधानसभा के लिए 43 सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की सूची भी जारी कर दी है. सिमरनजीत सिंह मान तरनतारन से दो बार सांसद रह चुके हैं. स्वर्ण मंदिर पर इंदिरा गांधी की कार्रवाई का विरोध करने के लिए अपनी IPS की नौकरी छोड़ने वाले सिमरनजीत सिंह मान सिख अपने अकाली दल अमृतसर को एक प्रभावशाली पार्टी बनाने की कोशिश कर रहे हैं. उनके एजेंडे में खालिस्तान की मांग भी शामिल है.

जाखड़ खानदान

डॉ. बलराम जाखड़ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता थे. भारत के पूर्व लोकसभा अध्यक्ष होने के अलावा वह मध्य प्रदेश प्रांत के राज्यपाल रह चुके हैं. उनका जन्म पंजाब में 23 अगस्त 1923 को फिरोजपुर जिले के पंचकोसी गांव में हुआ था. उन्होंने राजस्थान के सीकर जिले से लोकसभा में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का प्रतिनिधित्व किया और 1980 से 10 वर्षों तक लोकसभा के अध्यक्ष रहे. पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और कांग्रेस नेता बलराम जाखड़ का 3 फरवरी 2016 को निधन हो गया. जाखड़ ने अपना ध्यान केंद्रीय राजनीति की ओर लगाया और उनके बड़े बेटे सज्जन कुमार पंजाब में सक्रिय राजनीति में शामिल हो गए. सज्जन 1980 में पहली बार अबोहर से विधायक बने लेकिन 1985 में वह इस सीट से भाजपा से हार गए. उन्होंने 1992 में फिर से यह सीट जीती लेकिन 1997 में हार गए. उन्होंने राज्य के कृषि मंत्री के रूप में भी काम किया. सज्जन के बेटे अजय वीर पंजाब किसान आयोग के अध्यक्ष हैं.

यह भी पढ़ें- कांग्रेस ने पंजाब चुनावों के प्रबंधन के लिए वरिष्ठों पर दांव लगाया

बलराम जाखड़ के सबसे छोटे बेटे सुनील जाखड़ ने 2002 से 2012 तक लगातार तीन बार अबोहर सीट से जीत हासिल की. 2012 से 2017 तक उन्होंने विपक्ष के नेता के रूप में काम किया. वह 2017 में एक उपचुनाव में गुरदासपुर से लोकसभा के लिए चुने गए थे और पिछले साल तक राज्य कांग्रेस प्रमुख भी रहे. जब उन्हें नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था. अमरिंदर सिंह को हटाने के बाद उनका नाम मुख्यमंत्री पद के लिए आगे बढ़ा लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बलराम जाखड़ के मंझले बेटे सुरिंदर सहकारिता आंदोलन से जुड़े थे. वह कई बार एशिया की सबसे बड़ी सहकारी उर्वरक कंपनी इफको के अध्यक्ष रहे.

चंडीगढ़: देश में वंशवाद की बहस दशकों से चल रही है. पंजाब में ही नहीं पूरे देश में वंशवाद का बोलबाला है. बड़े राजवंशों का प्रभुत्व है जबकि छोटे राजवंशों का राजनीति में आना-जाना रहा है. पंजाब की राजनीति (politics of punjab) कुछ राजनीतिक घरानों के इर्द-गिर्द घूमती रही है. बादल परिवार हो या पटियाला का शाही परिवार, मजीठिया परिवार हो या सराय नागा का बराड़ परिवार, कैरों परिवार हो या जाखड़ परिवार सभी की पंजाब में अच्छी राजनैतिक पकड़ है. कुछ परिवार ऐसे भी हैं जिनके आपस में संबंध हैं और सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. सत्ता एक परिवार के हाथ से जाती है तो दूसरे परिवार के हाथ में आती है. लेकिन रिश्तेदारी सभी की बरकरार है. कुछ परिवार ऐसे भी हैं जिनके नाम ब्रांड थे लेकिन अब समय बीतने के साथ वे हाशिए पर चले गए हैं.

बादल परिवार

दस बार के विधायक और पांच बार मुख्यमंत्री रहे 94 वर्षीय प्रकाश सिंह बादल इस राजनीतिक परिवार के मुखिया हैं. प्रकाश सिंह बादल ने शिरोमणि अकाली दल (SAD) की स्थापना की और सिख राजनीति के प्रमुख हैं. उन्हें पूरे देश में मृदुभाषी सिख नेता के रूप में जाना जाता है. अब उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल अकाली दल के अध्यक्ष हैं. बादल के कई परिवारों से राजनीतिक संबंध रहे हैं. मजीठिया परिवार से उनके घनिष्ठ संबंध हैं. मजीठिया राजघराने से आने वाली हरसिमरत कौर प्रकाश सिंह बादल की बहू और सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हैं. मजीठिया परिवार स्वयं सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह के मजीठिया सेनापति अत्तर सिंह मजीठिया के वंशज हैं.

हरसिमरत बादल ने 2009 में अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी. उन्होंने बठिंडा सीट से पटियाला शाही परिवार के उत्तराधिकारी और पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के बेटे रनिंदर सिंह को हराया था. इन दिनों पंजाब की राजनीति में मशहूर बिक्रम सिंह मजीठिया उनके भाई हैं. हाल ही में पंजाब की चरणजीत सिंह चन्नी सरकार ने बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ ड्रग्स रैकेट मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई. प्रकाश सिंह बादल के भाई गुरदास बादल खुद सांसद और विधायक रहे. उनके बेटे मनप्रीत बादल ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत अकाली दल से की लेकिन बाद में उनका अपने चचेरे भाई सुखबीर सिंह बादल से अनबन हो गई. उन्होंने अकाली दल को छोड़कर अपनी पार्टी बनाई, जिसका बाद में कांग्रेस में विलय हो गया. वह निवर्तमान वित्त मंत्री और बठिंडा अर्बन से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं.

पटियाला का शाही परिवार

पटियाला लंबे समय से पंजाब की राजनीति का केंद्र रहा है. पटियाला ने पंजाब को अपनी राजनीतिक स्थिति और प्रभाव से प्रभावित किया है. पटियाला राजपरिवार का कांग्रेस से पुराना नाता रहा. हालांकि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अब कांग्रेस छोड़ दी है और उनकी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस बीजेपी की सहयोगी है. लेकिन 2002 में जब कैप्टन अमरिंदर सिंह प्रकाश सिंह बादल को हराकर पहली बार सीएम बने तो उन्होंने कांग्रेस का झंडा फहराया था. कैप्टन अमरिंदर के पिता यादविंदर सिंह और मां मोहिंदर कौर दोनों ही कांग्रेस से जुड़ी हुई थीं. मोहिंदर कौर पहले कांग्रेस से राज्यसभा गईं, फिर चौथी लोकसभा (1967-71) में कांग्रेस के टिकट पर पटियाला से सांसद बनीं.

उनके इंदिरा गांधी के साथ घनिष्ठ संबंध थे. कैप्टन अमरिंदर के पिता यदविंदर सिंह की हेग में मृत्यु हो गई थी, जब वह नीदरलैंड में भारत के राजदूत के रूप में सेवा दे रहे थे. राजीव गांधी उन्हें राजनीति में लाये. स्कूल के दिनों से ही राजीव उनके दोस्त थे. 1980 में कैप्टन अमरिंदर ने पटियाला सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. ​​1984 के बाद अमरिंदर अकाली दल में चले गए और फिर कांग्रेस में लौट आए. परनीत कौर कैप्टन अमरिंदर की पत्नी हैं. परनीत कौर खुद तीन बार सांसद रह चुकी हैं. वह मनमोहन सिंह सरकार (यूपीए-2) में राज्य मंत्री भी थीं. परनीत और अमरिंदर के बेटे रनिंदर सिंह भी राजनीति में हैं. अपने पिता की तरह उन्होंने भी अपनी राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से की थी. 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने हरसिमरत कौर के खिलाफ बठिंडा से चुनाव लड़ा था. यह चुनाव राजनीतिक परिवारों का राजनीतिक अखाड़ा बन गया था लेकिन वे इस चुनाव में हार गए.

सराय नागा का बराड़ वंश

बराड़ परिवार दक्षिण-पश्चिम पंजाब का एक और शक्तिशाली परिवार है. यह परिवार सरपंच से लेकर पंजाब के सीएम तक का सफर तय कर चुका है. 1919 में एक जाट परिवार में पैदा हुए हरचरण सिंह बराड़ 1995 में कांग्रेस की ओर से पंजाब के मुख्यमंत्री बने. बेअंत सिंह के आतंकवादी हमले में मारे जाने पर उन्हें पंजाब की कुर्सी मिली. हरचरण सिंह बराड़ का जन्म सराय नागा गांव में हुआ था. हरचरण सिंह बराड़ का वैवाहिक संबंध भी एक राजनीतिक परिवार में हुआ. उन्होंने पंजाब के पूर्व सीएम प्रताप सिंह कैरों की भतीजी गुरबिंदर कौर से शादी की थी. हरचरण सिंह बराड़ और गुरबिंदर कौर के दो बच्चे हैं. कंवरजीत सिंह बराड़ और कमलजीत बराड़ उर्फ ​​बबली. कंवरजीत सिंह बराड़ दो बार विधायक बने.

पहली बार 1977 में और दूसरी बार 2007 में. कंवरजीत सिंह बराड़ का निजी जीवन भी राजनीति से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका. उन्होंने करण कौर बराड़ से शादी की है. करण कौर बराड़ की बहन हरिप्रिया की शादी कैप्टन अमरिंदर के छोटे भाई मलविंदर से हुई है. करण कौर बराड़ ने 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में खुद को कैप्टन अमरिंदर सिंह की भाभी के रूप में पेश किया था. कंवरजीत सिंह बराड़ कांग्रेस में कई पदों पर रहे. वह पंजाब कांग्रेस के उपाध्यक्ष थे. कंवरजीत सिंह बराड़ कैंसर से पीड़ित थे. इसके बाद उनकी पत्नी करण कौर बराड़ ने उनकी राजनीतिक विरासत संभाली. वह 2012 में मुक्तसर विधानसभा से कांग्रेस के टिकट पर उतरीं. चुनाव परिणाम आने से बमुश्किल दो दिन पहले उनके पति कंवरजीत सिंह की कैंसर से मृत्यु हो गई. अजीब किस्मत का खेल था कि कंवरजीत सिंह इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन मुक्तसर से करण कौर बराड़ चुनाव जीत गई. अब करण कौर बराड़ के छोटे बेटे करणबीर बराड़ बराड़ परिवार की राजनीतिक विरासत को संभाल रहे हैं.

मजीठिया परिवार

मजीठा अमृतसर जिले का एक इलाका है और यहीं से पंजाब की राजनीति में मजीठिया घराने का उदय हुआ. मजीठिया परिवार ने पंजाब को मुख्यमंत्री नहीं दिया लेकिन राज्य में उनकी स्थिति कम नहीं रही. यह परिवार सिखों की धार्मिक और राजनीतिक धारा को प्रभावित करने की क्षमता रखता है. मजीठिया परिवार पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के दरबार का योद्धा बताता है. सुंदर सिंह मजीठिया शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पहले अध्यक्ष बने और विभाजन से पहले और बाद में संयुक्त पंजाब में सिख राजनीति पर प्रभाव डाला. सुंदर सिंह मजीठिया बिक्रम मजीठिया के दादा थे.

बिक्रम मजीठिया और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर भाई-बहन हैं. बिक्रम मजीठिया के दादा सुरजीत सिंह मजीठिया जवाहरलाल नेहरू के समय में भारत के उप रक्षा मंत्री (1952-62) थे. बिक्रम मजीठिया के पिता का नाम सत्यजीत मजीठिया है. बादल और मजीठिया परिवार के पारिवारिक संबंधों ने सत्ता और धन के मेल को और भी शक्तिशाली बना दिया. सत्यजीत मजीठिया एक बड़े बिजनेस हाउस के मालिक हैं. सराया ग्रुप सत्यजीत मजीठिया का है. चीनी और शराब के क्षेत्र में इस समूह का बड़ा दखल है. बादलों के साये में बिक्रम मजीठिया अकाली दल में तेजी से उभरे. 2002 में वे यूथ अकाली दल में शामिल हो गए फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

2007 में उन्होंने अकाली दल के टिकट पर मजीठा सीट से चुनाव लड़ा और कांग्रेस को इस सीट से इस तरह बाहर कर दिया कि कांग्रेस वापसी नहीं कर पाई. बिक्रम मजीठिया यहां से लगातार 2007, 12 और 17 में विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं. वह अकाली सरकार में कैबिनेट मंत्री बने. बिक्रम का नाम अब चर्चा में है क्योंकि वह पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ अमृतसर पूर्व से चुनाव लड़ रहे हैं. अकाली सरकार के दौरान बिक्रम मजीठिया का कद इस तरह से बढ़ गया कि उन्हें माझा क्षेत्र के जरनैल के रूप में जाना जाने लगा. बिक्रम मजीठिया ड्रग्स मामले में कानूनी कार्रवाई का सामना कर रहे हैं.

कैरों परिवार

कैरों तरनतारन जिले का एक गांव है. जाट सिखों के वर्चस्व वाले इस गांव से कैरों वंश का उदय हुआ. पंजाब को मुख्यमंत्री जिसने दिया, उसका नाम प्रताप सिंह कैरों है. अमृतसर से ग्रेजुएशन करने के बाद कैरों उस दौर में पढ़ने के लिए अमेरिका चले गए. प्रताप सिंह कैरों भी स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए और जेल गए. आजादी के बाद 1956 में वे पंजाब के मुख्यमंत्री बने और 1964 तक इस पद पर रहे. उन्होंने अमेरिका में सीखी गई नई कृषि तकनीकों का इस्तेमाल पंजाब में किया और राज्य में हरित क्रांति का रास्ता खोल दिया. दिल्ली से चंडीगढ़ आते समय 6 फरवरी 1965 को सोनीपत में उनकी हत्या कर दी गई थी.

प्रताप सिंह कैरों की राजनीतिक विरासत उनके बेटों सुरिंदर सिंह कैरों और गुरिंदर सिंह कैरों ने संभाली. गुरिंदर सिंह कैरों अपने पिता की तरह कांग्रेसी बने रहे लेकिन उनके बड़े बेटे सुरिंदर सिंह कैरों शिरोमणि अकाली दल में शामिल हो गए. वे तरनतारन से सांसद बने और 3 बार विधायक भी रहे. सुरिंदर सिंह कैरों की राजनीतिक विरासत वर्तमान में अकाली दल के वरिष्ठ नेता आदेश प्रताप सिंह कैरों के हाथों में है. आदेश प्रताप सिंह कैरों पट्टी विधानसभा से चार चुनाव जीत चुके हैं और अकाली सरकार में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री थे. वह अभी भी विधानसभा चुनाव के क्षेत्र से अकाली दल के टिकट पर लड़ रहे हैं. आदेश प्रताप सिंह कैरों पंजाब के पूर्व सीएम और वरिष्ठ बादल प्रकाश सिंह बादल के दामाद हैं. 1982 में उन्होंने परनीत कौर से शादी कर ली.

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मान परिवार

पूर्व सांसद सिमरनजीत सिंह मान और कैप्टन अमरिंदर सिंह साढ़ू-भाई हैं और पंजाब की राजनीति में सक्रिय हैं. कैप्टन अमरिंदर की पत्नी परनीत कौर और सिमरनजीत सिंह मान की पत्नी गीतिंदर कौर सगी बहनें हैं. परनीत और गीतिंदर के पिता ज्ञान सिंह कहलों नौकरशाह रह ​​चुके हैं. वह पंजाब के पूर्व मुख्य सचिव रह चुके हैं. ज्ञान सिंह कहलों ने अपनी दोनों बेटियों को विरासत में राजनीति दी. इसलिए दोनों सक्रिय राजनीति में बनी हुई हैं. परनीत केंद्रीय मंत्री रह चुकी हैं जबकि गीतिंदर पार्टी में काम करती हैं. सिमरनजीत सिंह मान शिरोमणि अकाली दल अमृतसर नाम से एक अलग पार्टी चलाते हैं. सिमरनजीत सिंह मान ने इस विधानसभा के लिए 43 सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की सूची भी जारी कर दी है. सिमरनजीत सिंह मान तरनतारन से दो बार सांसद रह चुके हैं. स्वर्ण मंदिर पर इंदिरा गांधी की कार्रवाई का विरोध करने के लिए अपनी IPS की नौकरी छोड़ने वाले सिमरनजीत सिंह मान सिख अपने अकाली दल अमृतसर को एक प्रभावशाली पार्टी बनाने की कोशिश कर रहे हैं. उनके एजेंडे में खालिस्तान की मांग भी शामिल है.

जाखड़ खानदान

डॉ. बलराम जाखड़ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता थे. भारत के पूर्व लोकसभा अध्यक्ष होने के अलावा वह मध्य प्रदेश प्रांत के राज्यपाल रह चुके हैं. उनका जन्म पंजाब में 23 अगस्त 1923 को फिरोजपुर जिले के पंचकोसी गांव में हुआ था. उन्होंने राजस्थान के सीकर जिले से लोकसभा में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का प्रतिनिधित्व किया और 1980 से 10 वर्षों तक लोकसभा के अध्यक्ष रहे. पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और कांग्रेस नेता बलराम जाखड़ का 3 फरवरी 2016 को निधन हो गया. जाखड़ ने अपना ध्यान केंद्रीय राजनीति की ओर लगाया और उनके बड़े बेटे सज्जन कुमार पंजाब में सक्रिय राजनीति में शामिल हो गए. सज्जन 1980 में पहली बार अबोहर से विधायक बने लेकिन 1985 में वह इस सीट से भाजपा से हार गए. उन्होंने 1992 में फिर से यह सीट जीती लेकिन 1997 में हार गए. उन्होंने राज्य के कृषि मंत्री के रूप में भी काम किया. सज्जन के बेटे अजय वीर पंजाब किसान आयोग के अध्यक्ष हैं.

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बलराम जाखड़ के सबसे छोटे बेटे सुनील जाखड़ ने 2002 से 2012 तक लगातार तीन बार अबोहर सीट से जीत हासिल की. 2012 से 2017 तक उन्होंने विपक्ष के नेता के रूप में काम किया. वह 2017 में एक उपचुनाव में गुरदासपुर से लोकसभा के लिए चुने गए थे और पिछले साल तक राज्य कांग्रेस प्रमुख भी रहे. जब उन्हें नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था. अमरिंदर सिंह को हटाने के बाद उनका नाम मुख्यमंत्री पद के लिए आगे बढ़ा लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बलराम जाखड़ के मंझले बेटे सुरिंदर सहकारिता आंदोलन से जुड़े थे. वह कई बार एशिया की सबसे बड़ी सहकारी उर्वरक कंपनी इफको के अध्यक्ष रहे.

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