समस्तीपुर : बिहार के समस्तीपुर जिले की मंजू देवी की उम्र 48 साल है और वो पिछले 23 सालों से बतौर सहायक पोस्टमार्टम का काम कर रही हैं. यानी मंजू ने 25 साल की उम्र में यह काम करना शुरू कर दिया था. यानी मौत के बाद डेड बॉडी को फाड़ने और सिलने का काम. अपने ससुर व पति के बाद इस पोस्टमार्टम हाउस में वह बीते 23 साल में करीब 20 हजार से ज्यादा पोस्टमार्टम कर चुकी हैं.
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नजीर पेश कर रही मंजू : मंजू देवी के अनुसार इस काम में उन्हें एक डेड बॉडी की 300 से 400 रुपये मजदूरी मिलती है. किसी शव की चीर-फाड़ करने के लिए जाहिर सी बात है कि कलेजा मजबूत होना चाहिए. ऐसे में इतने दिनों तक शवों की चीड़-फाड़ करने के दौरान कई तरह के वाकये और कहनियां भी इनके काम के साथ जुड़ी हैं. आखिर पोस्टमार्टम हाउस के उस कमरे का सच क्या है, जहां शवों को फाड़कर सिला जाता है. आइये जानते है खुद मंजू देवी से जिनसे बात की ईटीवी भारत के संवाददाता ने.
कभी नहीं डगमगाए कदम : ऐसा काम जिससे बहुतों का हिम्मत डगमगा जाए, उस काम को मंजू देवी साहस व जिम्मेदारी से निभा रहें. यही वजह है कि आज पोस्टमार्टम वाली मंजू मिसाल है. समाज में नारी सशक्तीकरण की नजीर पेश कर रही हैं. बहरहाल यह कहना लाजमी होगा कि, 'महिला हर बाजी जीत ले अगर वह ठान ले, दुनिया क्या उसे रोकेगी अगर वह हौंसलों से उड़ान ले'.
मंजू की जुबानी 20 हजार लाशों के पोस्टमार्टम की कहानी
सवाल : पोस्टमार्टम क्या होता है?
मंजू देवी का जवाब : सन 2000 से मैं इस पोस्टमार्टम हाउस में बतौर सहायिका काम कर रही हूं. मेरा काम शव की पूरी तरह जांच के अनुरूप कटिंग करना है. इसके अलावा डॉक्टर के निर्देश के अनुसार शरीर के विभिन्न अंगों की कटिंग और फिर सिलने का काम वह करती हूं.
सवाल : जब आपने पहली बार पोस्टमॉर्टम किया था, वो अनुभव कैसा था. उस दिन के बारे में बताइये?
जवाब : वक्त काफी बीत गया उस वक्त मेरी सास व पति पोस्टमार्टम करते थे लेकिन वे किसी काम से दूसरे जगह गए हुए थे. उसी दौरान दलसिंहसराय से पोस्टमार्टम के लिए एक शव आया और मुझे उसमें सहायिका की भूमिका निभानी पड़ी. पहले शव के पोस्टमार्टम के दौरान मै बेचैन और असहज थी सबकुछ विचित्र लग रहा था, लेकिन डॉक्टर के हिम्मत पर मैने इस काम को पहली बार किया.
सवाल : इस काम में सबसे ज्यादा दिक्कतें कब आती हैं ?
जवाब : पोस्टमार्टम के लिए जब कोई शव आता है तो उसके परिजन काफी आहत वह आवेश में होते हैं. उस वक्त कोशिश इस बात होती है कि उन्हें समझाया जाए और जल्द से जल्द पोस्टमार्टम की प्रक्रिया कर उन्हें शव दे दिया जाए.
सवाल : पोस्टमॉर्टम करने के बाद आपकी मनोस्थिति क्या होती है. आपमें इतनी हिम्मत कैसे आती है.
जवाब : इस सवाल पर मंजू ने कहा की अब इस काम को करते-करते आदत सी हो गयी है. अब इस काम मे मुझे कुछ दिक्कत नहीं होता.
सवाल : करीब चार-पांच पीढ़ियों से आपका परिवार पोस्टमॉर्टम के इस पेशे में है. उस बारे में बताइये?
जवाब : करीब 5 पीढ़ी इससे जुड़ी हुई रही, सबसे पहले हमारे ससुर की दादी यहां पोस्टमार्टम करती थीं. उसके बाद ससुर की मां, फिर ससुर व मेरे पति यहां पोस्टमार्टम सहायक के तौर पर काम किए, लेकिन उनकी मौत बीमारी की वजह से हो गई. मेरे छोटे छोटे बच्चे थे. बहरहाल मजबूरी में मैंने इस काम को आगे बढ़ाया और खुद पोस्टमार्टम सहायिका के तौर पर काम करने लगी.
सवाल : आपके साथ कभी भेदभाव हुआ, आपको कभी किसी ने कुछ कहा?.. जैसे पोस्मार्टम करके घर आईं तो घर के लोगों ने कुछ कहा हो, या फिर आसपास के लोगों ने?
जवाब : (सोचते हुए) समाज व आसपास लोगों की राय मेरे विषय में अच्छी नहीं थी, लेकिन मैंने कभी उस पर ध्यान नहीं दिया और अपने काम पर फोकस रखा. क्योंकि मुझे अपने बच्चों को पालना था, इसलिए मैंने सबको दरकिनार कर अपने काम पर केंद्रित रही.
सवाल : आपने कभी अपने रिश्तेदार का पोस्मार्टम किया? अगर किया तो क्या उस वक्त आपके हाथ कांपे थे ?
जवाब : अपनों को देख दुख जरूर हुआ, लेकिन यह मेरा रोज का काम है और उसी तरह मैंने अपनों का भी पोस्टमार्टम किया.
सवाल : आप पोस्टमॉर्टम का काम करती है, डर लगता है क्या ? क्योंकि मुर्दा घर यह नाम सुनकर हर कोई डर जाता है.
जवाब : (मुस्कुराते हुए) मुझे अब इससे डर नहीं लगता पहले भी नहीं डरी.
सवाल : एक डेडबॉडी पर कितना पैसा मिलता है? कितनी कमाई होती है रोजाना ?
जवाब : पहले एक बडी का 110 रुपए मिला करता था. 2019 में किसी वजह से वह हट गयी थी. वैसे वर्तमान में हमें 380 रुपये मिलता है.
सवाल : पोस्मार्टम में मौत का कारण कैसे पता चलता है?
जवाब : दुर्घटना हो या अन्य वजह आकलन के कई तरीके हैं. वैसे दुर्घटना के बाद ब्रेन, चेस्ट, पेट आदि में चोट, ब्लड क्लॉटिंग, कान से खून आना कई चीजों को बता देता है.
सवाल : आप रोज पोस्टमार्टम रूम में जाती हैं, उस कमरे के बारे में बताइये.. कैसा होता है? क्या आप कभी रोईं हैं?
जवाब : कभी नहीं शायद आंसू ही सूख गया है. कैसा भी वक्त आया हो आंख से आंसू नहीं गिरे.
सवाल : काम व परिवार में क्या ऐसा भी पल आया जब आपने अपने फर्ज को प्राथमिकता दी ?
जवाब : कई बार ऐसा वक्त आया, जब मैंने घर से ज्यादा काम को प्राथमिकता दी. क्योंकि परिवार को समझाया जा सकता है, लेकिन दुख के इस वक्त में सही वक्त पर काम हो जाए इसको लेकर मैं हमेशा खड़ी रही.
सवाल : कितने बच्चे हैं और वह क्या कर रहे ?
जवाब : मेरे पांच बच्चे हैं जिसमें तीन बेटियां और दो बेटे हैं. दोनों बेटों ने म्यूजिक में स्नातक किया है. वह अपना काम कर रहे हैं. वहीं बेटी भी पढ़ाई कर रही है.
सवाल : वैसी महिला जो समाज में कहीं ना कहीं डरी व सहमी हैं, उनका हौसला कैसे बढ़ाएंगी ?
जवाब : महिलाओं को डरने की जरूरत नहीं वह पूरी हिम्मत से अपने राह पर आगे बढ़ें, वह हर काम को कर सकती हैं.