नई दिल्ली : बिहारी बाबू यानी शत्रुघ्न सिन्हा करीब तीन साल के गैप के बाद एक बार फिर संसद में पहुंच गए. इस बार लोकसभा में पहुंचने के लिए उन्होंने कांग्रेस को अलविदा बोलकर टीएमसी का दामन थाम लिया था. बाबुल सुप्रिय़ो के इस्तीफे के बाद शत्रुघ्न सिन्हा आसनसोल से तृणमूल के उम्मीदवार बने और तीन लाख के अंतर से उपचुनाव में जीत हासिल कर ली. आसनसोल लोकसभा के चुनावी इतिहास में पहली बार यह सीट तृणमूल के खाते में आई. इससे पहले इस सीट सीपीएम, कांग्रेस और बीजेपी जीतती रही है.
शत्रुघ्न सिन्हा ने जीत के बाद प्रतिक्रिया देते हुए पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की शान में कसीदे गढ़े. उन्होंने कहा कि पहले भी EVM का कई जगह खेला होता था, लेकिन इस बार बिना किसी भय और निष्पक्ष चुनाव हुए हैं. ये जीत ममता बनर्जी की है. शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा कि देश का भविष्य बनर्जी के हाथों में है. फिलहाल इस जीत के बाद शत्रुघ्न सिन्हा के संसद के द्वार दोबारा खुल गए हैं. अब वह बीजेपी के खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे.
अपने राजनीतिक सफर के शुरूआती 28 साल शत्रुघ्न सिन्हा ने बीजेपी में ही बिताए हैं. बिहारी बाबू 1991 में भारतीय जनता पार्टी से जुड़े. भाजपा ने 1992 में नई दिल्ली उपचुनाव में उन्हें कांग्रेस उम्मीदवार राजेश खन्ना के खिलाफ मुकाबले में उतारा. लालकृष्ण आडवाणी ने गांधीनगर और नई दिल्ली दोनों सीटें जीती थीं. उन्होंने गांधी नगर की सीट रख कर, नई दिल्ली की छोड़ दी. अपनी पहले चुनाव में सिन्हा 28 हजार वोट से हार गए. मगर पार्टी ने 1996 में उन्हें राज्यसभा में भेज दिया. इसके बाद वह दोबारा 2002 में राज्यसभा के लिए चुने गए. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में जनवरी 2003 से मई 2004 तक शत्रुघ्न सिन्हा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री भी रहे.
बीजेपी ने 2009 लोकसभा चुनाव में पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र से बिहारी बाबू को उम्मीदवार बनाया. शत्रुघ्न सिन्हा ने एक्टर शेखर सुमन को हराकर रेकॉर्ड वोट से जीत हासिल की. 2014 में दोबारा इस सीट से जीते. तब उन्होंने भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार रहे कुणाल सिंह को हराया था. बिहारी बाबू जीत तो गए मगर मोदी मंत्रिमंडल में जगह नहीं बना सके. तभी से बीजेपी से उनकी शत्रुता शुरू हुई. उन्हें जब भी मौका मिला, नरेंद्र मोदी पर निशाना साधना शुरू किया. इसके अलावा ममता बनर्जी, लालू प्रसाद यादव और अरविंद केजरीवाल की तारीफ का कोई मौका नहीं छोड़ा.
उनके बगावती तेवर को अंदाजा लग चुका था कि 2019 के चुनाव में बीजेपी उनका पत्ता काटने वाला है. तब शत्रुघ्न सिन्हा ने बीजेपी से 28 साल पुराना रिश्ता तोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया. 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान शत्रुघ्न सिन्हा बिहार की पटना साहिब सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े. उन्हें आरजेडी का समर्थन भी हासिल था मगर बीजेपी कैंडिडेट रविशंकर प्रसाद के सामने वह टिक नहीं सके. चुनाव हारने के बाद शत्रु इतने खफा हुए कि उन्हें जब भी मौका मिला, बीजेपी के खिलाफ घर के सदस्यों को उतारते रहे. बेटे लव सिन्हा को कांग्रेस के टिकट पर भाजपा के नितिन नवीन के खिलाफ बांकीपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़वाया. पत्नी पूनम सिन्हा भी 2019 में लखनऊ से राजनाथ सिंह के खिलाफ कैंडिडेट बनीं. मगर ये सभी चुनाव हार गए.
इस बीच शत्रु और संसद के बीच दूरी बनती रही. बताया जाता है कि प्रशांत किशोर और पुराने भाजपाई यशवंत सिन्हा ने उन्हें बंगाल का रास्ता दिखाया. टीएमसी ने उन्हें आसनसोल उपचुनाव में उतारा. फिलहाल शत्रु जीत चुके हैं और अब संसद में उनकी आवाज फिर गूंजेगी. वैसे भी शॉटगन कभी खामोश नहीं रहे बल्कि विरोधियों को कहते रहे हैं. खामोश...