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बिहार : दरभंगा महाराज के घर के अंदर चलती थी रेल, ऐसी थी शान-ओ-शौकत

'मिथिलांचल का दिल' कहा जाने वाला दरभंगा अपने समृद्ध अतीत और प्रसिद्ध दरभंगा राज के लिए जाना जाता है. भारतीय रेलवे ने अब जाकर निजी तेजस ट्रेन की शुरुआत की है. लेकिन आज से 145 साल पहले दरभंगा महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह के जमाने में उनके किले के अंदर तक रेल लाइनें बिछी थी और ट्रेनें आती-जाती थीं.

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Published : Oct 26, 2019, 10:16 AM IST

दरभंगा: बिहार का यह जिला अपने समृद्ध अतीत और प्रसिद्ध दरभंगा राज के लिए जाना जाता है. अपनी सांस्कृतिक और शाब्दिक परंपराओं के लिए भी दरभंगा मशहूर है और शहर बिहार की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में लोकप्रिय है. यहां का इतिहास रामायण और महाभारत काल से जुड़ा है जिसका जिक्र भारतीय पौराणिक महाकाव्यों में भी है.

अंग्रेज भी मानते थे इस रियासत का जलवा
देश के रजवाड़ों में दरभंगा राज का हमेशा अलग स्थान रहा है. ये रियासत बिहार के मिथिला और बंगाल के कुछ इलाकों में कई किलोमीटर के दायरे तक फैला था. रियासत का मुख्यालय दरभंगा शहर था. ब्रिटिश इंडिया में इस रियासत का जलवा अंग्रेज भी मानते थे. इस रियासत के आखिरी महाराज कामेश्वर सिंह तो अपनी शान-शौकत के लिए पूरी दुनिया में विख्यात थे. इससे प्रभावित होकर अंग्रेजों ने उन्हें महाराजाधिराज की उपाधि दी थी.

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महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह

145 साल पहले दरभंगा महाराज ने शुरू की निजी ट्रेन
भारतीय रेलवे ने अब जाकर निजी तेजस ट्रेन की शुरुआत की है. लेकिन आज से 145 साल पहले दरभंगा महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह के जमाने में उनके किले के अंदर तक रेल लाइनें बिछी थी और ट्रेनें आती-जाती थीं. दरअसल, 1874 में दरभंगा के महाराजा लक्ष्मेश्वर ने तिरहुत रेलवे की शुरूआत की थी. उस वक्त उत्तर बिहार में भीषण अकाल पड़ा था. तब राहत कार्य के लिए बरौनी के बाजितपुर से दरभंगा तक के लिए पहली ट्रेन (मालगाड़ी) चली.

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इंधन से चलती ट्रेन

बाद में उन्होंने आम लोगों के लिए भी इसका परिचालन शुरू करवाया. इतना ही नहीं, दरभंगा महाराज के पास दो बड़े जहाज भी थे. कहा जाता है कि दूसरे विश्वयुद्ध के वक्त दरभंगा महाराज ने एयरफोर्स को तीन फाइटर प्लेन दिए थे. इसके पीछे मकसद ये था कि विश्वयुद्ध में भारत में राज करने वाले अंग्रेजों की फौज कामयाब हो.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

रेलवे का जाल बिछाने में महाराज का बड़ा योगदान
महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह ने ही उत्तर बिहार में रेल लाइन बिछाने के लिए अपनी कंपनी बनाई और अंग्रेजों के साथ एक समझौता किया. इसके लिए अपनी जमीन तक उन्होंने तत्कालीन रेलवे कंपनी को मुफ्त में दे दी और एक हज़ार मज़दूरों ने रिकॉर्ड समय में मोकामा से लेकर दरभंगा तक की रेल लाइन बिछाई.

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दरभंगा किले का मुख्य द्वार

उत्तर बिहार और नेपाल सीमा तक रेलवे का जाल बिछाने में महाराज का बड़ा योगदान है. उनकी कंपनी तिरहुत रेलवे ने 1875 से लेकर 1912 तक बिहार में कई रेल लाइनों की शुरुआत की थी. इनमें दलसिंहसराय-समस्तीपुर, समस्तीपुर-मुजफ्फरपुर, मुजफ्फरपुर-मोतिहारी, मोतिहारी-बेतिया, दरभंगा-सीतामढ़ी, हाजीपुर-बछवाड़ा, सकरी-जयनगर, नरकटियागंज-बगहा और समस्तीपुर-खगड़िया लाइनें प्रमुख हैं.

महाराजा ने चलाई थी 'पैलेस ऑन व्हील' नाम से राजसी ट्रेन
इसके अलावा महाराजा ने अपने लिए पैलेस ऑन व्हील नाम से भी एक ट्रेन चलाई थी, जिसमें राजसी सुविधाएं मौजूद थीं. इस ट्रेन में चांदी से मढ़ी सीटें और पलंग थे. इसमें देश-विदेश की कई हस्तियों ने दरभंगा तक का सफर किया था. इनमें पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, कई रियासतों के राजा-महाराजा और अंग्रेज अधिकारी शामिल थे.
यह ट्रेन दरभंगा के आखिरी महाराजा कामेश्वर सिंह के निधन यानि 1962 के पहले तक नरगौना टर्मिनल पर आती-जाती थी. 1972 में दरभंगा में ललित नारायण मिथिला विवि की शुरूआत हुई. जिसके कुछ साल बाद बाद नरगौना महल विवि के अधिकार क्षेत्र में आ गया. तब से ही इस रेलवे प्लेटफार्म के बुरे दौर की शुरुआत हुई.

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अंग्रेजों के साथ दरभंगा महाराज

'रेल लाइन बिछाने के लिए मुफ्त में दी जमीन'
ललित नारायण मिथिला विवि के सीनेटर संतोष कुमार बताते हैं दरभंगा राज का बिहार में रेलवे के विकास में बहुत बड़ा योगदान है. महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह ने उत्तर बिहार में रेल लाइनें बिछाने के लिए अपनी जमीन मुफ्त में दे दी थी, उनके पैसों से एक हजार मजदूरों ने मिलकर रिकॉर्ड समय में मोकामा से लेकर दरभंगा तक की रेल लाइन बिछाई.

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दरभंगा महाराज के साथ मौजूद अंग्रेज अधिकारी व अन्य

'सरकार, प्रशासन, विवि मिलकर संरक्षित करे विरासत'
अंतिम महारानी की ओर से संचालित महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउंडेशन के सीईओ श्रुतिकर झा ने कहा कि ऐतिहासिक नरगौना टर्मिनल का संरक्षण किया जाना चाहिए और इसे पर्यटन स्थल में बदल देना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह एक ऐतिहासिक विरासत है जिसे सरकार, प्रशासन और विवि को मिलकर संरक्षित करना चाहिए ताकि नयी पीढ़ी भी इस बारे में जान सके.

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लॉर्ड विंलिंग्डन का दरभंगा स्टेशन पर स्वागत करते महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह

'रेलवे प्लेटफॉर्म के संरक्षण की प्रक्रिया शुरू'
वहीं, ललित नारायण मिथिला विवि के रजिस्ट्रार कर्नल निशीथ कुमार राय ने कहा कि इस ऐतिहासिक रेलवे प्लेटफॉर्म के संरक्षण की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है. उन्होंने कहा कि समस्तीपुर रेल मंडल के डीआरएम से बात की गई है. इस प्लेटफार्म पर तिरहुत रेलवे का इंजन लगा कर उसके संरक्षण की योजना बनाई जा रही है.

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दरभंगा महाराज के साथ मौजूद अंग्रेज अधिकारी व अन्य

विरासत को बचाने की कोशिश
वक्त के साथ दरभंगा महाराज के योगदान को भुला दिया गया था. लेकिन पिछले कुछ सालों में रेलवे ने दरभंगा महाराज की यादों और धरोहरों को संजोने में दिलचस्पी दिखाई है. उम्मीद है कि विभाग के जरिए इस विरासत को बचाने की कोशिश होगी, जिससे बिहार की आने वाली पीढ़ियां भी इस गौरवशाली इतिहास को जान सकेंगी.

दरभंगा: बिहार का यह जिला अपने समृद्ध अतीत और प्रसिद्ध दरभंगा राज के लिए जाना जाता है. अपनी सांस्कृतिक और शाब्दिक परंपराओं के लिए भी दरभंगा मशहूर है और शहर बिहार की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में लोकप्रिय है. यहां का इतिहास रामायण और महाभारत काल से जुड़ा है जिसका जिक्र भारतीय पौराणिक महाकाव्यों में भी है.

अंग्रेज भी मानते थे इस रियासत का जलवा
देश के रजवाड़ों में दरभंगा राज का हमेशा अलग स्थान रहा है. ये रियासत बिहार के मिथिला और बंगाल के कुछ इलाकों में कई किलोमीटर के दायरे तक फैला था. रियासत का मुख्यालय दरभंगा शहर था. ब्रिटिश इंडिया में इस रियासत का जलवा अंग्रेज भी मानते थे. इस रियासत के आखिरी महाराज कामेश्वर सिंह तो अपनी शान-शौकत के लिए पूरी दुनिया में विख्यात थे. इससे प्रभावित होकर अंग्रेजों ने उन्हें महाराजाधिराज की उपाधि दी थी.

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महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह

145 साल पहले दरभंगा महाराज ने शुरू की निजी ट्रेन
भारतीय रेलवे ने अब जाकर निजी तेजस ट्रेन की शुरुआत की है. लेकिन आज से 145 साल पहले दरभंगा महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह के जमाने में उनके किले के अंदर तक रेल लाइनें बिछी थी और ट्रेनें आती-जाती थीं. दरअसल, 1874 में दरभंगा के महाराजा लक्ष्मेश्वर ने तिरहुत रेलवे की शुरूआत की थी. उस वक्त उत्तर बिहार में भीषण अकाल पड़ा था. तब राहत कार्य के लिए बरौनी के बाजितपुर से दरभंगा तक के लिए पहली ट्रेन (मालगाड़ी) चली.

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इंधन से चलती ट्रेन

बाद में उन्होंने आम लोगों के लिए भी इसका परिचालन शुरू करवाया. इतना ही नहीं, दरभंगा महाराज के पास दो बड़े जहाज भी थे. कहा जाता है कि दूसरे विश्वयुद्ध के वक्त दरभंगा महाराज ने एयरफोर्स को तीन फाइटर प्लेन दिए थे. इसके पीछे मकसद ये था कि विश्वयुद्ध में भारत में राज करने वाले अंग्रेजों की फौज कामयाब हो.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

रेलवे का जाल बिछाने में महाराज का बड़ा योगदान
महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह ने ही उत्तर बिहार में रेल लाइन बिछाने के लिए अपनी कंपनी बनाई और अंग्रेजों के साथ एक समझौता किया. इसके लिए अपनी जमीन तक उन्होंने तत्कालीन रेलवे कंपनी को मुफ्त में दे दी और एक हज़ार मज़दूरों ने रिकॉर्ड समय में मोकामा से लेकर दरभंगा तक की रेल लाइन बिछाई.

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दरभंगा किले का मुख्य द्वार

उत्तर बिहार और नेपाल सीमा तक रेलवे का जाल बिछाने में महाराज का बड़ा योगदान है. उनकी कंपनी तिरहुत रेलवे ने 1875 से लेकर 1912 तक बिहार में कई रेल लाइनों की शुरुआत की थी. इनमें दलसिंहसराय-समस्तीपुर, समस्तीपुर-मुजफ्फरपुर, मुजफ्फरपुर-मोतिहारी, मोतिहारी-बेतिया, दरभंगा-सीतामढ़ी, हाजीपुर-बछवाड़ा, सकरी-जयनगर, नरकटियागंज-बगहा और समस्तीपुर-खगड़िया लाइनें प्रमुख हैं.

महाराजा ने चलाई थी 'पैलेस ऑन व्हील' नाम से राजसी ट्रेन
इसके अलावा महाराजा ने अपने लिए पैलेस ऑन व्हील नाम से भी एक ट्रेन चलाई थी, जिसमें राजसी सुविधाएं मौजूद थीं. इस ट्रेन में चांदी से मढ़ी सीटें और पलंग थे. इसमें देश-विदेश की कई हस्तियों ने दरभंगा तक का सफर किया था. इनमें पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, कई रियासतों के राजा-महाराजा और अंग्रेज अधिकारी शामिल थे.
यह ट्रेन दरभंगा के आखिरी महाराजा कामेश्वर सिंह के निधन यानि 1962 के पहले तक नरगौना टर्मिनल पर आती-जाती थी. 1972 में दरभंगा में ललित नारायण मिथिला विवि की शुरूआत हुई. जिसके कुछ साल बाद बाद नरगौना महल विवि के अधिकार क्षेत्र में आ गया. तब से ही इस रेलवे प्लेटफार्म के बुरे दौर की शुरुआत हुई.

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अंग्रेजों के साथ दरभंगा महाराज

'रेल लाइन बिछाने के लिए मुफ्त में दी जमीन'
ललित नारायण मिथिला विवि के सीनेटर संतोष कुमार बताते हैं दरभंगा राज का बिहार में रेलवे के विकास में बहुत बड़ा योगदान है. महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह ने उत्तर बिहार में रेल लाइनें बिछाने के लिए अपनी जमीन मुफ्त में दे दी थी, उनके पैसों से एक हजार मजदूरों ने मिलकर रिकॉर्ड समय में मोकामा से लेकर दरभंगा तक की रेल लाइन बिछाई.

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दरभंगा महाराज के साथ मौजूद अंग्रेज अधिकारी व अन्य

'सरकार, प्रशासन, विवि मिलकर संरक्षित करे विरासत'
अंतिम महारानी की ओर से संचालित महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउंडेशन के सीईओ श्रुतिकर झा ने कहा कि ऐतिहासिक नरगौना टर्मिनल का संरक्षण किया जाना चाहिए और इसे पर्यटन स्थल में बदल देना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह एक ऐतिहासिक विरासत है जिसे सरकार, प्रशासन और विवि को मिलकर संरक्षित करना चाहिए ताकि नयी पीढ़ी भी इस बारे में जान सके.

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लॉर्ड विंलिंग्डन का दरभंगा स्टेशन पर स्वागत करते महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह

'रेलवे प्लेटफॉर्म के संरक्षण की प्रक्रिया शुरू'
वहीं, ललित नारायण मिथिला विवि के रजिस्ट्रार कर्नल निशीथ कुमार राय ने कहा कि इस ऐतिहासिक रेलवे प्लेटफॉर्म के संरक्षण की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है. उन्होंने कहा कि समस्तीपुर रेल मंडल के डीआरएम से बात की गई है. इस प्लेटफार्म पर तिरहुत रेलवे का इंजन लगा कर उसके संरक्षण की योजना बनाई जा रही है.

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दरभंगा महाराज के साथ मौजूद अंग्रेज अधिकारी व अन्य

विरासत को बचाने की कोशिश
वक्त के साथ दरभंगा महाराज के योगदान को भुला दिया गया था. लेकिन पिछले कुछ सालों में रेलवे ने दरभंगा महाराज की यादों और धरोहरों को संजोने में दिलचस्पी दिखाई है. उम्मीद है कि विभाग के जरिए इस विरासत को बचाने की कोशिश होगी, जिससे बिहार की आने वाली पीढ़ियां भी इस गौरवशाली इतिहास को जान सकेंगी.

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दरभंगा राज,  नरगौना महल, तिरहुत रेलवे,  तेजस एक्सप्रेस , महात्मा गांधी, दरभंगा महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह, महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह, 1870 में बिहार में भीषण अकाल, पैलेस ऑन व्हील ट्रेन, जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, दरभंगा के आखिरी महाराजा कामेश्वर सिंह,  ललित नारायण मिथिला विवि,  ललित नारायण मिथिला विवि के सीनेटर संतोष कुमार,  संतोष कुमार,  महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउंडेशन,  कल्याणी फाउंडेशन के सीईओ श्रुतिकर झा, श्रुतिकर झा, ललित नारायण मिथिला विवि के रजिस्ट्रार कर्नल निशीथ कुमार राय,  कर्नल निशीथ कुमार राय,  Darbhanga Raj, Nargona Mahal, Tirhut Railway, Tejas Express, Mahatma Gandhi, Darbhanga Maharaj Laxmeshwar Singh, Maharaj Laxmeshwar Singh, severe famine in Bihar in 1870, Palace on Wheel Train, Jawaharlal Nehru,Dr. Rajendra Prasad, Dr. Sarvapalli Radhakrishnan, the last Maharaja of Darbhanga Kameshwar Singh, Lalit Narayan Mithila University, Lalit Narayan Mithila University Senator Santosh Kumar, Santosh Kumar, Maharajadhiraj Kameshwar Singh Kalyani Foundation, Kalyani Foundation CEO Shrutikar Jha, Shrutikar Jha, Lalit Narayan Mithila University Registrar Colonel Nishith Kumar Rai, Colonel Nishith Kumar Rai


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