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विशेष लेख : मानवाधिकारों का भारत सहित दुनियाभर के देशों में हो रहा हनन

संयुक्त राष्ट्र की अभिलाषा है कि सभी मनुष्यों को बिना किसी भेदभाव के स्वतंत्रता और समानता के साथ रहना चाहिए. अंतर्राष्ट्रीय संगठन का मानना है कि पृथ्वी पर पैदा होने वाला हर कोई समान है. इसके लिए 10 दिसंबर 1948 को विश्व के सभी देशों द्वारा पेरिस में एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया गया था. तब से अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस प्रतिवर्ष 10 दिसंबर को मनाया जाता है.

Editorial on Magna Carta
प्रतीकात्मक फोटो
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Published : Dec 13, 2019, 4:21 PM IST

Updated : Dec 13, 2019, 4:36 PM IST

जन्म से ही हर व्यक्ति के कुछ अधिकार प्राप्त होते हैं. उनकी रक्षा करना संबंधित सरकारों की जिम्मेदारी है. फिर भी दुनियाभर में लोगों के अधिकारों का लगातार हनन हो रहा है. जाति, धर्म, क्षेत्र, लिंग, रंग और रूप के नाम पर लोगों के साथ भेदभाव किया जा रहा है और अधिकारों का उल्लंघन बेरोकटोक जारी है. अधिकारों पर ऐतिहासिक कानून, 'मैग्ना कार्टा', स्पष्ट करता है कि नागरिक की स्वतंत्रता को 'न्याय निर्णय' के अलावा किसी भी तरीके से निषिद्ध नहीं किया जा सकता है.

हर देश की एक ही कहानी...

भारत में लागू किया गया मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993, 8 जनवरी 1994 को लागू हुआ. अधिनियम यह निर्धारित करता है कि राज्य स्तर पर मानवाधिकार समूहों की स्थापना की जानी चाहिए. एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट है कि भारत सहित कई देशों में मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है. रिपोर्ट में कहा गया, अमेरिका, वेनेजुएला, बांग्लादेश, ईरान, इराक, यमन, तुर्की और सीरिया में उल्लंघनों की संख्या अधिक थी. यह भी पता चला कि बाल अधिकारों के उल्लंघन के अलावा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लिंग आधारित दुर्व्यवहार, बच्चों और महिलाओं के खिलाफ हिंसा और जाति-धार्मिक हिंसा आदि में सामाजिक कार्यकर्ता भी मारे जा रहे हैं.

महिलाओं के अधिकारों के संबंध में...

ललिता मुद्गल बनाम भारत संघ (1995), सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य, मेहता बनाम भारत संघ (1986) मामले महत्वपूर्ण हैं. विशाखा दिशानिर्देश भी महत्वपूर्ण हैं. दिल्ली स्थित स्वैच्छिक संगठन, 'नाज फाउंडेशन' (2009) हिजड़ों के अधिकारों के लिए काम कर रहा है. प्रत्येक व्यक्ति को न्यूनतम सुविधाओं तक पहुंच का अधिकार है. बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में जिन्हें 'बीमार राज्य' के रूप में जाना जाता है, अब भी पेयजल, परिवहन और बिजली जैसी न्यूनतम सुविधाओं का अभाव है. तकनीकी प्रगति और करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद, कुछ क्षेत्रों में सामाजिक विकास की कमी को अधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखा जाना चाहिए. यह दर्दनाक है कि वह अब भी स्वतंत्रता के सात दशकों के फल का आनंद हर कोई नहीं ले सकता है. मैला ढोना एक कानूनी अपराध है. हालांकि यह प्रक्रिया अब भी जारी है.

हेलसिंकी की घोषणापत्र के अनुसार मानव पर दवा का प्रयोग एक अपराध है. हाल ही में तेलंगाना राज्य में भद्राचलम आदिवासी लड़कियों पर ऐसे प्रयोग प्रकाश में आए हैं. महिलाओं की तस्करी एक अपराध है. तेलुगु राज्यों के नल्लामाला क्षेत्र में आदिवासियों को पैसे और शराब का लालच देकर ठगा जा रहा हैं. महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त क्षेत्र मराठवाड़ा की गाथा सबसे दुखद है. क्षेत्र की अधिकांश महिलाओं में गर्भाशय नहीं होता है, क्योंकि गन्ना किसान केवल उन महिलाओं को नियुक्त करते हैं, जिन्होंने गर्भाशय निकलवा (हिस्टेरेक्टॉमी) दिया है, अन्यथा वह अपने मासिक के दौरान दो-तीन दिन अनुपस्थित रहेंगी. बेरोजगारी के डर से महिलाएं हिस्टेरेक्टॉमी का सहारा ले रही हैं. यह उनके अधिकारों का जघन्य उल्लंघन है.

वंचित आदिवासी...

पीसा अधिनियम-1996 के अनुसार, वन संसाधनों पर आदिवासियों का अधिकार है, लेकिन इन संसाधनों का अधाधुंध निष्कर्षण उनकी अनुमति के बिना किया जा रहा है. तेलुगु राज्यों के नल्लामाला क्षेत्र में, ओडिशा के जंगलों में, मध्य प्रदेश और यूरेनियम का खनन जैसे कार्यक्रम आदिवासियों के जीवन में बाधा बन रहे हैं. विभिन्न विकास परियोजनाओं और प्राकृतिक संसाधनों की निकासी के नाम पर जंगलों को नष्ट किया जा रहा है. पश्चिम बंगाल के मुसुनी द्वीप पर रहने वाले कुछ समुदायों की हालत और भी बदतर है. पर्यावरण में बदलाव से यह द्वीप प्रभावित हो रहे हैं. समुद्री क्षरण और दिन पर दिन बढ़ते पानी के कारण वह असुरक्षित जीवन जी रहे हैं

सबसे चौंकाने वाले बलात्कार के मामले समुदाय के लिए एक चुनौती बन गए हैं. निर्भया कुछ दिनों पहले और हैदराबाद की दिशा इन अपराधों के स्पष्ट उदाहरण बन गए हैं. आदिवासी समुदायों के अधिकारों, जो देश की आबादी का आठ प्रतिशत है और खानाबदोश जनजातियों का लगातार उल्लंघन हो रहा है. जिनके पास कोई पक्का घर नहीं है, उनका जीवन और भी दयनीय है. हाल ही में एक संगठन ने व्यापक सर्वेक्षण किया और इन तथ्यों को प्रकाश में लाया.

आदिवासी सरकार से पहचान पत्र प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उनके पूर्वजों को अंग्रेज सरकार ने अपराधियों की श्रेणी में डाल दिया था. आज भी उन्हें उसी नजरिए से देखा जाता है. पुलिस उन्हें हिरासत में ले लेती है और कहीं भी मामूली अपराधों के लिए उनका उत्पीड़न करती है. राष्ट्रीय अपराध सांख्यिकी ब्यूरो- 2017 के अनुसार, बच्चों के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं. मानव तस्करी के मामले भी बढ़ रहे हैं. बाल तस्करी, अंग चोरी, ऑनलाइन घोटाले और गैर-न्यायिक हत्याओं पर कोई निश्चित आंकड़े नहीं हैं. इन सभी को अधिकारों का उल्लंघन माना जाता है.

सबसे आवश्यक है आदर्श परिवार प्रणाली

मानवाधिकार संरक्षण में नीदरलैंड पहले स्थान पर है. उसके बाद नॉर्वे, कनाडा, स्वीडन और डेनमार्क व स्विटजरलैंड हैं. एक हालिया सर्वेक्षण में यह विवरण सामने आए हैं. सऊदी अरब, चीन, कतर और इराक सबसे नीचे हैं. आदर्श परिवार प्रणाली सामुदायिक अस्तित्व की आधारशिला है. यह जितनी मजबूत होगी, समाज के लिए उतना ही अच्छा होगा. मानवता और नैतिक मूल्यों को बचपन से बच्चों को सिखाया जाना चाहिए. नैतिक मूल्यों की शिक्षा देने से अच्छे परिणाम मिलते हैं. देश में कई कानून हैं. यदि उन्हें ठीक से लागू किया जाए, तो कुछ हद तक अधिकारों के उल्लंघन पर अंकुश लगाया जा सकता है.

- डॉ रमेश बुदाराम
(लेखक – प्रोफेसर, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय केंद्रीय विश्वविद्यालय, मध्य प्रदेश)

जन्म से ही हर व्यक्ति के कुछ अधिकार प्राप्त होते हैं. उनकी रक्षा करना संबंधित सरकारों की जिम्मेदारी है. फिर भी दुनियाभर में लोगों के अधिकारों का लगातार हनन हो रहा है. जाति, धर्म, क्षेत्र, लिंग, रंग और रूप के नाम पर लोगों के साथ भेदभाव किया जा रहा है और अधिकारों का उल्लंघन बेरोकटोक जारी है. अधिकारों पर ऐतिहासिक कानून, 'मैग्ना कार्टा', स्पष्ट करता है कि नागरिक की स्वतंत्रता को 'न्याय निर्णय' के अलावा किसी भी तरीके से निषिद्ध नहीं किया जा सकता है.

हर देश की एक ही कहानी...

भारत में लागू किया गया मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993, 8 जनवरी 1994 को लागू हुआ. अधिनियम यह निर्धारित करता है कि राज्य स्तर पर मानवाधिकार समूहों की स्थापना की जानी चाहिए. एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट है कि भारत सहित कई देशों में मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है. रिपोर्ट में कहा गया, अमेरिका, वेनेजुएला, बांग्लादेश, ईरान, इराक, यमन, तुर्की और सीरिया में उल्लंघनों की संख्या अधिक थी. यह भी पता चला कि बाल अधिकारों के उल्लंघन के अलावा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लिंग आधारित दुर्व्यवहार, बच्चों और महिलाओं के खिलाफ हिंसा और जाति-धार्मिक हिंसा आदि में सामाजिक कार्यकर्ता भी मारे जा रहे हैं.

महिलाओं के अधिकारों के संबंध में...

ललिता मुद्गल बनाम भारत संघ (1995), सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य, मेहता बनाम भारत संघ (1986) मामले महत्वपूर्ण हैं. विशाखा दिशानिर्देश भी महत्वपूर्ण हैं. दिल्ली स्थित स्वैच्छिक संगठन, 'नाज फाउंडेशन' (2009) हिजड़ों के अधिकारों के लिए काम कर रहा है. प्रत्येक व्यक्ति को न्यूनतम सुविधाओं तक पहुंच का अधिकार है. बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में जिन्हें 'बीमार राज्य' के रूप में जाना जाता है, अब भी पेयजल, परिवहन और बिजली जैसी न्यूनतम सुविधाओं का अभाव है. तकनीकी प्रगति और करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद, कुछ क्षेत्रों में सामाजिक विकास की कमी को अधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखा जाना चाहिए. यह दर्दनाक है कि वह अब भी स्वतंत्रता के सात दशकों के फल का आनंद हर कोई नहीं ले सकता है. मैला ढोना एक कानूनी अपराध है. हालांकि यह प्रक्रिया अब भी जारी है.

हेलसिंकी की घोषणापत्र के अनुसार मानव पर दवा का प्रयोग एक अपराध है. हाल ही में तेलंगाना राज्य में भद्राचलम आदिवासी लड़कियों पर ऐसे प्रयोग प्रकाश में आए हैं. महिलाओं की तस्करी एक अपराध है. तेलुगु राज्यों के नल्लामाला क्षेत्र में आदिवासियों को पैसे और शराब का लालच देकर ठगा जा रहा हैं. महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त क्षेत्र मराठवाड़ा की गाथा सबसे दुखद है. क्षेत्र की अधिकांश महिलाओं में गर्भाशय नहीं होता है, क्योंकि गन्ना किसान केवल उन महिलाओं को नियुक्त करते हैं, जिन्होंने गर्भाशय निकलवा (हिस्टेरेक्टॉमी) दिया है, अन्यथा वह अपने मासिक के दौरान दो-तीन दिन अनुपस्थित रहेंगी. बेरोजगारी के डर से महिलाएं हिस्टेरेक्टॉमी का सहारा ले रही हैं. यह उनके अधिकारों का जघन्य उल्लंघन है.

वंचित आदिवासी...

पीसा अधिनियम-1996 के अनुसार, वन संसाधनों पर आदिवासियों का अधिकार है, लेकिन इन संसाधनों का अधाधुंध निष्कर्षण उनकी अनुमति के बिना किया जा रहा है. तेलुगु राज्यों के नल्लामाला क्षेत्र में, ओडिशा के जंगलों में, मध्य प्रदेश और यूरेनियम का खनन जैसे कार्यक्रम आदिवासियों के जीवन में बाधा बन रहे हैं. विभिन्न विकास परियोजनाओं और प्राकृतिक संसाधनों की निकासी के नाम पर जंगलों को नष्ट किया जा रहा है. पश्चिम बंगाल के मुसुनी द्वीप पर रहने वाले कुछ समुदायों की हालत और भी बदतर है. पर्यावरण में बदलाव से यह द्वीप प्रभावित हो रहे हैं. समुद्री क्षरण और दिन पर दिन बढ़ते पानी के कारण वह असुरक्षित जीवन जी रहे हैं

सबसे चौंकाने वाले बलात्कार के मामले समुदाय के लिए एक चुनौती बन गए हैं. निर्भया कुछ दिनों पहले और हैदराबाद की दिशा इन अपराधों के स्पष्ट उदाहरण बन गए हैं. आदिवासी समुदायों के अधिकारों, जो देश की आबादी का आठ प्रतिशत है और खानाबदोश जनजातियों का लगातार उल्लंघन हो रहा है. जिनके पास कोई पक्का घर नहीं है, उनका जीवन और भी दयनीय है. हाल ही में एक संगठन ने व्यापक सर्वेक्षण किया और इन तथ्यों को प्रकाश में लाया.

आदिवासी सरकार से पहचान पत्र प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उनके पूर्वजों को अंग्रेज सरकार ने अपराधियों की श्रेणी में डाल दिया था. आज भी उन्हें उसी नजरिए से देखा जाता है. पुलिस उन्हें हिरासत में ले लेती है और कहीं भी मामूली अपराधों के लिए उनका उत्पीड़न करती है. राष्ट्रीय अपराध सांख्यिकी ब्यूरो- 2017 के अनुसार, बच्चों के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं. मानव तस्करी के मामले भी बढ़ रहे हैं. बाल तस्करी, अंग चोरी, ऑनलाइन घोटाले और गैर-न्यायिक हत्याओं पर कोई निश्चित आंकड़े नहीं हैं. इन सभी को अधिकारों का उल्लंघन माना जाता है.

सबसे आवश्यक है आदर्श परिवार प्रणाली

मानवाधिकार संरक्षण में नीदरलैंड पहले स्थान पर है. उसके बाद नॉर्वे, कनाडा, स्वीडन और डेनमार्क व स्विटजरलैंड हैं. एक हालिया सर्वेक्षण में यह विवरण सामने आए हैं. सऊदी अरब, चीन, कतर और इराक सबसे नीचे हैं. आदर्श परिवार प्रणाली सामुदायिक अस्तित्व की आधारशिला है. यह जितनी मजबूत होगी, समाज के लिए उतना ही अच्छा होगा. मानवता और नैतिक मूल्यों को बचपन से बच्चों को सिखाया जाना चाहिए. नैतिक मूल्यों की शिक्षा देने से अच्छे परिणाम मिलते हैं. देश में कई कानून हैं. यदि उन्हें ठीक से लागू किया जाए, तो कुछ हद तक अधिकारों के उल्लंघन पर अंकुश लगाया जा सकता है.

- डॉ रमेश बुदाराम
(लेखक – प्रोफेसर, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय केंद्रीय विश्वविद्यालय, मध्य प्रदेश)

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लुप्त होती मैग्ना कार्टा



आज अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस है.



संयुक्त राष्ट्र की अभिलाषा है कि सभी मनुष्यों को बिना किसी भेदभाव के स्वतंत्रता और समानता के साथ रहना चाहिए. अंतर्राष्ट्रीय संगठन का मानना है कि पृथ्वी पर पैदा होने वाला हर कोई समान है. इसके लिए, 10 दिसंबर, 1948 को विश्व के सभी देशों द्वारा पेरिस में एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया गया था. तब से, अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस प्रतिवर्ष 10 दिसंबर को मनाया जाता है. जन्म से ही हर व्यक्ति के कुछ अधिकार प्राप्त होते हैं. उनकी रक्षा करना संबंधित सरकारों की जिम्मेदारी है. फिर भी, दुनिया भर में लोगों के अधिकारों का लगातार हनन हो रहा है. जाति, धर्म, क्षेत्र, लिंग, जाति, रंग और रूप के नाम पर लोगों के साथ भेदभाव किया जा रहा है और अधिकारों का उल्लंघन बेरोकटोक जारी है. अधिकारों पर ऐतिहासिक क़ानून, 'मैग्ना कार्टा', स्पष्ट करता है कि नागरिक की स्वतंत्रता को 'न्याय निर्णय' के अलावा किसी भी तरीके से निषिद्ध नहीं किया जा सकता है.



हर देश की एक ही कहानी...



भारत में लागू किया गया मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993, 8 जनवरी 1994 को लागू हुआ. अधिनियम यह निर्धारित करता है कि राज्य स्तर पर मानवाधिकार समूहों की स्थापना की जानी चाहिए. एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट है कि भारत सहित कई देशों में मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है. रिपोर्ट में कहा गया, अमेरिका, वेनेजुएला, बांग्लादेश, ईरान, इराक, यमन, तुर्की और सीरिया में उल्लंघनों की संख्या अधिक थी. यह भी पता चला कि बाल अधिकारों के उल्लंघन के अलावा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लिंग आधारित दुर्व्यवहार, बच्चों और महिलाओं के खिलाफ हिंसा और जाति-धार्मिक हिंसा, सामाजिक कार्यकर्ता भी मारे जा रहे हैं. महिलाओं के अधिकारों के संबंध में - ललिता मुद्गल बनाम भारत संघ (1995), सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य, मेहता बनाम भारत संघ (1986) मामले महत्वपूर्ण हैं. विशाखा दिशानिर्देश भी महत्वपूर्ण हैं. दिल्ली स्थित स्वैच्छिक संगठन, 'नाज़ फाउंडेशन' (2009) हिजड़ों के अधिकारों के लिए काम कर रहा है. प्रत्येक व्यक्ति को न्यूनतम सुविधाओं तक पहुंच का अधिकार है. बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में जिन्हें 'बीमार राज्य' के रूप में जाना जाता है, अभी भी पेयजल, परिवहन और बिजली जैसी न्यूनतम सुविधाओं का अभाव है. तकनीकी प्रगति और करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद, कुछ क्षेत्रों में सामाजिक विकास की कमी को अधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखा जाना चाहिए. यह दर्दनाक है कि वे अभी भी स्वतंत्रता के सात दशकों के फल का आनंद हर कोई नहीं ले सकता है. मैला ढोना एक कानूनी अपराध है. हालाँकि, यह प्रक्रिया अभी भी जारी है. हेलसिंकी की घोषणापत्र के अनुसार, मानव पर दवा का प्रयोग एक अपराध है. हाल ही में, तेलंगाना राज्य में भद्राचलम आदिवासी लड़कियों पर ऐसे प्रयोग प्रकाश में आए हैं. महिलाओं की तस्करी एक अपराध है. तेलुगु राज्यों के नल्लामाला क्षेत्र में आदिवासियों को पैसे और शराब का लालच देकर ठगा जा रहा हैं. महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त क्षेत्र मराठवाड़ा की गाथा सबसे दुखद है. क्षेत्र की अधिकांश महिलाओं में गर्भाशय नहीं होता है, क्योंकि गन्ना किसान केवल उन महिलाओं को नियुक्त करते हैं, जिन्होंने गर्भाशय निकलवा (हिस्टेरेक्टॉमी) दिया है, अन्यथा, वे अपनी मासिक के दौरान के दो या तीन दिनों तक अनुपस्थित रहेंगी. बेरोजगारी के डर से महिलाएं हिस्टेरेक्टॉमी का सहारा ले रही हैं. यह उनके अधिकारों का जघन्य उल्लंघन है.



वंचित आदिवासी...



पीसा अधिनियम-1996 के अनुसार, वन संसाधनों पर आदिवासियों का अधिकार है. लेकिन इन संसाधनों का अंधाधुंध निष्कर्षण उनकी अनुमति के बिना किया जा रहा है. तेलुगु राज्यों के नल्लामाला क्षेत्र में, ओडिशा के जंगलों में,  मध्य प्रदेश और यूरेनियम का खनन जैसे कार्यक्रम आदिवासियों के जीवन में बाधा बन रहे हैं. विभिन्न विकास परियोजनाओं और प्राकृतिक संसाधनों की निकासी के नाम पर जंगलों को नष्ट किया जा रहा है. पश्चिम बंगाल के मुसुनी द्वीप पर रहने वाले कुछ समुदायों की हालत और भी बदतर है. पर्यावरण में बदलाव से ये द्वीप प्रभावित हो रहे हैं. समुद्री क्षरण और दिन पर दिन बढ़ते पानी के कारण, वे असुरक्षित जीवन जी रहे हैं.



सबसे चौंकाने वाले बलात्कार के मामले समुदाय के लिए एक चुनौती बन गए हैं. निर्भया कुछ दिनों पहले और कल की दिशा इन अपराधों के स्पष्ट उदाहरण बन गए हैं. आदिवासी समुदायों के अधिकारों, जो देश की आबादी का 8 प्रतिशत है, और खानाबदोश जनजातियों का लगातार उल्लंघन हो रहा है. जिनके पास कोई पक्का घर नहीं है उनका जीवन और भी दयनीय है. हाल ही में, एक संगठन ने एक व्यापक सर्वेक्षण किया और इन तथ्यों को प्रकाश में लाया.



आदिवासी सरकार से पहचान पत्र प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उनके पूर्वजों को अंग्रेज़ सरकार ने अपराधियों की श्रेणी में डाल दिया था. आज भी उन्हें उसी नजरिये से देखा जाता है. पुलिस उन्हें हिरासत में ले लेती है और कहीं भी घटे मामूली अपराधों के लिए उनका उत्पीड़न करती है. राष्ट्रीय अपराध सांख्यिकी ब्यूरो- 2017 के अनुसार, बच्चों के खिलाफ अपराध बढ़ रहा है. मानव तस्करी के मामले भी बढ़ रहे हैं. बाल तस्करी, अंग चोरी, ऑनलाइन घोटाले, और गैर-न्यायिक हत्याओं पर कोई निश्चित आंकड़े नहीं हैं. इन सभी को अधिकारों का उल्लंघन माना जाता है.



आदर्श परिवार प्रणाली सबसे आवश्यक है



मानवाधिकार संरक्षण में नीदरलैंड पहले स्थान पर है उसके बाद नॉर्वे, कनाडा, स्वीडन और डेनमार्क, स्विटज़रलैंड हैं. एक हालिया सर्वेक्षण में ये विवरण सामने आए हैं. सऊदी अरब, चीन, कतर और इराक सबसे नीचे हैं. आदर्श परिवार प्रणाली सामुदायिक अस्तित्व की आधारशिला है. यह जितनी मजबूत होगी, समाज के लिए उतना ही अच्छा होगा. मानवता और नैतिक मूल्यों को बचपन से बच्चों को सिखाया जाना चाहिए. नैतिक मूल्यों की शिक्षा देने से अच्छे परिणाम मिलते हैं. देश में कई कानून हैं. यदि उन्हें ठीक से लागू किया जाये, तो कुछ हद तक अधिकारों के उल्लंघन पर अंकुश लगाया जा सकता है.



- डॉ रमेश बुदाराम



(लेखक – प्रोफेसर, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय केंद्रीय विश्वविद्यालय, मध्य प्रदेश)


Conclusion:
Last Updated : Dec 13, 2019, 4:36 PM IST
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