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भारत में पृथक रहने वाली आबादी कोविड-19 के प्रति संवेदनशील: रिसर्चर - BHU के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे

हाल ही में हैदराबाद की सेंटर फॉर डीएनए फिंगर प्रिंटिंग एंड डायग्‍नोस्टिक्‍स और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा की गई एक रिसर्च में पता चला है कि अंडमान द्वीप वासियों जैसे पृथक रहने वाले लोगों में कोविड-19 के प्रति अधिक संवेदनशील होने की संभावना है. पढ़ें पूरी खबर...

पृथक रहने वाली आबादी कोविड-19 के प्रति संवेदनशील
पृथक रहने वाली आबादी कोविड-19 के प्रति संवेदनशील
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Published : Oct 13, 2021, 9:38 PM IST

हैदराबाद : तेलंगाना के हैदराबाद में स्थित सेंटर फॉर डीएनए फिंगर प्रिंटिंग एंड डायग्‍नोस्टिक्‍स (Centre for DNA Fingerprinting and Diagnostics - CDFD) और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University - BHU) के वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि अंडमान द्वीप वासियों जैसे पृथक रहने वाले और मूल निवासियों के जीनोम में दीर्घ डीएनए समयुग्मक (DNA segments Homozygous) है और उनके कोविड-19 के प्रति अधिक संवेदनशील होने की संभावना है.

CSIR-सेंटर फॉर सेलुलर एंड मोलेक्यूलर बायोलॉजी (CSIR-Centre for Cellular and Molecular Biology - CCMB) की एक प्रेस रिलीज में बताया गया कि कोरोना वायरस ने दुनियाभर के विभिन्न जातीय समूह को प्रभावित किया है. हाल के अध्ययन से पता चला है कि ब्राजील के मूल निवासियों के समूह कोविड-19 से व्यापक रूप से प्रभावित हुए हैं.

यह रिसर्च CDFD के निदेशक कुमारसामी थंगराज (Kumarasamy Thangaraj, Director of CDFD, part of CCMB), BHU के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे (Prof Gyaneshwer Chaubey of BHU) और अन्य ने की है. यह हाल में जर्नल 'जीन्स एडं इम्यूनिटी' में ऑनलाइन प्रकाशित हुई है.

थंगराज ने अंडमान द्वीपवासियों की उत्पत्ति का पता लगाया था. उन्होंने कहा, हमने 227 जातीय आबादी के 1600 से ज्यादा व्यक्तियों के उच्च घनत्व जीनोमिक डेटा की जांच की. हमें ओन्गे, जारवा (अंडमान के आदिवासी) और कुछ अन्य लोगों में समयुग्मक जीनों की सन्निहित लंबाई की उच्च आवृत्ति मिली जो पृथक रहते हैं और सगोत्र विवाह का सख्ती से पालन करते है. इससे वे कोविड-19 संक्रमण के लिए काफी संवेदनशील हो गए.

पढे़ं : कोरोना के खिलाफ जंग, मिशन 100 करोड़ की ओर बढ़ रहा भारत

प्रेस रिलीज के मुताबिक, रिसर्चर ने ACE2 (Angiotensin Converting Enzyme 2) जीन स्वरूप का भी आकलन किया है जो लोगों को कोविड-19 के प्रति अतिसंवेदनशील बनाते हैं. उन्होंने पाया कि जारवा और ओन्गे आबादी में इन स्वरूपों की उच्च आवृत्ति (Frequency) है.

(पीटीआई-भाषा)

हैदराबाद : तेलंगाना के हैदराबाद में स्थित सेंटर फॉर डीएनए फिंगर प्रिंटिंग एंड डायग्‍नोस्टिक्‍स (Centre for DNA Fingerprinting and Diagnostics - CDFD) और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University - BHU) के वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि अंडमान द्वीप वासियों जैसे पृथक रहने वाले और मूल निवासियों के जीनोम में दीर्घ डीएनए समयुग्मक (DNA segments Homozygous) है और उनके कोविड-19 के प्रति अधिक संवेदनशील होने की संभावना है.

CSIR-सेंटर फॉर सेलुलर एंड मोलेक्यूलर बायोलॉजी (CSIR-Centre for Cellular and Molecular Biology - CCMB) की एक प्रेस रिलीज में बताया गया कि कोरोना वायरस ने दुनियाभर के विभिन्न जातीय समूह को प्रभावित किया है. हाल के अध्ययन से पता चला है कि ब्राजील के मूल निवासियों के समूह कोविड-19 से व्यापक रूप से प्रभावित हुए हैं.

यह रिसर्च CDFD के निदेशक कुमारसामी थंगराज (Kumarasamy Thangaraj, Director of CDFD, part of CCMB), BHU के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे (Prof Gyaneshwer Chaubey of BHU) और अन्य ने की है. यह हाल में जर्नल 'जीन्स एडं इम्यूनिटी' में ऑनलाइन प्रकाशित हुई है.

थंगराज ने अंडमान द्वीपवासियों की उत्पत्ति का पता लगाया था. उन्होंने कहा, हमने 227 जातीय आबादी के 1600 से ज्यादा व्यक्तियों के उच्च घनत्व जीनोमिक डेटा की जांच की. हमें ओन्गे, जारवा (अंडमान के आदिवासी) और कुछ अन्य लोगों में समयुग्मक जीनों की सन्निहित लंबाई की उच्च आवृत्ति मिली जो पृथक रहते हैं और सगोत्र विवाह का सख्ती से पालन करते है. इससे वे कोविड-19 संक्रमण के लिए काफी संवेदनशील हो गए.

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प्रेस रिलीज के मुताबिक, रिसर्चर ने ACE2 (Angiotensin Converting Enzyme 2) जीन स्वरूप का भी आकलन किया है जो लोगों को कोविड-19 के प्रति अतिसंवेदनशील बनाते हैं. उन्होंने पाया कि जारवा और ओन्गे आबादी में इन स्वरूपों की उच्च आवृत्ति (Frequency) है.

(पीटीआई-भाषा)

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