रांची : नक्सल प्रभावित इलाकों के पर्यटन स्थलों में अब नक्सली गतिविधियां कम होती जा रही हैं, जिसके बाद न्यायपालिका के उच्च स्तरीय पदाधिकारी पर्यटन स्थलों का लुत्फ उठा रहे हैं. झारखंड की राजधानी रांची की खूबसूरती का दीदार करने के लिए पटना हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजय करोल जब दशम फॉल पहुंचे तो ग्रामीण एसपी के नेतृत्व में जिला बल समेत दशम फॉल थाना की पुलिस बल भी चप्पे चप्पे पर सुरक्षा में मुस्तैद नजर आई.
सुरक्षा को अभेद्य बनाने के लिए और कहीं किसी तरह की कोई चूक न हो जाए, इसे लेकर स्थानीय सुरक्षा मित्र और पर्यटक मित्रों को भी विशेष दिशा-निर्देश दिए गए थे.
जलप्रपात की सुंदरता से मंत्रमुग्ध हुए मुख्य न्यायाधीश
पटना हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अपने परिवार के साथ दशम फॉल पहुंचे थे. 144 फीट की ऊंचाई से चट्टानों के बीच से होकर गिरती जलधारा का मुख्य न्यायाधीश ने लुत्फ उठाया और बहते पानी की स्वच्छता को देखकर उस पानी का स्वाद भी चखा. फॉल की खूबसूरती के साथ कई फोटोशूट भी कराए. हरे-भरे साल वृक्षों के बीच में बसा दशम फॉल का दृश्य देख मुख्य न्यायाधीश बेहद आनंदित हुए.
दशम फॉल का भ्रमण करने के बाद मुख्य न्यायाधीश अपनी धर्मपत्नी, बेटी और दामाद के साथ बुंडू स्थित सूर्य मंदिर पहुंचे और सपरिवार पूजा अर्चना की. इसके बाद तमाड़ स्थित देउड़ी मंदिर भी पहुंचे और पूजा अर्चना की. पटना हाई कोर्ट के न्यायाधीश ने बुंडू स्थित पर्यटन स्थल दशम फॉल की खूब तारीफ की और कई फोटोशूट भी कराए.
सुंदर दशम जलप्रपात
दशम जलप्रपात तैमारा गांव के पास रांची-टाटा रोड पर रांची शहर से 34 किमी दूर स्थित है. इस जगह को दासम गढ़ के रूप में भी जाना जाता है. इस झरने का मुख्य जल स्रोत नदी कचनी है, जो यहां 144 फीट की ऊंचाई से आती है. इस गिरावट की अनूठी विशेषता यह है कि जब झरना देखा जाता है, तो 10 पानी की धाराएं भी गिरती दिखाई देती हैं.
साल, सिद्धा, केंद जैसे पेड़ों से घिरे वन के बीचो-बीच झरने का नजारा देखने के लिए रास्ते में कुछ-कुछ दूरी पर रेलिंगयुक्त प्लेटफार्म बने हुए हैं. जंगल और पहाड़ियों के बीच से एक नदी बहती है, जो लगभग 45 मीटर की ऊंचाई से गिर कर आगे बढ़ जाती है. इतनी ऊंचाई से भी नदी का पानी अगर सीधे गिरता तो उतना आकर्षक नहीं लगता, ऊंचाई से गिरते पानी के रास्ते में बड़े-बड़े चट्टानों से टकराने से पानी का रंग-ढंग बदल जाता है और मनमोहक झरना बन जाता है.
फरवरी से अप्रैल के बीच का समय दशम फॉल घूमने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है. इसकी प्रसिद्धि दशम घाघ के रूप में भी है. यह झरना खूबसूरत प्राकृतिक नजारों से घिरा हुआ है. धीरे-धीरे यहां पर्यटकों के आने की संख्या बढ़ रही है और उन्हें कई तरह की सुविधाएं भी मुहैया कराई जा रही हैं.
पढ़ें - कश्मीर पहुंचा बॉलीवुड डेलिगेशन, पर्यटन उद्योग में जगी उम्मीदें
यह क्षेत्र लाह उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि विश्व की 36 प्रतिशत लाह इस क्षेत्र में उत्पन्न होती है. पलाश, बेर और कुसुम के चार पांच वृक्षों पर भी लाह की फसल यहां के किसान उगाकर वर्ष भर के लिए खुशहाल रहते हैं. दस किलोमीटर रास्ते के किनारे और आसपास के गांवों में मुख्य रूप से सिर्फ मुंडा आदिवासी बसे हुए हैं.
कभी रांची और आसपास के पर्यटन इलाकों को नक्सलियों की नजर लग गई थी. पुलिस का कसता शिकंजा और दबिश से नक्सलियों के हौसले पस्त होते जा रहे हैं. इस वजह से यहां के पर्यटन स्थल सैलानियों से गुलजार हैं. शासन-प्रशासन सुरक्षा के प्रति बढ़ता विश्वास आज ऐसे पर्यटन स्थल पर आम और खास को खींच लाता है.
ऐसा ही है रांची का दशम फॉल, जहां समय बिताना कभी काफी दूभर और दुश्वार हुआ करता था. अब हालात बिल्कुल उलट हैं. कड़ी सुरक्षा के बीच लोग यहां सुकून के चार पल बिताने बेहिचक आते हैं.