हैदराबाद : राजस्थान सरकार ने अपने राज्य कर्मचारियों के लिए नई पेंशन व्यवस्था के बदले पुरानी पेंशन व्यवस्था को लागू करने का निर्णय लिया है. राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बजट पेश करते समय इसकी घोषणा की. नई पेंशन व्यवस्था 2004 से लागू है. इसका फैसला वाजपेयी सरकार ने लिया था. हालांकि, तब केंद्र सरकार ने राज्यों को इसकी छूट दी थी कि वे अपने-अपने राज्यों में पुरानी व्यवस्था को लागू रख सकते हैं. लेकिन धीरे-धीरे कर राज्यों ने नई पेंशन प्रणाली को ही स्वीकार कर लिया.
इस बीच सरकारी कर्मचारियों का बड़ा धड़ा हमेशा से नई पेंशन प्रणाली को लेकर बहुत ज्यादा खुश नहीं रहा है. वे बीच-बीच में इसके खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं. उनकी मांग पुरानी पेंशन प्रणाली को फिर से लागू करने की रही है. इसमें केंद्र सरकार और राज्य सरकार, दोनों के कर्मचारी शामिल हैं. अब ऐसे में सवाल उठता है कि नई पेंशन व्यवस्था और पुरानी पेंशन व्यवस्था के बीच आखिर क्या अंतर है कि कर्मचारी पुरानी व्यवस्था को ही लागू करवाना चाहते हैं या फिर उन कर्मचारियों पर कहीं राजनीति तो हावी है. क्योंकि उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान ही समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पुरानी पेंशन व्यवस्था को लागू करने की घोषणा कर दी है.
अब इसे जरा ऐसे समझिए, कि राजनीति किस कदर की जा रही है. नई पेंशन व्यवस्था 2004 से लागू है. ऐसे में अभी कितने कर्मचारी रिटायर हुए होंगे, जिन्हें नई पेंशन व्यवस्था के तहत पेंशन मिल रही होगी. जाहिर है, अभी कम से कम 10 साल का और समय लगेगा, जब कर्मचारियों का बड़ा जत्था रिटायर होगा, और तब उसे कहीं इस व्यवस्था के तहत लाभ मिलेंगे.
बहरहाल, दोनों व्यवस्थाओं की जानकारी जरूरी है, जिससे कि आप समझ सकें कि दोनों प्रणालियों में मूल अंतर क्या है. आइए सबसे पहले पुरानी पेंशन व्यवस्था की बात करते हैं. पुरानी पेंशन व्यवस्था में ऐसा क्या था कि उसे लागू करने को लेकर कर्मचारियों का लगातार दबाव बना हुआ है.
- रिटायरमेंट मिलने के बाद पेंशन की सुविधा, यानी प्रतिमाह एक निश्चित राशि मिलती थी. पेंशन की पूरी राशि सरकार देती थी.
- यह राशि किसी कर्मचारी की अंतिम सैलरी का 50 फीसदी हिस्सा होता था. अगर कोई कर्मचारी 10 साल की नौकरी करने के बाद भी रिटायर होता था, तो उसे भी इसी फॉर्मूले के तहत पेंशन मिलती थी.
- पेंशन के लिए वेतन में कटौती नहीं की जाती थी.
- रिटायरमेंट मिलने के बाद बतौर ग्रेच्युटी 16.5 महीने का वेतन मिलता था.
- नौकरी के दरम्यान मृत्यु होने पर ग्रेच्युटी 20 लाख मिलती थी और किसी आश्रित को सरकार नौकरी भी मिल जाती थी.
- पेंशन के दौरान महंगाई भत्ता भी मिलता था.
- अगर जीपीएफ से पैसा निकाला होता था, तो उस पर कोई भी टैक्स देना नहीं पड़ता था.
- पेंशनकर्ता को मेडिकल भत्ता भी मिलता था.
नई व्यवस्था के तहत इन सुविधाओं को खत्म कर दिया गया. इसका मतलब ये है कि 2004 से या उसके बाद जिनकी भी नियुक्तियां हुईं, उन्हें पेंशन मिलने की कोई गारंटी नहीं है. उन्हें जीपीएफ की भी सुविधा नहीं दी गई है. रिटायरमेंट के बाद न तो आपको मेडिकल भत्ता मिलेगा और न ही बीमा का लाभ. न वेतन आयोग का फायदा और न ही महंगाई भत्ता मिलेगा.
- इतना ही नहीं, नई पेंशन स्कीम में आपका कंट्रीब्यूशन कितना होता है, इस पर पेंशन निर्धारित हो गई है. पहले वाली पेंशन योजना में कितने साल भी आप नौकरी कर लें, अंतिम सैलरी का आधा हिस्सा पेंशन के रूप में दिया जाता था.
- नई व्यवस्था में आपको हर महीने पेंशन के लिए कंट्रीब्यूशन करना होता है. रिटायर होने पर इस रकम का 60 फीसदी आप निकाल सकते हैं, जबकि बाकी 40 फीसदी राशि से आपको बीमा कंपनी का एन्यूटी प्लान खरीदना होता है. इससे मिलने वाले ब्याज से ही आपका पेंशन निर्धारित होता है.
- नई पेंशन व्यवस्था के तहत पारिवारिक पेंशन भी खत्म कर दिया गया है. पेंशन के नाम पर वेतन से प्रतिमाह 10 फीसदी कटौती भी होती है. हालांकि, नई पेंशन स्कीम की राशि सरकार इक्विटी में लगाती है, लिहाजा आपको उस पर अच्छा रिटर्न मिल मिलने की संभावना बनी रहती है.
- नई व्यवस्था में सरकारी कर्मचारियों के मूल वेतन और डीए का 10 फीसदी कटता है. इतनी ही राशि सरकार कंट्रीब्यूट करती है. लेकिन केंद्र सरकार अपने कर्मियों के लिए 14 फीसदी का योगदान करती है.
आपको बता दें कि वाजपेयी सरकार ने ही पुरानी पेंशन व्यवस्था को खत्म किया था और उसकी जगह नईं पेंशन व्यवस्था लागू की गई. हालांकि, तब केंद्र ने साफ कर दिया था कि यह व्यवस्था केंद्रीय कर्मचारियों के लिए है. राज्यों को इसे लागू करने के लिए बाध्य नहीं किया गया था. हालांकि, बाद में यह देखा गया कि कई राज्य सरकारों ने केंद्र की इसी पेंशन व्यवस्था को अपने यहां लागू कर दिया.
कुछ लोगों का कहना है कि नई पेंशन व्यवस्था के लागू होने से पहले भरोसा दिया गया था कि यह अधिक लाभकारी होगा. लेकिन बाद में जब सारी चीजें क्लियर हुईं, तब जाकर कर्मचारियों को लगा कि उन्हें पहले वाली पेंशन व्यवस्था में अधिक सुविधाएं मिलती थीं.
इसके महत्व को समझते हुए ही अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश चुनाव में एक मुद्दा बना दिया. उन्होंने भी घोषणा कर रखी है कि उनकी सरकार आई, तो वे अपने राज्य में पुरानी पेंशन व्यवस्था को लागू कर देंगे.
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