हैदराबाद: पंजाब में आप को मिला जनादेश शिरोमणि अकाली दल (शिअद) और कांग्रेस के खिलाफ पड़ा वोट है. ऐसा मिथक बन गया था कि पंजाब में अकाली और कांग्रेस के बीच ही सत्ता हस्तांतरित होता रहेगा, हालांकि अकाली-भाजपा गठबंधन ने इस मिथक 2012 में सत्ता में वापसी करके इस मिथक तोड़ा दिया था. मतदाताओं के पास ऑप्शन की कमी थी इसीलिए जब उन्हें जब मौका मिला तो दोनों पार्टियों को उनकी जगह दिखा दी. नतीजतन आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत के साथ पंजाब की जनता ने सत्ता की चाबी सौंप दी.
चुनाव अभियान के दौरान, राज्य के वोटरों ने भी अफसोस जताया था कि अकाली और कांग्रेस दोनों ने ही उन्हें निराश किया है क्योंकि वे उनकी शिकायतों का समाधान ढूंढ़ने में असफल रहे. पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में लोगों ने बदलाव के लिए एक मतदान किया और इस उम्मीद से कि केजरीवाल की पार्टी उनके जीवन को बदल देगी.
पंजाब के लोगों के पास दशकों से अकाली-भाजपा या कांग्रेस के अलावा वोट देने का ही विकल्प था. इसी सीमित विकल्प ने मतदाताओं को अधिकांश मौकों पर सत्ताधारी दल के पक्ष में मतदान करने के लिए प्रेरित किया. हालांकि विधानसभा चुनाव 2012 में अकाली-भाजपा गठबंधन ने एक बार सबको चौंका दिया जब उसे लगातार दूसरा कार्यकाल मिला. हालाँकि, पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल के दस वर्ष के शासनकाल में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार खासकर परिवहन और खनन घोटला के आरोप लगे थे. जिस राज्य में सुखबीर का बहनोई बिक्रम मजीठिया कथित रूप से शामिल था, उसमें नशीली दवाओं के खतरे ने भी लोगों का विरोध किया था.
विधानसभा चुनाव 2017 में लोगों ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को दोबारा सत्ता में काबिज कराया था. परंतु वे जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाए, लोगों की शिकायत थी कि उन्होंने साढ़े चार साल के शासन में कोई बड़ा निर्णय लेने में असफल रहे. साथ ही पार्टी में चल रही खींचतान ने भी उनके कार्यकाल को धूमिल कर दिया. शपथ लेने के बाद बेअदबी के मुद्दे पर कार्रवाई करने में उनकी विफलता ने सिखों के एक बड़े धड़े को नाराज कर दिया था. उन्होंने ड्रग्स के मुद्दे पर मजीठिया के खिलाफ कार्रवाई नहीं की या अकाली सरकार की घोटालों को उजागर करने के कांग्रेस के घोषणापत्र में किए गए वादों को पूरा करने में असफल रहे. हालांकि उन्होंने मतदाताओं को अकाली शासन के घोटालों का पर्दाफाश करने का आश्वासन पर सत्ता में आए थे परंतु लोगों की आकाक्षाओं को पूरा नहीं कर पाए.
उच्च बेरोजगारी, हताश युवाओं द्वारा नशीली दवाओं का सेवन, नौकरियों की तलाश में युवाओं का विदेश पलायन, उद्योगों का बंद होना, कृषि से आय में कमी और कांग्रेस शासन में भी भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं आई. इसी बीच आम आदमी पार्टी के निरंतर कोशिश विधान सभा चुनाव 2022 में रंग लायी.
यदि हम विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजों का आकलन करें तो साफ हो जाता है कि अकाली और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी अपना कुनबा बचा पाने में असफल रहे. नतीजे इस बात को सिद्ध करते हैं कि अभी तक लोग सीमित ऑप्शन की वजह से अकाली और कांग्रेस को सत्ता की चाबी सौंपते थे और जैसे ही उन्हें आप ने मौका दिया तो वे उन्हें सत्ता के सिंहासन पर बैठा दिया.
पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल लगातार 11 विधानसभा चुनाव लांबी सीट से जीत चुके थे उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा. वहीं सुखबीर बादल (जलालपुर); मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (चमकौर साहिब और भदौर दोनों से), पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिहं (पटियाला अर्बन), मनप्रीत सिंह बादल (कांग्रेस) भटिंडा सिटी से , क्रिकेटर व पंजाब कांग्रेस समिति के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धु (अमृतसर पूर्व) और जालंधर मध्य से मनोरंजन कालिया (भाजपा) भी चुनाव में हार गए.
वहीं आप ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल शासन के दिल्ली मॉडल का भरपुर फायदा उठाया. आप के पोस्टरों और झंडों में दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की तस्वीर और चुनाव चिंह झाडू प्रमुखता से था. उसी को देखते हुए लोगों ने प्रचंड बहुमत के साथ पंजाब के सत्ता कि चाबी सौंप दी है. लोगों का स्पष्ट मत था कि केजरीवाल ने दिल्ली में बड़ी पार्टियों- कांग्रेस और बीजेपी- को हरा दिया और शिक्षा के क्षेत्र में अभुतपूर्व कार्य किया है और इसलिए आप को एक मौका दिया जाना चाहिए. हालांकि भाजपा और कांग्रेस दोनों ने केजरीवाल को खालिस्तानी समर्थक और बाहरी व्यक्ति बताते हुए अपने अभियान का निर्देशन किया जो अंतत: फेल साबित हुआ.
यह भी पढ़ें उत्तराखंड की दो बेटियों ने अपने पिता की हार का बदला लेकर रचा इतिहास