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अब यादें शेष : जानें कल्याण सिंह का राजनीतिक सफर

कल्याण सिंह का जीवन संघर्ष की वो कहानी है, जो आने वाली पीढ़ी को प्रेरणा देती है. किस प्रकार एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सदस्य देश के सबसे बड़े राज्य का दो बार मुख्यमंत्री बना. अपनी प्रतिभा, नेतृत्व क्षमता और लोकप्रियता के कारण उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई.

kalyan singh
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Published : Aug 21, 2021, 10:26 PM IST

लखनऊ : कल्याण सिंह का जन्म पांच जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ. किसान परिवार में जन्मे कल्याण सिंह के बारे में उनके पिता तेजपाल लोधी और माता सीता देवी ने भी यह नहीं सोचा होगा कि उनका बेटा कभी इतना बड़ा बनेगा. कल्याण सिंह बचपन से ही जुझारू, संघर्षशील और हिंदुत्ववादी छवि के नेता रहे. शिक्षा-दीक्षा के बाद शिक्षक बने कल्याण सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े. फिर जनसंघ, जनता पार्टी, भारतीय जनता पार्टी से जुड़ते हुए मुख्यमंत्री और राज्यपाल बने. मुख्यमंत्री के रूप में सख्त प्रशासक की छवि वाले कल्याण सिंह ने राम मंदिर आंदोलन के जननायक के रूप में भी अपनी अलग पहचान बनाई थी.

पश्चिम उत्तर प्रदेश के युवा नेता कल्याण सिंह 30 वर्ष की उम्र में पहली बार अलीगढ़ की अतरौली विधानसभा क्षेत्र से जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़े और हार गए, लेकिन उन्होंने प्रयास जारी रखा. दूसरी बार 1967 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार को शिकस्त दी. वह लगातार जीत रहे थे, लेकिन 1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार अनवर खां ने उन्हें पराजित किया. इसके बाद भाजपा के टिकट पर कल्याण सिंह ने 1985 के विधानसभा चुनाव में फिर से जीत दर्ज की. तब से लेकर 2004 के विधानसभा चुनाव तक कल्याण सिंह अतरौली सीट से विधायक बनते रहे.

राजनीतिक सफर
राजनीतिक सफर
बाबरी विध्वंस के बाद कल्याण सरकार हुई थी बर्खास्त बाबरी विध्वंस के बाद वो भारतीय जनता पार्टी के बड़े राष्ट्रवादी और कट्टर हिंदुत्व वादी नेता बन चुके थे. पार्टी ने कल्याण सिंह को आगे करके 1991 का विधानसभा चुनाव लड़ा. विधानसभा चुनाव में भाजपा को 221 सीटें मिली थीं. कल्याण सिंह जून 1991 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उन्होंने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए छह दिसंबर 1992 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की बात कही. हालांकि सरकार बर्खास्त हो गयी थी.
राजनीतिक सफर
राजनीतिक सफर
भाजपा की सरकार चली गई. इसके बाद 1993 में फिर से विधानसभा चुनाव हुए. 1993 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कल्याण सिंह अतरौली और कासगंज से विधायक चुने गए. चुनावों में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी लेकिन सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी. मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन करके सरकार बनाई गयी. विधानसभा में कल्याण सिंह विपक्ष के नेता बने.
राजनीतिक सफर
राजनीतिक सफर

इसे भी पढ़ें- नौकरशाही पर मजबूत पकड़ और सख्त प्रशासक थे पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह

1997 से 1999 तक मुख्यमंत्री रहे
इस बार बसपा और भाजपा का मेल हुआ. अप्रैल 1997 में गठबंधन की सरकार बनी. तय हुआ कि पहले छह माह बसपा से मायावती मुख्यमंत्री रहेंगी. फिर भाजपा का मुख्यमंत्री होगा. 21 सितंबर 1997 को मायावती के मुख्यमंत्री के रूप में छह महीने पूरे हुए. भाजपा के कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने. एक माह बाद ही दोनों दलों में अनबन के चलते 21 अक्टूबर 1997 को बसपा ने कल्याण सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया. कल्याण सिंह पहले से ही कांग्रेस विधायक नरेश अग्रवाल के संपर्क में थे. अग्रवाल ने शीघ्रता से नई पार्टी लोकतांत्रिक कांग्रेस का गठन किया. नरेश अग्रवाल 21 विधायकों का समर्थन दिलाने में सफल रहे. इसके लिए उन्होंने नरेश अग्रवाल को ऊर्जा विभाग का मंत्री बनाया था.

राजनीतिक सफर
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कल्याण को पार्टी से जाना पड़ा था बाहर केंद्रीय नेतृत्व खासकर अटल जी से कल्याण की अनबन की खबरें मीडिया में आने लगीं. कल्याण सिंह को दिसंबर 1999 में पार्टी से बाहर जाना पड़ा. जनवरी 2004 में वह पुनः भाजपा से जुड़े. 2004 के आम चुनावों में उन्होंने बुलंदशहर से भाजपा के उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा. 2009 में उन्होंने पुनः भाजपा छोड़ दी. सपा के समर्थन से एटा लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद चुने गए. 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले उन्होंने एक बार फिर भाजपा का दामन थामा और राज्यपाल बनाए गए. 26 अगस्त 2014 को कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल बने. जनवरी 2015 में इनको हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार दिया गया.

इसे भी पढ़ें- कल्याण सिंह : बाबरी विध्वंस पर गंवाई थी सरकार, एक दिन के लिए हुई थी जेल

कल्याण सिंह का नाम ही काफी
कल्याण सिंह किसी भी पद पर वह रहे हों लेकिन उनकी खुद की पहचान उनका नाम ही काफी था. उत्तर प्रदेश में अगर कल्याण सिंह का नाम लिया जाता है तो वह राम जन्मभूमि आंदोलन के पुरोधा के रूप में लोगों को याद आते हैं. कल्याण सिंह को करीब से जानने वाले अलीगढ़ के रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार अशोक राजपूत कहते हैं कि कल्याण सिंह बेहद ही सामान्य परिवार से थे. उन्होंने सबकुछ अपने प्रयासों से हासिल किया था. लोधी समाज में जन्मे कल्याण कब समूचे हिन्दू समाज के चहेते थे.

लखनऊ : कल्याण सिंह का जन्म पांच जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ. किसान परिवार में जन्मे कल्याण सिंह के बारे में उनके पिता तेजपाल लोधी और माता सीता देवी ने भी यह नहीं सोचा होगा कि उनका बेटा कभी इतना बड़ा बनेगा. कल्याण सिंह बचपन से ही जुझारू, संघर्षशील और हिंदुत्ववादी छवि के नेता रहे. शिक्षा-दीक्षा के बाद शिक्षक बने कल्याण सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े. फिर जनसंघ, जनता पार्टी, भारतीय जनता पार्टी से जुड़ते हुए मुख्यमंत्री और राज्यपाल बने. मुख्यमंत्री के रूप में सख्त प्रशासक की छवि वाले कल्याण सिंह ने राम मंदिर आंदोलन के जननायक के रूप में भी अपनी अलग पहचान बनाई थी.

पश्चिम उत्तर प्रदेश के युवा नेता कल्याण सिंह 30 वर्ष की उम्र में पहली बार अलीगढ़ की अतरौली विधानसभा क्षेत्र से जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़े और हार गए, लेकिन उन्होंने प्रयास जारी रखा. दूसरी बार 1967 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार को शिकस्त दी. वह लगातार जीत रहे थे, लेकिन 1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार अनवर खां ने उन्हें पराजित किया. इसके बाद भाजपा के टिकट पर कल्याण सिंह ने 1985 के विधानसभा चुनाव में फिर से जीत दर्ज की. तब से लेकर 2004 के विधानसभा चुनाव तक कल्याण सिंह अतरौली सीट से विधायक बनते रहे.

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बाबरी विध्वंस के बाद कल्याण सरकार हुई थी बर्खास्त बाबरी विध्वंस के बाद वो भारतीय जनता पार्टी के बड़े राष्ट्रवादी और कट्टर हिंदुत्व वादी नेता बन चुके थे. पार्टी ने कल्याण सिंह को आगे करके 1991 का विधानसभा चुनाव लड़ा. विधानसभा चुनाव में भाजपा को 221 सीटें मिली थीं. कल्याण सिंह जून 1991 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उन्होंने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए छह दिसंबर 1992 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की बात कही. हालांकि सरकार बर्खास्त हो गयी थी.
राजनीतिक सफर
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भाजपा की सरकार चली गई. इसके बाद 1993 में फिर से विधानसभा चुनाव हुए. 1993 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कल्याण सिंह अतरौली और कासगंज से विधायक चुने गए. चुनावों में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी लेकिन सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी. मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन करके सरकार बनाई गयी. विधानसभा में कल्याण सिंह विपक्ष के नेता बने.
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1997 से 1999 तक मुख्यमंत्री रहे
इस बार बसपा और भाजपा का मेल हुआ. अप्रैल 1997 में गठबंधन की सरकार बनी. तय हुआ कि पहले छह माह बसपा से मायावती मुख्यमंत्री रहेंगी. फिर भाजपा का मुख्यमंत्री होगा. 21 सितंबर 1997 को मायावती के मुख्यमंत्री के रूप में छह महीने पूरे हुए. भाजपा के कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने. एक माह बाद ही दोनों दलों में अनबन के चलते 21 अक्टूबर 1997 को बसपा ने कल्याण सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया. कल्याण सिंह पहले से ही कांग्रेस विधायक नरेश अग्रवाल के संपर्क में थे. अग्रवाल ने शीघ्रता से नई पार्टी लोकतांत्रिक कांग्रेस का गठन किया. नरेश अग्रवाल 21 विधायकों का समर्थन दिलाने में सफल रहे. इसके लिए उन्होंने नरेश अग्रवाल को ऊर्जा विभाग का मंत्री बनाया था.

राजनीतिक सफर
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कल्याण को पार्टी से जाना पड़ा था बाहर केंद्रीय नेतृत्व खासकर अटल जी से कल्याण की अनबन की खबरें मीडिया में आने लगीं. कल्याण सिंह को दिसंबर 1999 में पार्टी से बाहर जाना पड़ा. जनवरी 2004 में वह पुनः भाजपा से जुड़े. 2004 के आम चुनावों में उन्होंने बुलंदशहर से भाजपा के उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा. 2009 में उन्होंने पुनः भाजपा छोड़ दी. सपा के समर्थन से एटा लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद चुने गए. 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले उन्होंने एक बार फिर भाजपा का दामन थामा और राज्यपाल बनाए गए. 26 अगस्त 2014 को कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल बने. जनवरी 2015 में इनको हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार दिया गया.

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कल्याण सिंह का नाम ही काफी
कल्याण सिंह किसी भी पद पर वह रहे हों लेकिन उनकी खुद की पहचान उनका नाम ही काफी था. उत्तर प्रदेश में अगर कल्याण सिंह का नाम लिया जाता है तो वह राम जन्मभूमि आंदोलन के पुरोधा के रूप में लोगों को याद आते हैं. कल्याण सिंह को करीब से जानने वाले अलीगढ़ के रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार अशोक राजपूत कहते हैं कि कल्याण सिंह बेहद ही सामान्य परिवार से थे. उन्होंने सबकुछ अपने प्रयासों से हासिल किया था. लोधी समाज में जन्मे कल्याण कब समूचे हिन्दू समाज के चहेते थे.

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