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यूक्रेन में कीव की दहलीज पर दुश्मन, आमने-सामने की लड़ाई होगी भीषण

रूस-यूक्रेन की लड़ाई का फोकस अब शहरी गुरिल्ला शैली के युद्ध 'स्ट्रीट-बाय-स्ट्रीट' पर होगा. इससे पहले कि रूसी सेनाएं शहरों के मुहाने तक जा पहुंचे. आम जनता भी उनकी जद में आएं. ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि युद्ध का एक खराब दौर अभी बाकी है. वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट.

Ukraine battle
रूस-यूक्रेन की लड़ाई
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Published : Feb 26, 2022, 10:47 PM IST

नई दिल्ली : सिर्फ दो दिन की लड़ाई में जिस तरह से रूसी सेना ने ब्लिट्जक्रेग स्टाइल अटैक (blitzkrieg style attack) किया है उसके कई यूक्रेनी शहरों के बाहरी इलाके में पहुंचने की सूचना है. ब्लिट्जक्रेग स्टाइल अटैक, युद्ध का वह सिद्धांत है जिसमें दुश्मन पर तीव्र, भारी बल एकाग्रता के साथ इस्तेमाल किया जाता है. रूसी सेना ने शहरी इलाकों को गुरुवार से विमानों, मिसाइलों और तोपों से निशाना बनाया है. लेकिन निर्णायक लड़ाई तब शुरू होती है जब सेनाएं जमीन पर आमने-सामने होती हैं. या यूं कहें कि सड़कों पर आमना-सामना होता है. यह युद्ध का सबसे खराब हिस्सा भी होता है.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, शनिवार को यूक्रेन के दक्षिणपूर्व के पहले शहर मेलिटोपोल (Melitopol) पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया है. इससे पहले कि राजधानी कीव, ओडेसा और कार्खिव सहित प्रमुख शहरों पर कब्जा हो, सवाल ये है कि क्या कोई बातचीत का विकल्प है. इस बीच यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की (Ukrainian President Volodymyr Zelenkskyy) ने कहा है कि वह आत्मसमर्पण नहीं करेंगे. यूक्रेन के स्वास्थ्य मंत्री विक्टर ल्याशको (health minister Viktor Lyashko ) के मुताबिक अब तक करीब 200 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं जबकि एक हजार से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं.

जबकि चेरनोबिल परमाणु संयंत्र (Chernobyl nuclear plant) पर रूसियों ने कब्जा कर लिया है. राजधानी कीव सहित शहर के निवासी लड़ाई के लिए तैयार हो रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक 80,000 बंदूकें पहले से ही वितरित की जा चुकी हैं. पेट्रोल बम कैसे बनाने हैं और उनका कैसे इस्तेमाल करना है, इस बारे में भी लोगों को समझाया जा चुका है. लेकिन बाहरी इलाके की अपेक्षा शहरों की लड़ाई आसान नहीं होगी. कीव में लड़ाई घेराबंदी के साथ शुरू होने की संभावना है, जिससे यह दूसरी बार होगा कि राजधानी 'घेराबंदी' के लिए सुर्खियां बटोरेगी.

1941 में कीव में प्रवेश करने वाले जर्मन सैनिक (फाइल फोटो)
1941 में कीव में प्रवेश करने वाले जर्मन सैनिक (फाइल फोटो)

युद्ध के इतिहास में सबसे बड़ी घेराबंदी, ऑपरेशन बारब्रोसा (Operation Barbarossa) के दौरान मानी जाती है. जब द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत संघ पर जर्मन आक्रमण हुआ था. 7 अगस्त 1941 से 26 सितंबर 1941 तक 50 दिन तक नाजी जर्मनी के सैनिकों ने कीव शहर में फंसे सोवियत सैनिकों को घेरे रखा था. जब अंततः जर्मन सेना अंदर पहुंची तो करीब 700,000 से अधिक रूसी सैनिक मारे जा चुके थे. यह रूसी सैन्य इतिहास की सबसे विनाशकारी घटनाओं में से एक थी.

यही संभावना है कि रूसी सेना कीव की घेरेबंदी की कोशिश करेगी. रूस का जो परंपरागत तरीका रहा है उससे यही लगता है कि इसके लिए उसे और अधिक सैनिकों की आवश्यकता होगी. इसमें कुछ समय जरूर लगेगा. यूक्रेनियन को लामबंद होने का भी मौका मिलेगा. हालांकि ये यूक्रेन के लोगों के लिए भले ही बहुत तनाव की स्थिति है, लेकिन रूस के लिए राह आसान नहीं है. वजह ये कि रूसियों को उन जगहों और सड़कों पर लड़ना होगा जहां से यूक्रेनियन भलीभांति परिचित हैं.

नई दिल्ली : सिर्फ दो दिन की लड़ाई में जिस तरह से रूसी सेना ने ब्लिट्जक्रेग स्टाइल अटैक (blitzkrieg style attack) किया है उसके कई यूक्रेनी शहरों के बाहरी इलाके में पहुंचने की सूचना है. ब्लिट्जक्रेग स्टाइल अटैक, युद्ध का वह सिद्धांत है जिसमें दुश्मन पर तीव्र, भारी बल एकाग्रता के साथ इस्तेमाल किया जाता है. रूसी सेना ने शहरी इलाकों को गुरुवार से विमानों, मिसाइलों और तोपों से निशाना बनाया है. लेकिन निर्णायक लड़ाई तब शुरू होती है जब सेनाएं जमीन पर आमने-सामने होती हैं. या यूं कहें कि सड़कों पर आमना-सामना होता है. यह युद्ध का सबसे खराब हिस्सा भी होता है.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, शनिवार को यूक्रेन के दक्षिणपूर्व के पहले शहर मेलिटोपोल (Melitopol) पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया है. इससे पहले कि राजधानी कीव, ओडेसा और कार्खिव सहित प्रमुख शहरों पर कब्जा हो, सवाल ये है कि क्या कोई बातचीत का विकल्प है. इस बीच यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की (Ukrainian President Volodymyr Zelenkskyy) ने कहा है कि वह आत्मसमर्पण नहीं करेंगे. यूक्रेन के स्वास्थ्य मंत्री विक्टर ल्याशको (health minister Viktor Lyashko ) के मुताबिक अब तक करीब 200 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं जबकि एक हजार से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं.

जबकि चेरनोबिल परमाणु संयंत्र (Chernobyl nuclear plant) पर रूसियों ने कब्जा कर लिया है. राजधानी कीव सहित शहर के निवासी लड़ाई के लिए तैयार हो रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक 80,000 बंदूकें पहले से ही वितरित की जा चुकी हैं. पेट्रोल बम कैसे बनाने हैं और उनका कैसे इस्तेमाल करना है, इस बारे में भी लोगों को समझाया जा चुका है. लेकिन बाहरी इलाके की अपेक्षा शहरों की लड़ाई आसान नहीं होगी. कीव में लड़ाई घेराबंदी के साथ शुरू होने की संभावना है, जिससे यह दूसरी बार होगा कि राजधानी 'घेराबंदी' के लिए सुर्खियां बटोरेगी.

1941 में कीव में प्रवेश करने वाले जर्मन सैनिक (फाइल फोटो)
1941 में कीव में प्रवेश करने वाले जर्मन सैनिक (फाइल फोटो)

युद्ध के इतिहास में सबसे बड़ी घेराबंदी, ऑपरेशन बारब्रोसा (Operation Barbarossa) के दौरान मानी जाती है. जब द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत संघ पर जर्मन आक्रमण हुआ था. 7 अगस्त 1941 से 26 सितंबर 1941 तक 50 दिन तक नाजी जर्मनी के सैनिकों ने कीव शहर में फंसे सोवियत सैनिकों को घेरे रखा था. जब अंततः जर्मन सेना अंदर पहुंची तो करीब 700,000 से अधिक रूसी सैनिक मारे जा चुके थे. यह रूसी सैन्य इतिहास की सबसे विनाशकारी घटनाओं में से एक थी.

यही संभावना है कि रूसी सेना कीव की घेरेबंदी की कोशिश करेगी. रूस का जो परंपरागत तरीका रहा है उससे यही लगता है कि इसके लिए उसे और अधिक सैनिकों की आवश्यकता होगी. इसमें कुछ समय जरूर लगेगा. यूक्रेनियन को लामबंद होने का भी मौका मिलेगा. हालांकि ये यूक्रेन के लोगों के लिए भले ही बहुत तनाव की स्थिति है, लेकिन रूस के लिए राह आसान नहीं है. वजह ये कि रूसियों को उन जगहों और सड़कों पर लड़ना होगा जहां से यूक्रेनियन भलीभांति परिचित हैं.

एक बात ये भी नहीं भूलनी चाहिए कि यूक्रेनियन बहुत कठोर सेनानियों के रूप में जाने जाते हैं, जो आसानी से कोई रास्ता नहीं देंगे. ऐसे में कहना होगा कि रूसियों के लिए कठिन लड़ाई है.

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