पटना : लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) बिहार के बाद यूपी में भी किस्मत आजमाने की तैयारी में जुट गई है. यूपी में 25% वोट दलितों का है. लोजपा यूपी में चार फीसदी पासी वोटरों को अपना वोट बैंक मानकर तैयारी में जुटी है. तेज हुई संगठन की गतिविधियों से माना जा रहा है कि पार्टी यूपी के सियासी मैदान में दमखम के साथ उतर सकती है.
यूपी के प्रदेश अध्यक्ष मणि शंकर पांडे के अनुसार यूपी में चार फीसदी पासी समाज के वोटरों को अपना कोर वोट बैंक मानकर पार्टी तैयारी में जुटी हुई है. वहीं, दलितों और अन्य जातियों को भी जोड़ने की कोशिश हो रही है. दरअसल, रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) एनडीए (NDA) में सबसे बड़े दलित चेहरे के तौर पर देखे जाते थे. उनकी मृत्यु के बाद एनडीए में उस स्थान को भर पाना काफी मुश्किल होने वाला है.
जानकार बताते हैं कि यूपी चुनाव में जातीय समीकरण शुरू से ही अहम भूमिका निभाता है. यूपी में 25 फीसदी वोट दलितों का है. इसके बाद अगड़ी जातियों का वोट बैंक है. इसमें मुख्य रूप से ब्राह्मण (8 फीसदी ) और ठाकुर (5 फीसदी) आते हैं. अन्य अगड़ी जातियों का वोट 3 फीसदी है. ऐसे में अगड़ी जातियों का कुल वोट करीब 16 फीसदी माना जाता है. पिछड़ी जाति का वोट बैंक 35 फीसदी है, जिसमें 13 फीसदी यादव 12 फीसदी कुर्मी और 10 फीसदी अन्य जाति के लोग हैं.
जातीय समीकरण के अलावा यूपी में 18 फीसदी मुसलमान और 5 फीसदी जाट वोट बैंक है. माना जाता है कि यूपी में 30 फीसदी का आंकड़ा किसी भी दल के लिए सत्ता की चाबी साबित हो सकता है. पश्चिमी यूपी की कई सीटों पर दलित वोट बैंक निर्णायक भूमिका में हैं. यूपी में 85 सीटें अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हैं.
लोजपा के प्रवक्ता चंदन सिंह ने कहा, 'बिहार के बाद अब यूपी में भी लोजपा चुनाव लड़ेगी. लोजपा अकेले चुनाव लड़ेगी या किसी गठबंधन के साथ यह शीर्ष नेतृत्व को तय करना है. 5 फीसदी से अधिक वोट लोजपा के साथ है. यूपी में लोजपा के पूर्व संस्थापक स्वर्गीय रामविलास पासवान ने काफी मेहनत की थी, जिस वजह से यूपी में पूर्व में हमारे विधायक भी रहे हैं और सरकार में हमारी हिस्सेदारी भी रही है. यूपी में लोजपा का जनाधार अच्छा है और कई ऐसी सीटें हैं, जिस पर लोजपा परिणाम बदल सकती है.'
बता दें कि लोजपा के नेताओं का मानना है कि यूपी के लगभग 70 विधानसभा क्षेत्र में पार्टी के वोटर हैं. पांच से छह सीटों पर पार्टी अकेले दम पर परिणाम बदल सकती है. लोजपा का मानना है कि बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) में अकेले चुनाव लड़कर महज एक ही सीट पर जीत मिली, लेकिन जनाधार और वोट प्रतिशत अन्य दलों की तुलना में ज्यादा था. बिहार में एक नंबर की पार्टी को तीसरे नंबर पर लाकर खड़ा करने में लोजपा की अहम भूमिका रही है. इसलिए लोजपा को कहीं से भी कम आंकना ठीक नहीं है.
राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ संजय कुमार ने कहा, 'पूर्वी यूपी का बिहार से लगाव रहा है. बिहार में जिस तरह से चिराग पासवान (Chirag Paswan) इन दिनों आशीर्वाद यात्रा निकाल रहे हैं और जनता उनका स्वागत कर रही है उससे चिराग उत्साहित हैं. उन्हें यह लग रहा है कि यूपी में भी वह अपना दमखम दिखा पाएंगे. वह कितने सफल होते हैं यह तो रिजल्ट आने पर ही पता चलेगा. पृष्ठभूमि की अगर करें तो रामविलास पासवान के समय उनके वहां विधायक भी रहे हैं. सरकार में लोजपा की भागेदारी भी रही है. यह सब रामविलास पासवान के समय हुआ था. अब चिराग पासवान को वहां की जनता कितना सम्मान देती है यह तो चुनाव के नतीजे ही बताएंगे.
डॉ संजय कुमार ने कहा,'चिराग पूर्ण रूप से बिहार में ही अपने आप को मजबूत नहीं कर पाए हैं. वह खुद को रामविलास पासवान का राजनीतिक वारिस साबित करने में जुटे हैं. बिहार-झारखंड में लोजपा ने अकेले चुनाव लड़कर अपना हश्र देख लिया है. लोजपा कभी नहीं चाहेगी कि यूपी में अकेले चुनाव मैदान में उतरे. लोजपा दूसरे दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ना चाहेगी.
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बता दें कि लोजपा बिहार की क्षेत्रीय पार्टी होने के बावजूद विधानसभा चुनाव में एक सीट पर सिमट गई थी. ऐसे में अगले साल यूपी में होने वाले चुनाव में लोजपा क्या हासिल कर पाएगी यह नतीजे आने पर ही पता चलेगा.
राजनीतिक विशेषज्ञ का का मानना है कि पार्टी के स्तर पर तो लोजपा का जनाधार यूपी में नहीं है. लोजपा जातीय आधार पर अपने वोट बैंक का दावा कर रही है. बिहार में ही लोजपा बंटी हुई है. चिराग पासवान को पहले खुद कि पार्टी को बचाने की जरूरत है. हालांकि राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार चिराग पासवान की बुद्धिमानी इसी में होगी कि वह किसी भी क्षेत्रीय दल के साथ गठबंधन कर कुछ सीटें हासिल करें चाहे उन्हें दो या चार सीट से ही क्यों नहीं संतोष करना पड़े. अन्यथा अकेले चुनाव लड़कर उन्होंने बिहार का परिणाम देख लिया है.