वाराणसी : काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वैदिक विज्ञान की छात्रा नेहा सिंह ने एक और बड़ी उपलब्धि हासिल की है. उन्होंने फिंगर प्रिंट आधारित दुनिया की सबसे बड़ी गौमाता की तस्वीर बनाई है. छात्रा को यह कारनामा करने में दो महीने का वक्त लगा. इस खास तस्वीर को बनाने में 3 लाख 55 हजार 488 अंगुलियों के निशान का प्रयोग किया गया है. यह चित्र 62.46 वर्ग मीटर की है. दावा है कि 'फिंगर प्रिंट पेंटिंग कामधेनु' विश्व में सबसे बड़ी है. गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में इसे दर्ज कराने के लिए दावा पेश किया जाएगा. मंगलवार को इस पेंटिंग का अनावरण किया गया.
विश्व रिकॉर्ड बना चुकी है छात्रा: छात्रा नेहा सिंह 8 किताबों की लेखिका हैं. इसके साथ ही अभी तक वह 5 विश्व रिकॉर्ड भी बना चुकी हैं. यह इनकी 6वें विश्व रिकॉर्ड की तैयारी है. वह इस तरह के कार्यों से सनातन संस्कृति के प्रचार-प्रसार में जुड़ी रहती हैं. हनुमान चालीसा, दशोपनिषद, श्रीमद्भगवद्गीता विषयों पर भी वह अपने अन्य विश्व रिकार्ड बना चुकी हैं. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में नेहा सिंह एकलौती गिनीज रिकार्ड धारी हैं. उनके गौमाता के चित्र का विमोचन वैदिक विज्ञान केंद्र कैंपस में वित्त अधिकारी डॉ. अभय कुमार ठाकुर ने किया है.
लाखों अंगुलियों के निशानः छात्रा नेहा सिंह द्वारा विश्व की सबसे बड़ी गौमाता का चित्रण किया गया है. यह चित्रण 62.46 वर्ग मीटर (672 वर्ग फीट) कैनवास पर बनी है. इसमें लगभग 3 लाख 55 हजार 488 अंगुलियों के निशान का प्रयोग किया गया है. छात्रा ने बिना ब्रश के अपनी अंगुली के निशान से ही इस पेंटिंग को तैयार किया है. पेंटिंग की लंबाई 12.8 मीटर (42 फीट), चौड़ाई 4.88 मीटर (16 फीट) है. कुल आकार 62.464 वर्ग मीटर (672 वर्ग फीट) है.
पेंटिंग बनाने में लगे दो माहः छात्रा नेहा सिंह ने बताया कि अभी तक गौमाता की फिंगर प्रिंट पर कोई पेंटिंग नहीं बनी है. यह पहली बार बनी है. इसलिए यह पूरे विश्व के लिए एक चैलेंज जैसा है. सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार करने के लिए गौमाता को इस विषय पर रखा है. छात्रा ने बताया कि इस पेंटिंग को बनाने में कुल 2 महीने लगे थे. इसमें मुख्यत: एक्रेलिक कलर प्रयोग किए गए हैं, जो कि कैनवास पर प्रयोग हुआ है. यह एकल फ्रिंगर प्रिंट पेंटिंग है. इस चित्र को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में डालने के लिए बनाया है.
गौमाता पर शोध के दौरान पेंटिंग बनाने की सोचः छात्रा ने कहा कि इस पेंटिंग का श्रेय वह वैदिक विज्ञान केन्द्र के समन्वयक प्रो. उपेंद्र कुमार त्रिपाठी को देती हैं. वैदिक विज्ञान केन्द्र द्वारा उन्हें वेद-उपनिषद में वर्णित केवल ज्ञान को ही नहीं समझाया जाता है, बल्कि उनकी वैज्ञानिकता पर भी विशेष प्रकाश डालकर उनका तुलनात्मक अध्ययन कराया जाता है. यही कारण है कि गौमाता सबके सामने है. छात्रा ने बताया कि दो साल पहले जब वह गौमाता की दिव्यता एवं वैज्ञानिकता पर शोध कर रहीं थीं. उसी दौरान उन्हें लगा था कि नए विश्व रिकॉर्ड के लिए गौमाता को विश्वपटल पर रखना चाहिए.
विमोचन में हुई देरी : नेहा सिंह ने बताया कि गौमाता पर पेंटिंग एक साल पहले ही पूरी हो चुकी थी. 2021 के लॉकडाउन एवं नवरात्रि के छुट्टियों में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कला संकाय में डॉ. मनीष अरोरा, सुरेश के नायर, हीरालाल प्रजापति एवं अन्य शिक्षकों के सहयोग एवं देखरेख में ही इस कार्य को पूरा किया गया था. अपने शोध कार्य और अन्य पढ़ाई में व्यस्त रहने के कारण विमोचन करने में काफी देरी हो गई है.