जयपुर. राजस्थान में भू गर्भ के पानी का दोहन बेहद चिंताजनक हाल में पहुंच चुका है. राजस्थान में भूमि में पानी के इकट्ठे होने के मुकाबले निकाले जाने वाले पानी की मात्र डेढ़ गुना तक है. यहां भू-जल का दोहन 151 फीसदी तक किया जा रहा है. हालात यह है कि प्रदेश में मौजूद 301 ब्लॉक में से 295 ब्लॉक डार्क जोन में हैं, इनमें सात शहरी इलाकों के 219 ब्लॉक अति दोहित है.
पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार के कार्यकाल के आखिरी साल में विधानसभा में लगे सवाल के जवाब में तत्कालीन जलदाय मंत्री महेश जोशी ने भी इस बात को स्वीकार किया था कि राजस्थान में हालात लगातार बिगड़ रहे हैं और पानी की दृष्टि से सुरक्षित माने जाने वाले ब्लॉक की संख्या लगातार घट रही है. महज 38 वाटर ब्लॉक्स ही ऐसे हैं, जिन्हें वाटर स्टोरेज के मामले में सेफ माना गया है. जाहिर है कि सरकार खुद मान चुकी है कि राज्य में 72.75 फीसदी ब्लॉक्स में पानी का अति दोहन हो चुका है.
इस तरह से पानी की उपलब्धता का हुआ वर्गीकरण : पानी के दोहन के आधार पर भूगर्भ जल को अलग-अलग ब्लॉक में बांटा जाता है. जहां 100 फीसदी से अधिक क्षमता से दोहन होता है, उन क्षेत्रों को अति दोहित या ओवर एक्सप्लोइटेड कैटेगरी में रखा जाता है. जिन क्षेत्रों में भूजल स्तर के 90 फीसदी तक पानी को निकाल लिया जाता है, उन्हें गंभीर या क्रिटिकल कैटेगरी में रखा जाता है. इसी तरह से सेमी क्रिटिकल की कैटेगरी में 70 से 90 फीसदी जल दोहन वाले क्षेत्र आते हैं, तो सुरक्षित ब्लॉक तब ही माना जाता है, जब कुल उपलब्ध जल की मात्रा में 70 फीसदी से कम का उपयोग किया जाता है. हैरत की बात है कि राजस्थान में चुनिंदा इलाकों को ही सुरक्षित यानी सेफ जोन की कैटेगरी में रखा गया है.
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ये 7 शहर चिंताजनक हालत में : राजधानी जयपुर समेत प्रदेश के सात शहर बेहद चिंताजनक हालत में हैं. इन शहरों में राजधानी जयपुर के अलावा अजमेर, जोधपुर, कोटा, उदयपुर, बीकानेर और जैसलमेर शामिल हैं. खास तौर पर जयपुर में हालात चिंताजनक है. यहां सभी 16 ब्लॉक को अति-दोहित श्रेणी में रखा गया है, जिन्हें डार्क जोन कहा जा सकता है. प्रदेश के 29 जिले अति दोहन की श्रेणी वाले हैं. सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक ये सभी शहर अति दोहित क्षेत्र में आते हैं. वहीं, जिन शहरों में फिलहाल पेयजल को लेकर स्थिति बेहतर है, उनमें डूंगरपुर, बांसवाड़ा, बीकानेर, गंगानगर और हनुमानगढ़ का नाम शामिल है.
भू-जल प्राधिकरण की जरूरत पर जोर : अशोक गहलोत सरकार में पानी के महकमे के मंत्री रहे महेश जोशी ने तब राज्य भू-जल संरक्षण और प्रबंधन प्राधिकरण के गठन पर जोर दिया था. जोशी ने कहा था कि प्राधिकरण बनने के बाद भू-जल दोहन पर कंट्रोल कर पाएंगे. तब उन्होंने बताया था कि राज्य में भू-जल दोहन की स्थिति चिन्ताजनक है और राज्य में 151 प्रतिशत दोहन हो रहा है. फिलहाल राज्य के भू-जल दोहन के संबंध में राज्य सरकार कोई भी फैसला केन्द्रीय भू-जल प्राधिकरण के दिशा निर्देशों के आधार पर ही करती है.
लापोड़िया मॉडल से सीख लेने की जरूरत : जल संरक्षण की दिशा में काम करने वाले पद्मश्री लक्ष्मण सिंह लापोड़िया के मुताबिक हमें आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित करने के लिए भू-गर्भ आधारित पानी पर निर्भरता खत्म करनी होगी. लक्ष्मण सिंह कहते हैं कि इसके लिए हमें परंपरागत जल स्रोतों को संरक्षित करने और पुनर्जीवित करने की दिशा में काम करना होगा. वह अपने गांव लापोड़िया का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि कैसे वर्षा जल के जरिए उन्होंने ना सिर्फ गांव और आसपास के क्षेत्र में भू-जल के स्तर को ऊपर किया है, बल्कि पुराने तालाबों को भी पुनर्जीवित करने में कामयाबी हासिल की है. वे बताते हैं कि प्रकृति हमें हमारी जरूरत के हिसाब से सब कुछ देती है, लेकिन मानव की लापरवाही के कारण अमृत रूपी जल व्यर्थ बह जाता है. अंधाधुंध शहरीकरण और दिशाहीन विकास के कारण आज पेयजल की समस्या ना सिर्फ शहरी जीवन के लिए अभिशाप बन रही है, बल्कि गांव में भी जीवन को प्रभावित कर रही है. लिहाजा सतर्क होकर सतही जल की संरक्षण की दिशा में काम करना होगा. वे कहते हैं कि देश और राज्यों की सरकारों को योजनाएं बनाकर इस दिशा में लोगों को प्रोत्साहित करना होगा. तब जाकर आने वाले सालों में इस चुनौती से लड़ने की क्षमता हासिल हो सकेगी.
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जल संरक्षण पर जोर की जरूरत : नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एनजीटी के मुताबिक भारत में रोजाना 48.41 अब लीटर पानी बर्बाद होता है, जबकि भारत की आबादी का 60 करोड़ लोगों का हिस्सा पानी की परेशानी से जूझ रहा है. एनजीटी के मुताबिक भारत में आज भी 33 प्रतिशत लोग शेविंग या ब्रश करने के दौरान नल खुला रखते हैं. घरेलू नल में हर मिनट 6 लीटर पानी आता है यानी ब्रश और शेविंग के दौरान अगर 5 मिनट भी नल खुल रहा है, तो 30 लीटर पानी बर्बाद हो जाता है.
सामाजिक कार्यकर्ता पी. एन. मेंदौला के मुताबिक हमें भूगर्भ आधारित जल पर निर्भर रहने की जगह सतह पर मिलने वाले पानी को संरक्षित करना चाहिए और रोजमर्रा की जरूरत के लिए इस्तेमाल भी करना चाहिए. आज जिस तरह से खेती से लेकर पेयजल और रोजाना की जरूरत के उपयोग में बोरिंग करके पानी निकाला जा रहा है, वहीं आज के दौर में गिरते भूजल का सबसे बड़ा कारण है.