भोपाल: किलेदारों में बटी कांग्रेस के लिए 2024 का बरस कायाकल्प का साल था. पहले सिंधिया और फिर पचौरी के पार्टी छोड़ देने के बाद पार्टी के आखिरी दो क्षत्रप कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जिनका दशकों कांग्रेस की सियासत पर घोषित-अघोषित असर रहा. पार्टी हाईकमान ने उनकी भूमिकाएं समेट दी. 2024 का साल मध्य प्रदेश में कांग्रेस के लिए कायाकल्प का साल था. पीढ़ी परिवर्तन का साल.
संगठन से लेकर सदन तक हाईकमान ने कमान नौजवानों के हाथ में सौंप दी. कांग्रेस संगठन की जवाबदारी अगर जीतू पटवारी ने संभाली तो सदन में उम्रदराज चेहरों पर नौजवान चेहरे उमंग सिंघार का चुनाव किया गया.
2024 में टूटी कांग्रेस की किलेदारी, नौजवानों ने थामी कमान
2018 में जिन कमलनाथ के बदौलत एमपी में कांग्रेस की सत्ता आई थी. 2023 में उन्हीं पर हार का ठीकरा रखा गया. कांग्रेस का सत्ता में लौटने का सपना फिर टूट गया. 2018 से लेकर 2023 तक कमलनाथ की अगुवाई में ही कांग्रेस ने दोनों विधानसभा लड़े. 2018 में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की, लेकिन 2023 का चुनाव पार्टी हार गई. हार के सार के तौर पर कमलनाथ की प्रदेश अध्यक्ष पद से विदाई की गई और चुनाव में अपनी ही सीट ना बचा पाने के बावजूद राहुल गांधी के करीबियों में गिने जाने वाले जीतू पटवारी को कांग्रेस की कमान सौंपी गई.
वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश भटनागर 2024 की दस्तक से पहले कांग्रेस के इस बदलाव को लेकर कहते हैं, "एमपी में कांग्रेस का नेतृत्व परिवर्तन 2023 के आखिरी महीने में ही हो गया था, लेकिन हम 2024 को ही बदलाव के तौर पर देखें तो देर आए दुरुस्त आए का फैसला था. राजनीति में पीढ़ी परिवर्तन जरूरी है. बीजेपी में तो ये समय-समय पर होता ही रहा है. लेकिन कांग्रेस में इसकी जरुरत लंबे समय से थी.
किलेदारों में बटी कांग्रेस एकजुट होकर आगे नहीं बढ़ पा रही थी, लेकिन हैरत की बात ये है कि पीढ़ी परिवर्तन के बाद भी बहुत बदलाव दिखाई नहीं दिया. अब जीतू और उमंग में कांग्रेस बट गई है. लोकसभा चुनाव के नतीजे तस्दीक हैं, लेकिन ये पीढ़ी परिवर्तन जरूरी फैसला था. नई पीढ़ी के हाथ में कमान आनी जरुरी थी. दिग्विजय सिंह और कमलनाथ को भी ये संदेश दिया जाना जरूरी कि उन्हें भरपूर मौके दिए गए. उनका दौर बीत चुका है."
तीन युवा तुर्क के सहारे, ऐसे साधे कांग्रेस ने समीकरण
कांग्रेस से जुड़े तीन महत्वपूर्ण पदों की बात करें तो जीतू पटवारी ओबीसी वर्ग से आते हैं. दांव ये भी था कि जिस समय जीतू पटवारी को कमान सौंपी गई. उस समय लोकसभा चुनाव में बमुश्किल तीन महीने का समय बाकी था. ऐसे में जीतू पटवारी की जगह 50 फीसदी से अधिक ओबीसी मतदाताओं को एड्रेस करने की कोशिश की गई. दूसरे नंबर पर महत्वपूर्ण पद नेता प्रतिपक्ष का था. इस पद पर पार्टी ने अपने सबसे मजबूत वोट बैंक रहे आदिवासी चेहरे को उतारा.
विवादों में रहने के बावजूद उमंग सिंघार को ये जवाबदारी दी गई. इसी तरह उप नेता प्रतिपक्ष पद का दायित्व हेमत कंटारे जैसे पार्टी के ब्राह्मण चेहरे को दिया गया. एक तरीके से तीन चेहरों के साथ पार्टी ने तीन वर्ग साध लिए. कांग्रेस की प्रवक्ता संगीता शर्मा कहती हैं, "कमलनाथ दिग्विजय सिंह हमारे जो वरिष्ठ नेता हैं, उनके मार्गदर्शन और हमारे जो मौजूदा नेतृत्व हैं, उनकी अगुवाई में पार्टी मध्य प्रदेश में मजबूत विपक्ष की भूमिका निभा रही है."
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2024 के आखिरी प्रदर्शन में बताई पार्टी ने ताकत
2024 मे गुजरते साल में विधानसभा का घेराव करने सड़क पर उतरी कांग्रेस और सदन में अब 65 सीटों के साथ विपक्ष में मौजूद विधायकों ने अपनी पूरी ताकत इस प्रदर्शन में झौंक दी. अर्से बाद कांग्रेस का कोई सफल धरना दिखाई दिया जिसमें बड़ी तादात में पूरे प्रदेश से कार्यकर्ता जुटे. बीजेपी सरकार के खिलाफ जवाब दो हिसाब दो के तहत हुए इस प्रदर्शन में हजारों की तादात में भीड़ जुटी. वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश भटनागर कहते हैं, भले उमंग सिंगार और जीतू पटवारी के बीच पटरी ना बैठने की खबरें आएं. लेकिन इस प्रदर्शन ने बता दिया कि कांग्रेस कहीं तो एकजुटता के साथ सामने आ रही है.