पटना : बिहार में जातीय जनगणना (Caste Census) पर जेडीयू (JDU) और बीजेपी (BJP) एक-दूसरे के खिलाफ हैं. वहीं अब केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह (RCP Singh) के बयान के बाद ऐसा लगता है कि जेडीयू में भी एक राय नहीं है. दरअसल आरसीपी सिंह ने जातीय जनगणना को लेकर न तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) का समर्थन किया है और न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) का विरोध किया है, लेकिन जो बातें उन्होंने कही है, उससे आरजेडी हमलावर हो गया है. राजनीतिक जानकार भी कहते हैं कि इससे पार्टी को नुकसान हो सकता है.
आरसीपी सिंह के बयान के बाद विपक्ष को हमला करने का मौका मिल गया है. आरजेडी के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी का कहना है कि सीएम नीतीश कुमार को पत्र का केवल एक्नॉलेजमेंट भेजकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने औकात बता दी है.
उदय नारायण चौधरी कहते हैं कि हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार के उलट बयान देकर बीजेपी के एजेंडे पर चलने का संकेत दिया है. वे कहते हैं कि आरजेडी की पहले से सर्वसम्मति से मांग है कि जातीय जनगणना होनी चाहिए.
हालांकि जेडीयू प्रवक्ता अभिषेक झा का कहना है कि जातीय जनगणना पर पार्टी की मांग पुरानी है. राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में भी आरसीपी सिंह ने कई बार इस बात को रखा है.
आरसीपी सिंह के हालिया बयान पर सफाई देते हुए अभिषेक झा कहते हैं कि शायद लोगों को समझने में कन्फ्यूजन हुआ है. हमारी पार्टी में कहीं से इस मुद्दे पर विभेद नहीं है. आरजेडी के लोग तो विभेद की बात कहेंगे ही, क्योंकि जातीय जनगणना के मुद्दे को भी वे लोग राजनीतिकरण करने में लगे हुए हैं.
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का कहना है कि आरसीपी सिंह ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद जिस प्रकार से बयान दिया है, मैसेज तो साफ जा रहा है. ऐसे में जातीय जनगणना के मुद्दे पर जेडीयू को नुकसान हो सकता है, क्योंकि विपक्ष इस मामले पर काफी अग्रेसिव है.
दरअसल, आरसीपी सिंह ने सोमवार को जेडीयू दफ्तर में मीडिया से बातचीत में कहा था, 'जातीय जनगणना की मांग सालों से होती रही है. देश की कई राजनीतिक पार्टियां इसकी मांग करती रही है. एक समय में इसकी मांग इसलिए भी होती थी, क्योंकि इस देश में आरक्षण एक मुद्दा था, लेकिन आज आरक्षण उस प्रकार का मुद्दा नहीं है, जो 70, 80 और 90 के दशक में होता था'.
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बिहार जैसे राज्य में बीजेपी को छोड़ सभी राजनीतिक दल जातीय जनगणना के पक्ष में है. जाहिर है इसका सीधा लाभ चुनाव में भी मिल सकता है. जातीय जनगणना को आरक्षण से भी जोड़ कर देखा जा सकता है ताकि जनसंख्या के हिसाब से आरक्षित लोगों को ज्यादा भागीदारी मिल सके.
जातीय जनगणना पर अब तक की सियासत
- जातीय जनगणना के मुद्दे पर आरजेडी और जेडीयू के एक सुर हैं.
- एनडीए में प्रमुख सहयोगी बीजेपी जातीय जनगणना की जगह आर्थिक जनगणना की बात करने लगी है और केंद्र सरकार के फैसले के साथ खड़ी है.
- तेजस्वी यादव ने विपक्षी दलों के नेताओं के साथ मुख्यमंत्री को दो प्रस्ताव दिए हैं. इसमें प्रधानमंत्री से समय लेने के लिए पत्र लिखना और फिर केंद्र के नहीं मानने पर बिहार अपने संसाधन से जातीय जनगणना कराए.
- मुख्यमंत्री ने तेजस्वी यादव के दोनों प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा.
- प्रधानमंत्री को पत्र लिखे 12 दिन हो गए, लेकिन अभी तक समय नहीं मिला है. सिर्फ पत्र मिलने की जानकारी दी गई है.
- दिल्ली में जेडीयू के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने अपने सांसदों के साथ गृह मंत्री अमित शाह से इस मुद्दे पर मुलाकात की.
- केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद पहली बार पटना पहुंचे आरसीपी सिंह ने जो बयान दिया, उससे जेडीयू में एक राय नहीं होने का मैसेज गया.
- मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बयान दिया कि प्रधानमंत्री से समय मिलने का इंतजार है, उसके बाद ही कोई फैसला लेंगे.
- इस बीच तेजस्वी यादव ने भी जातीय जनगणना कराने को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिख दिया और नीतीश कुमार के पत्र लिखने के बाद समय नहीं मिलने पर चुटकी भी ली.
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आपको बताएं कि जातीय जनगणना पर बिहार विधानसभा और विधान परिषद से सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास हो चुका है. नीतीश कुमार इसकी बार-बार चर्चा भी करते हैं.
जातीय जनगणना के अलावा आरसीपी ने एक और मुश्किल में नीतीश को डाल दिया है, यह कहकर कि आज तक उन्होंने कोई काम सीएम की अनुमति के बिना नहीं किया है. उनका साफ इशारा केंद्र में मंत्री बनाने के विवाद पर था. असल में जब उनके मंत्री बनने का विवाद हुआ था, तब नीतीश ने ही पत्रकारों के सवाल पर कहा था कि आरसीपी को जिम्मेदारी दी गयी है. इस मसले पर उनको ही निर्णय लेना है. जाहिर है कि अपने इस बयान से आरसीपी ने नीतीश को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है.