पटना: स्वतंत्र भारत में किसी राज्य ने पहली बार जाति आधारित गणना के काम पूरा कराया गया है. सोमवार को गांधी जयंती पर बिहार में जाति आधारित गणना की रिपोर्ट भी प्रकाशित कर दी गई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछड़ी जाति की संख्या में जहां उछाल आया है, वहीं अगड़ी जाति की संख्या कम दिख रही है. 2023 से पहले 1931 में जातिगत जनगणना कराया गया था. 1931 की जनगणना के मुताबिक बिहार में 13% अगड़ी जाति के लोग थे लेकिन 2023 में यह आंकड़ा कम हो गया और अगड़ी जाति की आबादी 10.66 रह गई है. लगभग ढाई प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है.
बिहार में अगड़ी जातियों की आबादी: 1931 की जनगणना के मुताबिक बिहार में ब्राह्मणों की संख्या 4.7 थी, जो अब घटकर 3.65 रह गई है. वहीं, भूमिहार जाति की आबादी 2.9% थी, जो घटकर 2.86% रह गई है. राजपूत की आबादी 4.02% थी लेकिन अब वह भी घटकर 3.45% रह गई है. इसके अलावे कायस्थ की बात करें तो उसकी आबादी पहले 1.2% थी, जो घटकर 0.60% रह गई है.
अगड़ी जातियों की आबादी घटने पर विरोध: जातीय सर्वे की रिपोर्ट सामने आने के बाद अलग-अलग जाति से आने वाले लोगों ने विरोध शुरू कर दिया है. कुशवाहा जाति से आने वाले लोगों ने यह कहकर विरोध किया है कि उनकी आबादी को कम करके दिखाया गया है. कुशवाहा समाज के लोगों ने पोस्टर लगाकर नीतीश कुमार का विरोध भी किया है. वहीं, कायस्थ समुदाय से आने वाले लोगों का गुस्सा भी सातवें आसमान पर है. उनका कहना है कि हमारी आबादी आधी कैसे हो गई है, सरकार को बताना चाहिए.
कुर्मी से भी कम भूमिहार: भूमिहार जाति की आबादी में भी कमी दिखाई गई है. बिहार में कुर्मी जाति की आबादी को भूमिहार से अधिक दिखाया गया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक कुर्मी जाति की आबादी 2.87 प्रतिशत है, जबकि भूमिहार जाति की आबादी 2.86 फीसदी है. अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के प्रदेश अध्यक्ष अजीत कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि किस तरीके से गणना की गई है, यह हमारे समझ से परे है.
"किस तरीके से जातियों की गणना की गई है, यह हमारे समझ से परे है. केवल पटना में हमारी आबादी 7 लाख से अधिक है. इसके अलावा मुजफ्फरपुर, मोतिहारी और गोपालगंज जिले में भी कायस्थ जाति की आबादी अच्छी खासी है. सरकार को यह बताना चाहिए कि हमारी संख्या को कम करके क्यों दिखाई जा रहा है?"- अजीत कुमार श्रीवास्तव, प्रदेश अध्यक्ष, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा
कुशवाहा समाज क्यों नाराज?: वहीं, कुशवाहा समुदाय से आने वाले अरुण कुशवाहा का मानना है कि जातिगत जनगणना की रिपोर्ट प्रकाशित करने के दौरान निष्पक्षता नहीं बरती गई. जिस तरीके से यादव जाति में आने वाले तमाम उपजाति को जोड़ा गया था, उसी तरीके से कुशवाहा जाति की भी तमाम उपजाति को जोड़कर बताया जाना चाहिए था.
क्या कहते हैं जानकार?: जाति आधारित सर्वे को लेकर उठे रहे सवालों पर राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार का कहना है कि पिछड़ी जाति की संख्या में तो वृद्धि हुई है लेकिन ब्राह्मण, राजपूत, कायस्थ और भूमिहार जाति की संख्या में 1931 के मुकाबले 2023 में कमी दिखाई जा रही है. हालांकि कमी के पीछे कोई तर्कसंगत कारण नहीं दिखता है. सरकार को एक बार प्रक्रिया को देखने की जरूरत है कि कहीं कोई त्रुटि तो नहीं रह गई है.
"पिछड़ी जाति की संख्या में तो वृद्धि हुई है लेकिन अगड़ी जातियों की संख्या में 1931 की जनगणना के मुकाबले 2023 के जातीय सर्वेक्षण में कमी दिखाई जा रही है. कमी के पीछे कोई तर्कसंगत कारण नहीं दिखता है, ऐसे में सरकार को एक बार प्रक्रिया को देखने की जरूरत है"- डॉ. संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक
बिहार में जाति आधारित सर्वे के आंकड़े जारी: दरअसल, सोमवार को जो जाति आधारित सर्वे की रिपोर्ट जारी हुई है, उसके अनुसार बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ से अधिक है. इनमें अनारक्षित वर्ग के तहत भूमिहार जाति की आबादी 2.89 फीसदी, राजपूत की आबादी 3.45 प्रतिशत, ब्राह्मण की संख्या 3.66 फीसदी और कायस्थ जाति की आबादी 0.60% बताई गई है. 63 फीसदी ओबीसी की है, जिसमें 24 फीसदी पिछड़ा वर्ग और 36 फीसदी अत्यंत पिछड़ा वर्ग है. वहीं, अनुसूचित जाति की आबादी 19 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति की आबादी 1.68 फीसदी है. बिहार में सबसे अधिक यादव जाति है, जिनकी आबादी 14 फीसदी से अधिक है. वहीं, कुर्मी 2.8 और कुशवाहा 4.2 प्रतिशत हैं, जबकि मुसलमानों की आबादी 17.7 फीसदी है.
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