नई दिल्ली : बाल विवाह से दुनियाभर में हर दिन 60 से अधिक लड़कियों और दक्षिण एशिया में एक दिन में छह लड़कियों की मौत होती है. अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर जारी एक नए विश्लेषण में दावा किया गया है कि बाल विवाह के कारण गर्भधारण और बच्चे को जन्म देने की वजह से हर साल तकरीबन 22,000 लड़कियों की मौत हो रही है.
'सेव द चिल्ड्रन' की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण एशिया में हर साल बाल विवाह से संबंधित 2,000 मौत होती हैं. इसके बाद पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में 650 और लातिन अमेरिका तथा कैरेबियाई देशों में हर साल 560 मौत होती हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है, 'हर साल अनुमानित रूप से गर्भावस्था के कारण 22,000 लड़कियों की मौत हो रही है और बाल विवाह से बच्चों का जन्म हो रहा है. बाल विवाह से हर दिन 60 से अधिक लड़कियों की मौत होती है और दक्षिण एशिया में हर दिन छह लड़कियों की मौत होती है.'
हालांकि, पश्चिम और मध्य एशिया में दुनिया में बाल विवाह की सबसे अधिक दर है और दुनियाभर में बाल विवाह से होने वाली मौतों में से करीब आधी (9,600) या हर दिन 26 मौत होती हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है, 'हालांकि, पिछले 25 वर्षों में दुनियाभर में करीब आठ करोड़ बाल विवाहों को रोका गया लेकिन कोविड-19 महामारी से पहले ही इसमें प्रगति रुक गई और महामारी से असमानताएं और ज्यादा गहरी हुई है जिससे बाल विवाह बढ़ते हैं. स्कूलों के बंद होने, स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव बढ़ने तथा और परिवारों के गरीबी की ओर बढ़ने के कारण महिलाओं और लड़कियों पर लॉकडाउन के दौरान हिंसा का खतरा बढ़ा. 2030 तक एक करोड़ और बालिकाओं की शादी होने की आशंका है यानी कि और लड़कियों की मौत होने का खतरा है.'
'सबसे खराब और जानलेवा रूप'
'सेव द चिल्ड्रन इंटरनेशनल' के मुख्य कार्यकारी अधिकारी इंगर एशिंग ने कहा कि बाल विवाह लड़कियों के खिलाफ यौन और लैंगिक हिंसा का सबसे खराब और जानलेवा रूप है. हर साल लाखों लड़कियों को ऐसे पुरुषों से शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है जो उनसे उम्र में कहीं अधिक बड़े होते हैं जिससे उनके सीखने, बचपन जीने और कई मामलों में जीवित रहने का अवसर छिन जाता है.'
उन्होंने कहा, 'बच्चे को जन्म देना किशोरियों के लिए पहले नंबर का हत्यारा है क्योंकि उनकी कम उम्र बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार नहीं होती. बच्चियों के बच्चे पैदा करने के स्वास्थ्य खतरों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. सरकार को बालिकाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे बाल विवाह और समय से पूर्व बच्चे को जन्म देने से होने वाली मौतों से बची रहें. यह तभी हो सकता है जब लड़कियों को प्रभावित करने वाले फैसलों में उनकी भूमिका हो.'
सेव द चिल्ड्रन, इंडिया के सीईओ सुदर्शन ने कहा, 'हम बाल रक्षा भारत' में बाल विवाह को संग्रहालयों और इतिहास तक ही सीमित देखना चाहते हैं. यह हमारी सामूहिक विफलता है कि इस सदी में भी मानवता के खिलाफ ऐसा प्रचलित और चिरस्थायी अपराध है. वे सभी जो समाधान का हिस्सा नहीं हैं, उन्हें खुद को समस्या का हिस्सा समझना चाहिए.'
उन्होंने कहा,'बच्चों और विशेष रूप से बालिकाओं को उनके सीखने के मूल अधिकार और एक खुशहाल और बेफिक्र बचपन का आनंद लेने से वंचित करना मानवाधिकारों का उल्लंघन है और इसकी निंदा करने की आवश्यकता है. इसे एक सांस्कृतिक तत्व के रूप में खारिज नहीं किया जाना चाहिए और इसके बजाय इसे जीवन और स्वतंत्रता के मूल अधिकार से इनकार के रूप में देखा जाना चाहिए.'
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सेव द चिल्ड्रन द्वारा सोमवार को जारी एक वैश्विक रिपोर्ट 'ग्लोबल गर्लहुड रिपोर्ट 2021: संकट में लड़कियों के अधिकार' में संगठन, सरकारों से सभी सार्वजनिक निर्णय लेने में सुरक्षित और सार्थक भागीदारी के उनके अधिकार का समर्थन करके लड़कियों की आवाज उठाने का आह्वान कर रहा है.
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संगठन ने यह भी मांग की कि सरकारों को समावेशी नीतियों और कार्यक्रमों को विकसित करके सभी लड़कियों के अधिकारों की गारंटी देनी चाहिए, जिसमें असमानता और भेदभाव के विभिन्न रूप (लिंग, जाति, विकलांगता, आर्थिक पृष्ठभूमि, आदि के आधार पर) शामिल हैं.
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(पीटीआई-भाषा)