पटना: रोशनी के पर्व दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा (govardhan puja) होती है. इस बार गोवर्धन पूजा 5 नवंबर यानी आज मनायी जा रही है. इस दिन लोग भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं और उन्हें छप्पन भोग अर्पित करते हैं. यह त्योहार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन मनाया जाता है. कहा जाता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर इंद्रदेव के क्रोध से ब्रजवासियों को बचाया था.
देश के कुछ हिस्सों में गोवर्धन पूजा (govardhan puja) को ‘पड़वा’, ‘वर्षाप्रतिपाद’ या 'अन्नकूट' भी कहते हैं. आज के दिन भगवान कृष्ण, गायों और गोवर्द्धन की पूजा की जाती है. इस दिन 56 प्रकार या 108 प्रकार के भोजन से ठाकुर जी को भोग लगाया जाता है. आज के दिन भगवान कृष्ण, गायों और गोवर्द्धन की पूजा की जाती है. इस दिन 56 प्रकार या 108 प्रकार के भोजन से ठाकुर जी को भोग लगाया जाता है.
क्यों मनाई जाती है गोवर्द्धन पूजा
आचार्य कमल दुबे ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान कृष्ण ने गांववालों से देव राज इंद्र की पूजा करने से मना कर दिया था तब देव राज इंद्र को गुस्सा आ गया और उन्होंने खूब बारिश की जिसकी वजह से पूरा गोकुल तबाह हो गया. तब भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र के प्रकोप से गोकुलवासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया था. जिससे सभी गोकुलवासियों की रक्षा हुई और इंद्र देव का घमंड भी टूट गया तभी से इस पर्व को मनाने की परंपरा चली आ रही है.
गोवर्द्धन पूजा तिथि, शुभ मुहूर्त
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 05 नवंबर, सुबह 02 बजकर 44 मिनट से
प्रतिपदा तिथि समाप्त: 05 नवंबर, रात 11 बजकर 44 मिनट तक
गोवर्द्धन पूजा मुहूर्त: 6:36 से प्रातः 8:47 तक अवधि लगभग 2 घंटे 11 मिनट गोवर्धन पूजा सायं मुहूर्त 3:22 से 5:33 तक
पूजन विधि:
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शरीर पर तेल मलकर स्नान करें.
इसके बाद स्वच्छ कपड़ा पहनकर भगवान को याद करे.
इसके बाद घर के मुख्य द्वार पर गाय के गोबर से पर्वत बनाए.
फिर उसे वृक्ष, वृक्ष की शाखा एवं पुष्प इत्यादि से श्रृंगारित करें.
इसके बाद स्नान कराए, फूल, चंदन चढ़ाकर विधिवत पूजन करें.
गायों की पूजा करें. फिर गोवर्द्धन पर्वत और गायों को भोग लगाकर आरती उतारें.
गोवर्धन कथा
द्वापर युग में जब ब्रजवासी देवराज इंद्र के भय से उनकी छप्पन भोग द्वारा पूजा किया करते थे. उस समय गोप और ग्वालों को श्री हरि ने इंद्र पूजा न करने को कहा और प्रत्यक्ष देव गौ और गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए प्रेरित किया. इंद्र के भोग को स्वयं गोवर्धन रूप में प्रकट होकर ग्रहण कर लिया. इस घटना से क्रुद्ध होकर इंद्र ने बज्र से अतिवृष्टि कर दी.
इसी के फलस्वरूप श्री कृष्ण ने अपनी लीला का स्वरूप बढ़ाते हुए स्वयं गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर धारण किया और इंद्र के प्रकोप से होने वाली धन जन की हानि से संपूर्ण ब्रज क्षेत्र की रक्षा की. इसके बाद इंद्र ने श्री कृष्ण की शरण ली और संपूर्ण ग्राम में गोविंद का गुणगान और उत्सव मनाया गया तभी से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन धारी श्री कृष्ण का गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर पंचोपचार पूजन किया जाता है. साथ में गौ माता की भी पूजा की जाती है.
वास्तव में भगवान श्रीकृष्ण ने पूजा स्वयं की पूजा के उद्देश्य से नहीं बल्कि अहंकार और दुराचार की समाप्ति तथा गाय और वन की रक्षा के संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रारंभ की. अहंकार किसी में भी व्याप्त हो सकता है चाहे वह देव हो या असुर फिर साधारण मानव की तो बात ही क्या. इसलिए यह पर्व हमें अहंकार त्याग प्रकृति प्रेम और दूसरों की सेवा व सहायता करने की शिक्षा देता है. शास्त्र कहते हैं जो भी कोई भक्त गिरिराज जी के दर्शन करता है और गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करता है. उसे कई तीर्थों और तपस्या ओं को करने का फल प्राप्त होता है.