पटना सिटी/नई दिल्ली: सिख धर्म के दसवें एवं अंतिम गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज का आज (रविवार) 355वां प्रकाशपर्व (Prakash Parva in Patna) है. कोरोना पाबंदियों के कारण गुरुपर्व के सभी कार्यक्रम सांकेतिक हो रहा है. सभी सार्वजनिक आयोजनों को रद्द कर दिया गया है.
सार्वजनिक रद्द होने से सिख समुदाय के श्रद्धालुओं के साथ-साथ सभी धर्मों के लोगों को खल रहा है. 'जो बोले सो निहाल-सत श्री अकाल', 'बाय गुरुजी का खालसा-वाय गुरुजी की फतेह' की गूंज इस बार उस रूप में नहीं सुनाई देगी, जैसा पहले के वर्षों में सुना जाता था. वहीं, आज गायघाट से गुरुमहाराज का नगर कीर्तन पंच प्यारे की अगुवाई में तख्त साहिब पहुंचे हैं. आज रात को सिख परंपरानुसार गुरुगोविंद सिंह जी महाराज का प्रकाशपर्व मनाया जाएगा.
इससे पहले प्रकाशपर्व के पूर्व संध्या पर आकर्षक रोशनी से गुरुद्वारा को सजाया गया था.
गौरतलब है कि कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए सरकार की ओर से अपील पर प्रबंधन कमेटी ने गुरुपर्व को सार्वजनिक न कर सांकेतिक कर दिया है. कमेटी ने भी कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए बाहर से आने वाले सभी श्रद्धालुओं से घर में ही रहने की अपील की है. जो श्रद्धालु गुरुपर्व में शामिल होने पहुंच चुके हैं, उन्हें कोविड प्रोटोकॉल के तहत गुरुपर्व में शामिल होने की अनुमति कमेटी की ओर से दी गई है. ज्ञात हो कि हर साल पटना साहिब में प्रकाश पर्व को मनाने देश-विदेश से श्रद्धालु गुरू के पावन प्रकाशपर्व पर आते हैं. इस साल भी बढ़ी संख्या में लोग यहां आने वाले थे, लेकिन कोरोना संकट और सरकार की ओर से जारी पाबंदियों के कारण ऐसा संभव नहीं हो पाया.
दिल्ली में प्रकाश पर्व पर श्रद्धालुओं को गुरुद्वारा जाने की अनुमति
दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) ने श्रद्धालुओं को गुरु गोविंद सिंह के प्रकाश पर्व के अवसर पर राष्ट्रीय राजधानी के गुरुद्वारों में जाने की अनुमति दी है. हालांकि, कोविड-19 के बढ़ते मामलों के बीच, अधिकारियों ने दिल्ली में धार्मिक स्थलों को खुले रहने की अनुमति दी थी, लेकिन श्रद्धालुओं को अनुमति नहीं है. इसके बावजूद डीडीएमए ने सिख गुरु गोविंद सिंह की जयंती के अवसर पर एक विशेष अनुमति दी जो कि कोविड मानदंडों के अनुपालन के साथ है.
प्रधानमंत्री मोदी ने श्रद्धांजलि दी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिखों के 10वें गुरु गोविंद सिंह के प्रकाश पर्व पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए रविवार को कहा कि उनका जीवन और संदेश लाखों लोगों को ताकत देता है. पीएम मोदी ने ट्वीट किया कि उन्हें हमेशा इस बात की खुशी रहेगी कि उनकी सरकार को गुरु गोबिंद सिंह की जयंती मनाने का अवसर मिला. उन्होंने 2017 में मनाए गए गुरु गोबिंद सिंह के 350वें प्रकाश उत्सव के अवसर पर अपने पटना दौरे की कुछ तस्वीरें ट्विटर पर साझा कीं, जिनमें वह पटना साहिब गुरुद्वारे में मत्था टेकते दिखाई दे रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि इतिहास में गुरु गोविंद सिंह एक विलक्षण क्रांतिकारी संत व्यक्तित्व हैं. गुरु गोविंद सिंहजी ने राष्ट्र के उत्थान के लिए संघर्ष के साथ-साथ निर्माण की राह अपनायी है.
गुरु गोविंद सिंह केवल आदर्शवादी नहीं थे, बल्कि वे एक आध्यात्मिक गुरु भी, उन्होंने मानवता को शांति, प्रेम, एकता, समानता एवं समृद्धि का रास्ता दिखाया. वे व्यावहारिक एवं यथार्थवादी होने के साथ अपने अनुयायियों को धर्म की पुरानी और अनुदार परंपराओं से नहीं बांधा बल्कि उन्हें नए रास्ते बताते हुए आध्यात्मिकता के प्रति व्यावहारिक दृष्टिकोण दिखाया.
संन्यासी जीवन के संबंध में गुरु गोविंद सिंह ने कहा है कि एक सिख के लिए संसार से विरक्त होना आवश्यक नहीं है तथा अनुरक्ति भी जरूरी नहीं है, किंतु व्यावहारिक सिद्धांत पर सदा कर्म करते रहना परम आवश्यक है.
गोविंद सिंह ने कभी भी जमीन, धन-संपदा, राजसत्ता-प्राप्ति या यश-प्राप्ति के लिए लड़ाइयां नहीं लड़ीं. उनकी लड़ाई होती थी अन्याय, अधर्म एवं अत्याचार और दमन के खिलाफ. युद्ध के बारे में वे कहते थे कि जीत सैनिकों की संख्या पर निर्भर नहीं, उनके हौसले एवं दृढ़ इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है. जो नैतिक एवं सच्चे उसूलों के लिए लड़ता है, वह धर्मयोद्धा होता है तथा ईश्वर उसे विजयी बनाता है.
गुरु गोविंद सिंह द्वारा खालसा पंथ की स्थापना (1699) देश के चौमुखी उत्थान की व्यापक कल्पना थी. बाबा बुड्ढाजी ने गुरु गोविंद सिंह को मीरी और पीरी दो तलवारें पहनाई थीं. एक आध्यात्मिकता की प्रतीक थी, तो दूसरी नैतिकता यानी सांसारिकता की. देश की अस्मिता, भारतीय विरासत और जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए समाज को नए सिरे से तैयार करने के लिए उन्होंने खालसा के सृजन का मार्ग अपनाया.
खालसा के माध्यम से उन्होंने राजनीतिक एवं सामाजिक विचारों को आकार दिया. आनंदपुर साहिब के मेले के अवसर पर सिखों की सभा में 'गुरु के लिए पांच सिर चाहिए' की आवाज लगाई तथा जो व्यक्ति तैयार हो उसे आगे आने को कहा. एक के बाद एक पांच लोगों को पर्दे के पीछे ले जाया गया तथा तलवार से उनका सिर उड़ा दिया गया. इस प्रकार पांच व्यक्ति आगे आए. बाद में पांचों जीवित बाहर आए और गुरुजी ने उन्हें 'पंच प्यारा' नाम दिया. वे सारे समाज और देश को एक सूत्र में पिरोना चाहते थे. यही भाव सारे समाज में संचरित करने के लिए खालसा के सृजन के बाद गुरु गोविंद सिंह ने खुद पंच प्यारों के चरणों में माथा टेका.
गुरु के आदेश के लिए शीश देने को तत्पर ये युवक विभिन्न जातियों और विभिन्न इलाकों से थे. एक लाहौर से, दूसरा दिल्ली से, तीसरा गुजरात से, चौथा ओडिशा से और पांचवां कर्नाटक से था.