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सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रही नेशनल हॉकी खिलाड़ी, हाथों में स्टिक की जगह पकड़नी पड़ी कड़ाही

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Published : Nov 18, 2021, 12:53 AM IST

नेशनल हॉकी खिलाड़ी (National Hockey Player) रह चुकीं नेहा सिंह ने कभी सपने में भी होगा कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब हॉकी स्टिक के बदले उन्हें मछली तलने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. परिवार पर समय की ऐसी मार पड़ी है कि राष्ट्रीय खेल हॉकी (national sport hockey) की नेशनल खिलाड़ी नेहा सिंह (Hockey national player Neha Singh) अपनी छोटी बहन निकिता के साथ हमीरपुर के बाजार में फास्ट फूड की रेहड़ी लगा रहीं हैं. यह नेहा का शौक नहीं बल्कि मजबूरी है.

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हमीरपुर : राष्ट्रीय खेल हॉकी (national sport hockey) की नेशनल खिलाड़ी नेहा सिंह (Hockey national player Neha Singh) अपनी छोटी बहन नीकिता के साथ हमीरपुर के बाजार में फास्ट फूड की रेहड़ी लगा रहीं हैं. कॉलेज की पढ़ाई और खेल को बीच में ही छोड़कर नेहा परिवार का पेट पालने के लिए रेहड़ी पर इन दिनों मछली तलने का काम कर रही हैं.

कुछ महीने पहले ही पिता की तबीयत बिगड़ने के बाद वह गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो गए, जिसके बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारी नेहा सिंह और उनकी छोटी बहन पर आ गई है.मजबूरी इंसान से क्या-क्या नहीं करवाती है. इन दिनों राष्ट्रीय खेल हॉकी (national sport hockey) की नेशनल खिलाड़ी नेहा सिंह (Hockey national player Neha Singh) अपनी छोटी बहन नीकिता के साथ हमीरपुर के बाजार में फास्ट फूड की रेहड़ी लगा रहीं हैं.

कॉलेज की पढ़ाई और खेल को बीच में ही छोड़कर नेहा परिवार का पेट पालने के लिए रेहड़ी पर इन दिनों मछली तलने का काम कर रही हैं. कुछ महीने पहले ही पिता की तबीयत बिगड़ने के बाद वह गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो गए, जिसके बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारी नेहा सिंह और उनकी छोटी बहन पर आ गई है. कॉलेज की पढ़ाई और खेल के करियर को बीच में ही छोड़कर नेहा परिवार का पेट पालने के लिए रेहड़ी लगाने को मजबूर हैं.

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कुछ माह पहले ही पिता की तबीयत बिगड़ने के बाद वह गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो गए. पिता चंद्र सिंह जिस जगह पर मछली कॉर्नर चलाते थे. पिता के बीमार होने पर परिवार की पूरी जिम्मेदारी नेहा सिंह और उनकी छोटी बहन पर आ गई है. मूल रूप से मंडी के कोटली के रहने वाले इस परिवार के पास जमीन भी नहीं है, जिस वजह से हमीरपुर बाजार के बीचो बीच वह एक झुग्गीनुमा कमरे में अपने परिवार के चार अन्य सदस्यों के साथ रह रही हैं. न तो नहाने की कोई व्यवस्था है और न ही शौचालय का कोई प्रबंध.

झुग्गी में नेहा के बीमार पिता भी रह रहे हैं, जिन्हें डॉक्टर ने स्वच्छ वातावरण में रहने की सलाह दी है. झुग्गी में 5 व्यक्तियों का परिवार है, तो वहीं पिछली तरफ बने बाड़े में एक बकरी और मुर्गी रखी गयी है. नेहा के पिता पिछले कुछ समय से बीमार हैं पहले उनका मेडिकल कॉलेज हमीरपुर (Medical College Hamirpur) में उपचार हुआ उसके बाद उन्हें टांडा मेडिकल कॉलेज (Tanda Medical College) भेज दिया गया. वह कई महीनों से अब बिस्तर पर हैं और दोनों बेटियां रेहड़ी लगाकर परिवार के रोटी का भी प्रबंध कर रही हैं और पिता की दवाई का भी.

बड़ी बेटी नेहा सिंह स्कूली पढ़ाई के दौरान ही साई हॉस्टल धर्मशाला (Sai Hostel Dharamshala) के लिए चयनित हो गईं. स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के इस हॉस्टल में रहते हुए स्कूल के दौरान ही राष्ट्रीय स्तर की स्पर्धा में नेहा ने सिल्वर मेडल भी अपने नाम किया. उन्होंने हिमाचल की टीम की तरफ से कुल दो नेशनल हॉकी में खेले हैं. इसके अलावा पंजाब यूनिवर्सिटी से वह वेटलिफ्टिंग में भी एक नेशनल लगा चुकी हैं.

उभरती हुई इस खिलाड़ी के किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था. पिता अचानक बीमार हुए तो छोटी बहन नीकिता जो प्राइवेट कॉलेज की पढ़ाई कर रही है. उसको साथ लेकर परिवार का जिम्मा संभाल लिया. छोटा भाई अंकुश है वह बाल स्कूल हमीरपुर में पढ़ रहा है.

परिवार को यह उम्मीद थी कि बेटी नेहा राष्ट्रीय खिलाड़ी है तो उसे नौकरी मिल ही जाएगी, लेकिन ना तो सरकारी नौकरी ही मिली और ना ही अब नेहा अब खेलने के बारे में सोच रही हैं. इतना जरूर है कि जब कभी किसी टीम से खेलने के लिए पैसे मिल जाते हैं तो वह मैच में हिस्सा लेने के लिए तैयार हो जाती हैं.

नेहा का कहना है कि एक मैच खेलने के उन्हें 1500 रुपए और खाने पीने का और रहने का खर्च में मिल जाता है. मैच खेलने से मिलने वाले पैसे को भी नेहा पिता के इलाज और परिवार के पालन पोषण पर ही खर्च करती हैं. भूमिहीन होने पर सरकार से जमीन तो मिली है, लेकिन घर बनाने के लिए पैसों का प्रबंध नहीं हो रहा है. कुछ समय पहले ही भूमिहीन होने पर उन्हें सरकार की तरफ से हमीरपुर नगर परिषद के ही वार्ड नंबर 10 के समीप 4 मरले जमीन आवंटित की गई थी.

नेहा की मां निर्मला देवी कहती हैं कि सरकार की तरफ से उन्हें जमीन आवंटित की गई है. अधिकारियों का तो हमें पूरा सहयोग मिल रहा है, लेकिन बेटी को नौकरी न मिलने से उनकी परेशानी दोगुनी बढ़ गई है. पति के बीमार होने के बाद बेटियों ने किसी तरह से परिवार को संभाला है. इतना कहते-कहते नेहा की मां की आंखों में आंसू भी आ गए. रुंधे हुए गले से उन्होंने सरकार से बेटी के लिए नौकरी की मांग की है.

यह भी पढ़ें- 1436 किमी पैदल चलकर रांची पहुंचा धोनी का फैन, माही ने लगाया गले, फ्लाइट से भेजेंग वापस

निर्मला का कहना है कि कमेटी की तरफ से घर के निर्माण के लिए सरकार की तरफ से पैसे दिलाए जाने की बात कही गई है, लेकिन अभी तक पैसे का कोई प्रबंध नहीं हो पाया है. निर्मला कहती हैं कि, उन्होंने उधार लेकर मकान के निर्माण काम शुरू किया था, लेकिन अब यह काम भी पति के बीमार होने के बाद अधर में लटक गया है.

नेहा की छोटी बहन नीकिता ने कहती हैं कि मजबूरी में पिता के इलाज और परिवार के पालन पोषण के लिए रेहड़ी पर काम करना पड़ रहा है. अब पढ़ाई के लिए भी समय नहीं लग रहा है. नेहा का कहना है अब तो खेल में करियर की कोई उम्मीद नहीं है. अब सिर्फ परिवार के गुजारे के लिए वह मैच खेल लेती हैं, ताकि कुछ पैसे मिल जाएं.

आठवीं कक्षा के दौरान ही उनका चयन स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (Sports Authority of India) के धर्मशाला हॉस्टल के लिए हो गया था. हॉकी में उन्होंने जूनियर वर्ग में 2 नेशनल गेम खेले हैं और वेटलिफ्टिंग में पंजाब की तरफ से नेशनल स्पर्धा में हिस्सा लिया था.

हमीरपुर : राष्ट्रीय खेल हॉकी (national sport hockey) की नेशनल खिलाड़ी नेहा सिंह (Hockey national player Neha Singh) अपनी छोटी बहन नीकिता के साथ हमीरपुर के बाजार में फास्ट फूड की रेहड़ी लगा रहीं हैं. कॉलेज की पढ़ाई और खेल को बीच में ही छोड़कर नेहा परिवार का पेट पालने के लिए रेहड़ी पर इन दिनों मछली तलने का काम कर रही हैं.

कुछ महीने पहले ही पिता की तबीयत बिगड़ने के बाद वह गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो गए, जिसके बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारी नेहा सिंह और उनकी छोटी बहन पर आ गई है.मजबूरी इंसान से क्या-क्या नहीं करवाती है. इन दिनों राष्ट्रीय खेल हॉकी (national sport hockey) की नेशनल खिलाड़ी नेहा सिंह (Hockey national player Neha Singh) अपनी छोटी बहन नीकिता के साथ हमीरपुर के बाजार में फास्ट फूड की रेहड़ी लगा रहीं हैं.

कॉलेज की पढ़ाई और खेल को बीच में ही छोड़कर नेहा परिवार का पेट पालने के लिए रेहड़ी पर इन दिनों मछली तलने का काम कर रही हैं. कुछ महीने पहले ही पिता की तबीयत बिगड़ने के बाद वह गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो गए, जिसके बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारी नेहा सिंह और उनकी छोटी बहन पर आ गई है. कॉलेज की पढ़ाई और खेल के करियर को बीच में ही छोड़कर नेहा परिवार का पेट पालने के लिए रेहड़ी लगाने को मजबूर हैं.

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कुछ माह पहले ही पिता की तबीयत बिगड़ने के बाद वह गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो गए. पिता चंद्र सिंह जिस जगह पर मछली कॉर्नर चलाते थे. पिता के बीमार होने पर परिवार की पूरी जिम्मेदारी नेहा सिंह और उनकी छोटी बहन पर आ गई है. मूल रूप से मंडी के कोटली के रहने वाले इस परिवार के पास जमीन भी नहीं है, जिस वजह से हमीरपुर बाजार के बीचो बीच वह एक झुग्गीनुमा कमरे में अपने परिवार के चार अन्य सदस्यों के साथ रह रही हैं. न तो नहाने की कोई व्यवस्था है और न ही शौचालय का कोई प्रबंध.

झुग्गी में नेहा के बीमार पिता भी रह रहे हैं, जिन्हें डॉक्टर ने स्वच्छ वातावरण में रहने की सलाह दी है. झुग्गी में 5 व्यक्तियों का परिवार है, तो वहीं पिछली तरफ बने बाड़े में एक बकरी और मुर्गी रखी गयी है. नेहा के पिता पिछले कुछ समय से बीमार हैं पहले उनका मेडिकल कॉलेज हमीरपुर (Medical College Hamirpur) में उपचार हुआ उसके बाद उन्हें टांडा मेडिकल कॉलेज (Tanda Medical College) भेज दिया गया. वह कई महीनों से अब बिस्तर पर हैं और दोनों बेटियां रेहड़ी लगाकर परिवार के रोटी का भी प्रबंध कर रही हैं और पिता की दवाई का भी.

बड़ी बेटी नेहा सिंह स्कूली पढ़ाई के दौरान ही साई हॉस्टल धर्मशाला (Sai Hostel Dharamshala) के लिए चयनित हो गईं. स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के इस हॉस्टल में रहते हुए स्कूल के दौरान ही राष्ट्रीय स्तर की स्पर्धा में नेहा ने सिल्वर मेडल भी अपने नाम किया. उन्होंने हिमाचल की टीम की तरफ से कुल दो नेशनल हॉकी में खेले हैं. इसके अलावा पंजाब यूनिवर्सिटी से वह वेटलिफ्टिंग में भी एक नेशनल लगा चुकी हैं.

उभरती हुई इस खिलाड़ी के किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था. पिता अचानक बीमार हुए तो छोटी बहन नीकिता जो प्राइवेट कॉलेज की पढ़ाई कर रही है. उसको साथ लेकर परिवार का जिम्मा संभाल लिया. छोटा भाई अंकुश है वह बाल स्कूल हमीरपुर में पढ़ रहा है.

परिवार को यह उम्मीद थी कि बेटी नेहा राष्ट्रीय खिलाड़ी है तो उसे नौकरी मिल ही जाएगी, लेकिन ना तो सरकारी नौकरी ही मिली और ना ही अब नेहा अब खेलने के बारे में सोच रही हैं. इतना जरूर है कि जब कभी किसी टीम से खेलने के लिए पैसे मिल जाते हैं तो वह मैच में हिस्सा लेने के लिए तैयार हो जाती हैं.

नेहा का कहना है कि एक मैच खेलने के उन्हें 1500 रुपए और खाने पीने का और रहने का खर्च में मिल जाता है. मैच खेलने से मिलने वाले पैसे को भी नेहा पिता के इलाज और परिवार के पालन पोषण पर ही खर्च करती हैं. भूमिहीन होने पर सरकार से जमीन तो मिली है, लेकिन घर बनाने के लिए पैसों का प्रबंध नहीं हो रहा है. कुछ समय पहले ही भूमिहीन होने पर उन्हें सरकार की तरफ से हमीरपुर नगर परिषद के ही वार्ड नंबर 10 के समीप 4 मरले जमीन आवंटित की गई थी.

नेहा की मां निर्मला देवी कहती हैं कि सरकार की तरफ से उन्हें जमीन आवंटित की गई है. अधिकारियों का तो हमें पूरा सहयोग मिल रहा है, लेकिन बेटी को नौकरी न मिलने से उनकी परेशानी दोगुनी बढ़ गई है. पति के बीमार होने के बाद बेटियों ने किसी तरह से परिवार को संभाला है. इतना कहते-कहते नेहा की मां की आंखों में आंसू भी आ गए. रुंधे हुए गले से उन्होंने सरकार से बेटी के लिए नौकरी की मांग की है.

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निर्मला का कहना है कि कमेटी की तरफ से घर के निर्माण के लिए सरकार की तरफ से पैसे दिलाए जाने की बात कही गई है, लेकिन अभी तक पैसे का कोई प्रबंध नहीं हो पाया है. निर्मला कहती हैं कि, उन्होंने उधार लेकर मकान के निर्माण काम शुरू किया था, लेकिन अब यह काम भी पति के बीमार होने के बाद अधर में लटक गया है.

नेहा की छोटी बहन नीकिता ने कहती हैं कि मजबूरी में पिता के इलाज और परिवार के पालन पोषण के लिए रेहड़ी पर काम करना पड़ रहा है. अब पढ़ाई के लिए भी समय नहीं लग रहा है. नेहा का कहना है अब तो खेल में करियर की कोई उम्मीद नहीं है. अब सिर्फ परिवार के गुजारे के लिए वह मैच खेल लेती हैं, ताकि कुछ पैसे मिल जाएं.

आठवीं कक्षा के दौरान ही उनका चयन स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (Sports Authority of India) के धर्मशाला हॉस्टल के लिए हो गया था. हॉकी में उन्होंने जूनियर वर्ग में 2 नेशनल गेम खेले हैं और वेटलिफ्टिंग में पंजाब की तरफ से नेशनल स्पर्धा में हिस्सा लिया था.

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