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भारत छोड़ो आन्दोलन को दबाने के लिए चला था 'ऑपरेशन जीरो आवर', 'करो या मरो' के नारे ने बदल दिया था माहौल - Independence Day

भारत छोड़ो आंदोलन को आजादी के दिनों में 'ऑपरेशन जीरो आवर' से दबाने की कोशिश की गयी, लेकिन उनका यह दांव उल्टा पड़ा. बड़े नेताओं के गिरफ्तारी से आम लोगों ने इस आंदोलन को अपने हाथ में ले लिया..

Operation Zero Hour was run to suppress the Quit India movement slogan Do or Die
भारत छोड़ो आन्दोलन (फोटो-साभार सोशल मीडिया)
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Published : Aug 9, 2023, 1:02 PM IST

नई दिल्ली : भारत छोड़ो आंदोलन को आजादी के दिनों का एक बड़ा जन- आंदोलन माना जाता है, जिसमें लाखों आम लोगों ने अपने आप हिस्सा लिया. इस आंदोलन ने देश के आंदोलनकारियों के साथ-साथ युवाओं, कृषकों, महिलाओं व मजदूर वर्ग को भी बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित किया. इससे यह आन्दोलन व्यापक होने लगा. वहीं कांग्रेस के द्वारा भारत छोड़ो प्रस्ताव को पारित होने की खबर मिलते ही ब्रिटिश हुकूमत ने अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी और सरकार ने 'ऑपरेशन जीरो आवर' चलाने का फैसला किया. इसका उद्देश्य कांग्रेस के साथ साथ अन्य आंदोलनकारी नेताओं को अरेस्ट करना था.

'ऑपरेशन जीरो आवर'
भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत 8 अगस्त 1942 की रात में कांग्रेस कार्यसमिति में अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित होने के बाद शुरू हो गया था. 9 अगस्त की सुबह सबेरे मुंबई और पूरे देश में कई स्थानों पर कांग्रेस के नेताओं की गिरफ्तारियां शुरू हो गयीं और अंग्रेजी हुकूमत ने इन लोगों पर शिकंजा कसने की कोशिश की. इसीलिए 'ऑपरेशन जीरो आवर' शुरू किया गया. अंग्रेजी हुकूमत ने 'ऑपरेशन जीरो आवर' के तहत कांग्रेस के सभी बड़ी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया, जिसमें महात्मा गांधी भी शामिल थे. इसके अलावा कुछ ऐसे भी नेता थे जो भूमिगत हो गए. ऐसे नेताओं में जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी नेता शामिल थे, जो भूमिगत होकर अपने गतिविधियों में एक्टिव रहे.

अंग्रेजों ने 'ऑपरेशन जीरो आवर' के तहत महात्मा गांधी, कस्तूरबा गांधी, सरोजिनी नायडू, भूला भाई देसाई जैसे कई लोगों को गिरफ्तार कर पुणे के आगा खान पैलेस में नजर बंद कर दिया. इसके साथ ही साथ पंडित गोविंद बल्लभ पंत को गिरफ्तार करके अहमदनगर के किले में रखा गया. वहीं जवाहरलाल नेहरू को अल्मोड़ा जेल में भेज दिया गया, जबकि राजेंद्र प्रसाद को बांकीपुर तथा मुस्लिम नेता मौलाना अबुल कलाम आजाद को बांकुरा जेल भेजा गया.

कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं की गिरफ्तारी के बाद आंदोलन पर असर दिखने लगा और आंदोलन नेतृत्व-विहीन होता दिखाई देने लगा. इसके फलस्वरुप लोग और भी उग्र प्रदर्शन करने पर उतारू हो गए. कई जगहों पर हड़तालें शुरू हो गईं तथा सेना और पुलिस के विरुद्ध तोड़फोड़ की कार्यवाही तेजी से शुरू हुई.

'ऑपरेशन जीरो आवर' चलाकर ब्रिटिश सरकार के द्वारा की गयी इस कार्रवाई के विरोध में हड़ताल के चलते टाटा स्टील प्लांट जैसे कई कारखाने बंद होने की कगार पर आ गए. हड़ताल कर रहे मजदूरों की यही मांग थी कि वह तब तक अपने काम पर नहीं लौटेंगे, जब तक हमारी राष्ट्रीय सरकार नहीं बन जाती. इतना ही नहीं अहमदाबाद की कपड़ा मिलों में भी लगभग 3 महीने तक हड़ताल चलती रही.

'ऑपरेशन जीरो आवर' के तहत कांग्रेस के नेताओं को अरेस्ट करने के कारण आंदोलन हिंसक होने लगा था. धीरे-धीरे आंदोलन की बागडोर आम जनता के हाथों में आ गई और उन्होंने अपने-अपने ढंग से इसको चलाना शुरू किया. इस आंदोलन की सफलता का असली मंत्र -“करो या मरो” बना. इसमें लोगों ने संकल्प लिया कि हम या तो स्वतंत्रता प्राप्त करेंगें या फिर जान दे देंगे. इसीलिए भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ और ‘करो या मरो’ भारतीय लोगों का नारा बन गया.

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नई दिल्ली : भारत छोड़ो आंदोलन को आजादी के दिनों का एक बड़ा जन- आंदोलन माना जाता है, जिसमें लाखों आम लोगों ने अपने आप हिस्सा लिया. इस आंदोलन ने देश के आंदोलनकारियों के साथ-साथ युवाओं, कृषकों, महिलाओं व मजदूर वर्ग को भी बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित किया. इससे यह आन्दोलन व्यापक होने लगा. वहीं कांग्रेस के द्वारा भारत छोड़ो प्रस्ताव को पारित होने की खबर मिलते ही ब्रिटिश हुकूमत ने अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी और सरकार ने 'ऑपरेशन जीरो आवर' चलाने का फैसला किया. इसका उद्देश्य कांग्रेस के साथ साथ अन्य आंदोलनकारी नेताओं को अरेस्ट करना था.

'ऑपरेशन जीरो आवर'
भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत 8 अगस्त 1942 की रात में कांग्रेस कार्यसमिति में अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित होने के बाद शुरू हो गया था. 9 अगस्त की सुबह सबेरे मुंबई और पूरे देश में कई स्थानों पर कांग्रेस के नेताओं की गिरफ्तारियां शुरू हो गयीं और अंग्रेजी हुकूमत ने इन लोगों पर शिकंजा कसने की कोशिश की. इसीलिए 'ऑपरेशन जीरो आवर' शुरू किया गया. अंग्रेजी हुकूमत ने 'ऑपरेशन जीरो आवर' के तहत कांग्रेस के सभी बड़ी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया, जिसमें महात्मा गांधी भी शामिल थे. इसके अलावा कुछ ऐसे भी नेता थे जो भूमिगत हो गए. ऐसे नेताओं में जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी नेता शामिल थे, जो भूमिगत होकर अपने गतिविधियों में एक्टिव रहे.

अंग्रेजों ने 'ऑपरेशन जीरो आवर' के तहत महात्मा गांधी, कस्तूरबा गांधी, सरोजिनी नायडू, भूला भाई देसाई जैसे कई लोगों को गिरफ्तार कर पुणे के आगा खान पैलेस में नजर बंद कर दिया. इसके साथ ही साथ पंडित गोविंद बल्लभ पंत को गिरफ्तार करके अहमदनगर के किले में रखा गया. वहीं जवाहरलाल नेहरू को अल्मोड़ा जेल में भेज दिया गया, जबकि राजेंद्र प्रसाद को बांकीपुर तथा मुस्लिम नेता मौलाना अबुल कलाम आजाद को बांकुरा जेल भेजा गया.

कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं की गिरफ्तारी के बाद आंदोलन पर असर दिखने लगा और आंदोलन नेतृत्व-विहीन होता दिखाई देने लगा. इसके फलस्वरुप लोग और भी उग्र प्रदर्शन करने पर उतारू हो गए. कई जगहों पर हड़तालें शुरू हो गईं तथा सेना और पुलिस के विरुद्ध तोड़फोड़ की कार्यवाही तेजी से शुरू हुई.

'ऑपरेशन जीरो आवर' चलाकर ब्रिटिश सरकार के द्वारा की गयी इस कार्रवाई के विरोध में हड़ताल के चलते टाटा स्टील प्लांट जैसे कई कारखाने बंद होने की कगार पर आ गए. हड़ताल कर रहे मजदूरों की यही मांग थी कि वह तब तक अपने काम पर नहीं लौटेंगे, जब तक हमारी राष्ट्रीय सरकार नहीं बन जाती. इतना ही नहीं अहमदाबाद की कपड़ा मिलों में भी लगभग 3 महीने तक हड़ताल चलती रही.

'ऑपरेशन जीरो आवर' के तहत कांग्रेस के नेताओं को अरेस्ट करने के कारण आंदोलन हिंसक होने लगा था. धीरे-धीरे आंदोलन की बागडोर आम जनता के हाथों में आ गई और उन्होंने अपने-अपने ढंग से इसको चलाना शुरू किया. इस आंदोलन की सफलता का असली मंत्र -“करो या मरो” बना. इसमें लोगों ने संकल्प लिया कि हम या तो स्वतंत्रता प्राप्त करेंगें या फिर जान दे देंगे. इसीलिए भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ और ‘करो या मरो’ भारतीय लोगों का नारा बन गया.

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