पटना: शिक्षकों का काम बच्चों को पढ़ाना है, लेकिन बिहार के सरकारी स्कूलों के मास्टर साहब बच्चों को पढ़ाने के बजाय सरकार के भांति भांति प्रकार के गैर शैक्षणिक कार्यों में व्यस्त रहते हैं. कभी मास्टर साहब खुले में शौच करने वालों की निगरानी करते हैं, तो कभी शौचालय की गिनती करते हैं. शिक्षकों के जिम्मे पढ़ाई के अलावा भी ऐसे कई काम हैं जिसे अगर वे करने बैठे तो छात्रों की पढ़ाई पर उसका असर या यूं कहे कि प्रतिकूल असर पड़ना तय है.
बोरा बेचना.. वोटिंग से लेकर शराब पकड़ने में टीचरों की ड्यूटी: बिहार के शिक्षकों के बारे में एक आम धारणा है कि वे अपना काम नहीं करते हैं. लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि बिहार के शिक्षक बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए जितना काम नहीं करते उससे कई ज्यादा दूसरे कामों को संपन्न करने में लगे रहते हैं. ऐसा करना उनकी मजबूरी होती है. शिक्षा विभाग की ओर से शिक्षकों को नए आदेश मिलते रहते हैं. वोटिंग के कार्यों को संपन्न कराने से लेकर शराब पकड़ने के लिए शिक्षकों की ड्यूटी लगायी जाती है. वहीं शिक्षा विभाग ने उन्हें बोरा और कबाड़ बेचने का काम भी दे दिया है.
शिक्षकों के जिम्मे हैं ये काम: ईटीवी भारत ने बिहार के कुछ शिक्षकों से बातचीत करके उनके कामों को जानने की कोशिश की. शिक्षकों से बातचीत के बाद हमने जो उनके कामों की लिस्ट बनाई है उसमें कुल 17 कार्य सामने आए हैं. शिक्षकों को चुनाव से पहले बीएलओ का कार्य करना और मतदाता सूची तैयार करना होता है. चुनाव के समय चुनाव कार्य में लगना और चुनाव संपन्न कराना उन्हीं के कंधों पर होता है. दंगा और सामाजिक तनाव के समय सामाजिक सौहार्द कायम करने का कार्य, मिड डे मील भोजन तैयार कराना और बच्चे मिड डे मील खा रहे हैं या नहीं इसकी निगरानी करना, मिड डे मील के लिए उपयोग में लाई जाने वाली बच्चों के थाली, कटोरा, लोटा जैसे बर्तनों की गिनती करना और हिसाब रखना, मिड डे मील के लिए आने वाले खाद्यान्न खाली होने पर बोरा को बेचने काम भी शिक्षकों का ही है.
शौचालय से लेकर जानवरों की गणना तक: उपरोक्त कार्यों के अलावा भी कई और काम हैं जिनमें समय-समय पर मकानों की गिनती करना, जानवरों की गणना करना, जाति की गणना करना, जनगणना करना, शौचालय की गणना करना, खुले में शौच करने वालों की पहचान करना, किसी पर्व, त्योहार और मेला के समय भीड़ नियंत्रण कार्य करना, स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का रूटीन इम्यूनाइजेशन देखना और कराना, महामारी के समय महामारी प्रबंधन का कार्य करना ( उदाहरण के तौर पर कोरोना के समय कोरोना किट घूम-घूम कर बांटना ), बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के समय आपदा प्रबंधन का कार्य करना और स्कूल में बच्चों को पढ़ाना है.
आखिरी में बच्चों को पढ़ाने का काम?: इतने सारे कार्यों में हमने शिक्षकों को बच्चों को पढ़ाने का कार्य सबसे आखरी में लिखा है क्योंकि ऊपर के जितने भी गैर शैक्षणिक कार्य हैं, उसे करने का जब भी सरकार का निर्देश जारी होता है तो बच्चों को पढ़ाने का कार्य शिक्षकों की प्राथमिकता से बाहर हो जाता है.
के के पाठक की सख्ती से कितना होगा शिक्षा सुधार?: पिछले कुछ समय से शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक स्कूलों में पहुंचकर शिक्षकों की क्लास लगाते दिख रहे हैं. कई तरह के फरमान भी जारी किए गए हैं. शिक्षकों को पढ़ाने के समय खड़ा रहना, पढ़ाते समय मोबाइल का इस्तेमाल वर्जित, ससमय स्कूल आना जैसे आदेश दिए गए. वहीं गैर शैक्षणिक कामों से पहले दूरी बनाने का आदेश आया लेकिन बाद में केके पाठक बैकफुट पर आ गए. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इतनी सख्ती से बिहार की शिक्षा व्यवस्था में कोई सुधार होगा? अगर शिक्षकों के पास पढ़ाने के अलावा दूसरे काम रहेंगे तो वे बच्चों की पढ़ाई पर कैसे फोकस करेंगे? सवाल ये भी उठाता है कि आखिर एक शिक्षक कितने काम करेंगे? क्या इतने कामों का निर्वहन करते हुए ढंग से बच्चों को पढ़ाना मुमकिन हो पाएगा?
कबाड़ बेचने का नया फरमान: शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने अब शिक्षकों को नई जिम्मेदारी कबाड़ बेचने की दी है. दरअसल विभिन्न स्कूलों के औचक निरीक्षण के दौरान केके पाठक को स्कूल में काफी कबाड़ नजर आया. टेबल, कुर्सी, किताबें, ऐसे में इसके निष्पादन के लिए उन्होंने शिक्षा पदाधिकारी को निर्देश दिया है कि अपने अंडर आने वाले विद्यालयों के कबाड़ को खाली कराएं. ऐसे में कबाड़ बेचने का काम भी अब शिक्षकों को करना है और प्राप्त राशि को विद्यालय के जीओबी में जमा कराना है,
अभिभावकों ने कही ये बात: शिक्षकों को जाति गणना का काम भी करना होता है. वहीं कभी शौचालय गणना करते हैं. इस प्रकार के दर्जन भर से अधिक कार्य हैं जिसे मास्टर साहब करते हैं. इस दौरान बच्चों को पढ़ाने का कार्य लगभग ठप हो जाता है. इन विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावक कहते हैं कि प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने के लिए सक्षम नहीं हैं इसीलिए सरकारी विद्यालय में बच्चों को भेजते हैं. सरकारी स्कूल में नेता मंत्री और सरकारी अधिकारियों के बच्चे नहीं पढ़ते इसलिए शिक्षकों को बच्चों की पढ़ाई से दूर करके उन्हें दूसरे कार्यों में लगा दिया जाता है.
"सक्षम नहीं है इसलिए प्राइवेट स्कूल में बच्चों को भेज नहीं पाते हैं. बच्चे कुछ पढ़ ले इस उम्मीद से सरकारी स्कूल में ही भेज पाते हैं और वहां भी शिक्षक बच्चों को पढ़ाते नहीं है. शिक्षक विद्यालय तो जरूर आते हैं लेकिन पता नहीं क्यों दूसरे कार्यों में डूबे रहते हैं और अभिभावक जब कहते हैं कि बच्चों को पढ़ाते क्यों नहीं तो कहते हैं उनको अभी दूसरे काम का जिम्मा मिला हुआ है."- जयप्रकाश साहू, अभिभावक व रिक्शा चालक
नियोजित शिक्षक राजू सिंह बताते हैं कि "शिक्षकों की बहाली बच्चों को पढ़ने के लिए हुई है और शिक्षा अधिकार कानून कहता है कि शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्य में नहीं लगाना है. बावजूद इसके बिहार सरकार शिक्षकों से आए दिन गैर शैक्षणिक कार्य लेती है. कभी शिक्षकों से खुले में शौच करने वालों की निगरानी करने को कहा जाता है. कभी मध्याह्न भोजन का संचालन कराया जाता है तो कभी शिक्षकों को बोरा बेचने का निर्देश जारी कर दिया जाता है. यह सभी गैर शैक्षणिक कार्यों के निर्देश शिक्षकों के मान सम्मान के खिलाफ है. इतना ही नहीं बिहार के सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले 2 करोड़ 60 लाख बच्चों के साथ अन्याय किया जाता है और उनकी शिक्षा की ऐसे निर्देशों से क्षति होती है."
बच्चों को होती है परेशानी: बिहार टीईटी शिक्षक संघ की प्रदेश अध्यक्ष अमित विक्रम ने बताया कि सरकार प्रदेश में सरकारी शिक्षकों से दर्जन भर से अधिक गैर शैक्षणिक कार्य लेती है. जब गैर शैक्षणिक कार्य का निर्देश आता है तब विद्यालय में आधे से अधिक शिक्षकों की ड्यूटी गैर शैक्षणिक कार्य में लग जाती है. एक तो पहले से ही विद्यालयों में शिक्षकों की कमी है ऊपर से कमी और बढ़ जाती है. चार-चार वर्ग के कक्षाओं को एक साथ बैठकर शिक्षक को पढ़ना पड़ता है. आप कल्पना कीजिए कि 1 से 4 क्लास के बच्चे एक साथ एक कक्षा में एक शिक्षक से पढ़ेंगे तो शिक्षक कितना पढ़ पाएंगे और बच्चे कितना पढ़ पाएंगे?
"गुणवत्ता के आधार पर सभी सरकारी शिक्षक बनते हैं लेकिन शिक्षक अपनी गुणवत्ता का उपयोग बच्चों के पठन-पाठन में नहीं कर पाते हैं क्योंकि उनके ऊपर भांति-भांति के गैर शैक्षणिक कार्य का दबाव होता है. मध्याह्न भोजन के संचालन का शिक्षक लंबे समय से विरोध करते रहे हैं. अब शिक्षकों से बोरा बेचवाया जा रहा है. सरकार अगर सही में सरकारी स्कूलों में बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना चाहती है तो उसे शिक्षा के अधिकार कानून का पालन करते हुए शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्य से दूर करना होगा."- अमित विक्रम, प्रदेश अध्यक्ष, बिहार टीईटी शिक्षक संघ
शिक्षाविद की राय: प्रख्यात शिक्षाविद प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी ने कहा कि स्वाभाविक बात है कि जब शिक्षक गैर शैक्षणिक कार्य करेंगे तो वह बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं दे पाएंगे. पठन-पाठन के लिए एक माहौल की भी आवश्यकता होती है. शिक्षक यदि दूसरे कार्य के मूड में हैं तो वह बेहतर नहीं पढ़ा पाएगा.
बिहार में सरकार सरकारी शिक्षा के साथ मजाक कर रही है. कभी शिक्षकों से शौचालय की गिनती कराई जाती है तो कभी खुले में शौच करने वालों की पहचान करने को कहा जाता है. अब शिक्षकों को बोरा बेचने के लिए कहा जा रहा है. यह सब काम शिक्षकों का बिल्कुल नहीं है. शिक्षक बच्चों को पढ़ाने के लिए बना है ना कि मिड डे मील का इंतजाम करने के लिए.- प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी, प्रख्यात शिक्षाविद