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Special : अल्बर्ट हॉल की पूरी दुनिया में धाक, लेकिन जयपुर का पहला अजायबघर आज भी अपनी पहचान का मोहताज - World Museum day 2024

जयपुर के अल्बर्ट हॉल को दुनिया भर में बड़ी पहचान मिली है, लेकिन उससे पहले बना हुआ जयपुर का पहला म्यूजियम अपनी पहचान का मोहताज है. 1866 ईस्वी में बने अजायबघर में अभी सिर्फ 2 कठपुतली और एक बग्गी ही इसकी शोभा बढ़ा रही है. 2017 में इसका कंजर्वेशन करते हुए विरासत संग्रहालय का नाम दिया गया. विश्व संग्रहालय दिवस पर देखिए यह खास रिपोर्ट...

WORLD MUSEUM DAY 2024
जयपुर का अजायबघर (फोटो : ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : May 18, 2024, 9:16 AM IST

Updated : May 18, 2024, 9:50 AM IST

जयपुर का अजायबघर (वीडियो : ईटीवी भारत)

जयपुर. जयपुर के महाराजा सवाई राम सिंह ने किशनपोल स्थित अजायबघर के रूप में जयपुर को अपना पहला म्यूजियम दिया था. हालांकि जब यह छोटा पड़ा तो शहर के बाहर अल्बर्ट हॉल के रूप में एक नया संग्रहालय स्थापित किया गया, जहां अजायबघर की सामग्री को भी शिफ्ट कर दिया गया. उसके बाद अल्बर्ट हॉल को तो आज पूरी दुनिया में एक पहचान मिली हुई है, लेकिन अजायबघर जिसे 7 साल पहले स्मार्ट सिटी की ओर से संवारते हुए विरासत संग्रहालय का रूप तो दिया गया, लेकिन आज भी अपनी पहचान का मोहताज बना हुआ है.

सवाई रामसिंह को था पुरा वस्तुओं से लगाव : जयपुर के महाराजा सवाई राम सिंह द्वितीय को पुरानी वस्तुओं के संग्रह में गहरी रुचि थी. वो पुरा सामग्रियों को बादल महल में रखा करते थे. फिर वर्ष 1866 के दौर में दीवान रहे पं. शिव दीन ने किशनपोल में खुद के लिए एक हवेली बनवाई, लेकिन पंडितों ने उसमें रहने से मना कर दिया. बाद में सवाई राम सिंह ने उस हवेली के एक भाग में मदरसा-ए-हुनरी और दूसरे भाग में बादल महल की पुरा सामग्रियों को शिफ्ट करते हुए पहला अजायबघर बनाया. लेकिन जब यह छोटा पड़ने लगा तब सवाई राम सिंह ने एक नया संग्रहालय बनाने का फैसला लिया. उसी समय फरवरी, 1876 में ब्रिटिश शासन के अगले किंग एडवर्ड सप्तम बनने से पहले प्रिंस अल्बर्ट का जयपुर आना हुआ. तब सफेद रंग के जयपुर को गुलाबी रंग में रंगा गया और प्रिंस की उस यात्रा को यादगार बनाने के लिए 6 फरवरी 1876 को अल्बर्ट हॉल की नींव रखी. इस पर खुश होकर प्रिंस अल्बर्ट ने जयपुर से लिया जाने वाला टैक्स भी आधा कर दिया.

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यह है जयपुर का पहला म्यूजियम (फोटो : ईटीवी भारत)

अल्बर्ट हॉल में तूतू की ममी : हालांकि इस इमारत के निर्माण के दौरान ही महाराजा रामसिंह का निधन हो गया. उनके बाद महाराजा माधो सिंह ने चीफ इंजीनियर स्विंटन जैकब की अगुवाई में अल्बर्ट हॉल का काम पूरा कराया और फिर 21 फरवरी 1887 को एडवर्ड बेडफोर्ड ने अल्बर्ट हॉल का उद्घाटन किया. यह देश की एक मात्र ऐसी इमारत है, जिसमें कई देशों की स्थापत्य शैली का समावेश देखने को मिलता है. जयपुर के राज परिवार के चित्र, राजचिह्न, भारत और विदेशी कला के नमूनों की प्रतिकृतियां और भित्ति चित्र यहां की गैलरी में पर्यटकों के लिए प्रदर्शित किए जाते हैं. इसी अल्बर्ट हॉल में मौजूद ढाई हजार साल पुरानी तूतू की ममी भी है, जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहती है. वहीं, सवाई मानसिंह के समय यहां कुछ सामग्री को और जोड़ा गया.

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अल्बर्ट हॉल में मौजूद है कई पुराने हथियार (फोटो : ईटीवी भारत)

इसे भी पढ़ें- यहां बसता है 40 देशों की गुड़ियों का संसार, जयपुर का डॉल म्यूजियम है खास - International Museum Day 2024

विरासत संग्रहालय में अभी सिर्फ 2 कठपुतलियां और एक बग्गी : अल्बर्ट हॉल एक ऐसा स्थान है, मानो एक आदमी चारों तरफ से हाथ फैलाए सबकुछ अपने अंदर समेटने की कोशिश कर रहा है. अल्बर्ट हॉल के अधीक्षक मोहम्मद आरिफ ने बताया कि अल्बर्ट हॉल में वर्तमान में सबसे प्रमुख ऑब्जेक्ट इजिप्ट की ममी है, जो 322 ईसा पूर्व की है. इसके अलावा 1622 ईसा का पर्शियन कारपेट, स्ट्रक्चर, कॉइंस, आर्म्स, ब्लू पॉटरी, मेटल ऑब्जेक्ट, पेंटिंग, टेक्सटाइल, वुडन आर्ट, ज्वेलरी जैसे कई सेक्शन में अल्बर्ट हॉल में प्रदर्शनी लगाई गई है. लगभग 2700 ऑब्जेक्ट डिस्प्ले में लगा रखे हैं, बाकी रिजर्व कलेक्शन है. एक तरफ सवाई राम सिंह के सपने को विश्व पटल पर जगह मिली, जबकि जयपुर का पहला अजायबघर पहले स्कूल ऑफ आर्ट्स में तब्दील हुआ और फिर 2017 में इसका कंजर्वेशन करते हुए विरासत संग्रहालय का नाम दिया लेकिन यहां संग्रहालय की शोभा सिर्फ विक्की भट्ट की बनाई हुई दो विशाल कठपुतलियां और एक पुरानी लकड़ी की बग्गी ही बढ़ा रही है.

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2 कठपूतलियां बढ़ा रही विरासत संग्रहालय की शोभा (फोटो : ईटीवी भारत)

विरासत संग्रहालय में रखे जा सकते हैं आर्ट ऑब्जेक्ट : हालांकि पुरातत्व विभाग की उपनिदेशक कृष्णकांता शर्मा ने कहा कि पुरातत्व विभाग के गठन का मूल उद्देश्य ही यही था कि संग्रहालय में पुरा सामग्री को अवाप्त करके आम जनता, युवा पीढ़ी और शोधार्थियों को दिखाने का प्रयास किया जाए. पुरातत्व विभाग अभी भी अपने मूल उद्देश्य पर ही काम कर रहा है. उन्होंने बताया कि विरासत संग्रहालय ( स्कूल ऑफ आर्ट, अजायबघर) के लिए उच्च स्तर पर एक योजना चल रही है कि वहां किस तरह का डिस्प्ले किया जाए. क्योंकि मूर्तियां, हथियार ये सब अल्बर्ट हॉल में भी देखने को मिलते हैं. ऐसे में प्रशासन की ये तैयारी चल रही है कि इसे दूसरे संग्रहालय से अलग कैसे बनाया जाए, ताकि टूरिस्ट यहां आकर्षित हो. कोशिश की जाएगी कि यहां आर्ट ऑब्जेक्ट रखे जाएं और इसे जल्द आम जनता के लिए खोला जाए.

इसे भी पढ़ें- Special : दुनिया में सिर्फ बीकानेर में ही बनती है यह खास ज्वलेरी, फिर भी नहीं मिली शहर के नाम से पहचान - Bikaneri Kundan jewellery

बहरहाल, विश्व विरासत में शुमार जयपुर का परकोटा अपने स्थापत्य कला और संस्कृति के लिए दुनिया भर में अपना स्थान रखता है. यहां के कलाकारों की कला ने भी विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ी है. इन्हीं कलाकारों की कला को जयपुर के राजाओं ने एक छत के नीचे लाने का काम किया था. अब प्रशासन को जयपुर की इसी विरासत को संजोते हुए आगे बढ़ाना होगा.

जयपुर का अजायबघर (वीडियो : ईटीवी भारत)

जयपुर. जयपुर के महाराजा सवाई राम सिंह ने किशनपोल स्थित अजायबघर के रूप में जयपुर को अपना पहला म्यूजियम दिया था. हालांकि जब यह छोटा पड़ा तो शहर के बाहर अल्बर्ट हॉल के रूप में एक नया संग्रहालय स्थापित किया गया, जहां अजायबघर की सामग्री को भी शिफ्ट कर दिया गया. उसके बाद अल्बर्ट हॉल को तो आज पूरी दुनिया में एक पहचान मिली हुई है, लेकिन अजायबघर जिसे 7 साल पहले स्मार्ट सिटी की ओर से संवारते हुए विरासत संग्रहालय का रूप तो दिया गया, लेकिन आज भी अपनी पहचान का मोहताज बना हुआ है.

सवाई रामसिंह को था पुरा वस्तुओं से लगाव : जयपुर के महाराजा सवाई राम सिंह द्वितीय को पुरानी वस्तुओं के संग्रह में गहरी रुचि थी. वो पुरा सामग्रियों को बादल महल में रखा करते थे. फिर वर्ष 1866 के दौर में दीवान रहे पं. शिव दीन ने किशनपोल में खुद के लिए एक हवेली बनवाई, लेकिन पंडितों ने उसमें रहने से मना कर दिया. बाद में सवाई राम सिंह ने उस हवेली के एक भाग में मदरसा-ए-हुनरी और दूसरे भाग में बादल महल की पुरा सामग्रियों को शिफ्ट करते हुए पहला अजायबघर बनाया. लेकिन जब यह छोटा पड़ने लगा तब सवाई राम सिंह ने एक नया संग्रहालय बनाने का फैसला लिया. उसी समय फरवरी, 1876 में ब्रिटिश शासन के अगले किंग एडवर्ड सप्तम बनने से पहले प्रिंस अल्बर्ट का जयपुर आना हुआ. तब सफेद रंग के जयपुर को गुलाबी रंग में रंगा गया और प्रिंस की उस यात्रा को यादगार बनाने के लिए 6 फरवरी 1876 को अल्बर्ट हॉल की नींव रखी. इस पर खुश होकर प्रिंस अल्बर्ट ने जयपुर से लिया जाने वाला टैक्स भी आधा कर दिया.

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यह है जयपुर का पहला म्यूजियम (फोटो : ईटीवी भारत)

अल्बर्ट हॉल में तूतू की ममी : हालांकि इस इमारत के निर्माण के दौरान ही महाराजा रामसिंह का निधन हो गया. उनके बाद महाराजा माधो सिंह ने चीफ इंजीनियर स्विंटन जैकब की अगुवाई में अल्बर्ट हॉल का काम पूरा कराया और फिर 21 फरवरी 1887 को एडवर्ड बेडफोर्ड ने अल्बर्ट हॉल का उद्घाटन किया. यह देश की एक मात्र ऐसी इमारत है, जिसमें कई देशों की स्थापत्य शैली का समावेश देखने को मिलता है. जयपुर के राज परिवार के चित्र, राजचिह्न, भारत और विदेशी कला के नमूनों की प्रतिकृतियां और भित्ति चित्र यहां की गैलरी में पर्यटकों के लिए प्रदर्शित किए जाते हैं. इसी अल्बर्ट हॉल में मौजूद ढाई हजार साल पुरानी तूतू की ममी भी है, जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहती है. वहीं, सवाई मानसिंह के समय यहां कुछ सामग्री को और जोड़ा गया.

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अल्बर्ट हॉल में मौजूद है कई पुराने हथियार (फोटो : ईटीवी भारत)

इसे भी पढ़ें- यहां बसता है 40 देशों की गुड़ियों का संसार, जयपुर का डॉल म्यूजियम है खास - International Museum Day 2024

विरासत संग्रहालय में अभी सिर्फ 2 कठपुतलियां और एक बग्गी : अल्बर्ट हॉल एक ऐसा स्थान है, मानो एक आदमी चारों तरफ से हाथ फैलाए सबकुछ अपने अंदर समेटने की कोशिश कर रहा है. अल्बर्ट हॉल के अधीक्षक मोहम्मद आरिफ ने बताया कि अल्बर्ट हॉल में वर्तमान में सबसे प्रमुख ऑब्जेक्ट इजिप्ट की ममी है, जो 322 ईसा पूर्व की है. इसके अलावा 1622 ईसा का पर्शियन कारपेट, स्ट्रक्चर, कॉइंस, आर्म्स, ब्लू पॉटरी, मेटल ऑब्जेक्ट, पेंटिंग, टेक्सटाइल, वुडन आर्ट, ज्वेलरी जैसे कई सेक्शन में अल्बर्ट हॉल में प्रदर्शनी लगाई गई है. लगभग 2700 ऑब्जेक्ट डिस्प्ले में लगा रखे हैं, बाकी रिजर्व कलेक्शन है. एक तरफ सवाई राम सिंह के सपने को विश्व पटल पर जगह मिली, जबकि जयपुर का पहला अजायबघर पहले स्कूल ऑफ आर्ट्स में तब्दील हुआ और फिर 2017 में इसका कंजर्वेशन करते हुए विरासत संग्रहालय का नाम दिया लेकिन यहां संग्रहालय की शोभा सिर्फ विक्की भट्ट की बनाई हुई दो विशाल कठपुतलियां और एक पुरानी लकड़ी की बग्गी ही बढ़ा रही है.

WORLD MUSEUM DAY 2024
2 कठपूतलियां बढ़ा रही विरासत संग्रहालय की शोभा (फोटो : ईटीवी भारत)

विरासत संग्रहालय में रखे जा सकते हैं आर्ट ऑब्जेक्ट : हालांकि पुरातत्व विभाग की उपनिदेशक कृष्णकांता शर्मा ने कहा कि पुरातत्व विभाग के गठन का मूल उद्देश्य ही यही था कि संग्रहालय में पुरा सामग्री को अवाप्त करके आम जनता, युवा पीढ़ी और शोधार्थियों को दिखाने का प्रयास किया जाए. पुरातत्व विभाग अभी भी अपने मूल उद्देश्य पर ही काम कर रहा है. उन्होंने बताया कि विरासत संग्रहालय ( स्कूल ऑफ आर्ट, अजायबघर) के लिए उच्च स्तर पर एक योजना चल रही है कि वहां किस तरह का डिस्प्ले किया जाए. क्योंकि मूर्तियां, हथियार ये सब अल्बर्ट हॉल में भी देखने को मिलते हैं. ऐसे में प्रशासन की ये तैयारी चल रही है कि इसे दूसरे संग्रहालय से अलग कैसे बनाया जाए, ताकि टूरिस्ट यहां आकर्षित हो. कोशिश की जाएगी कि यहां आर्ट ऑब्जेक्ट रखे जाएं और इसे जल्द आम जनता के लिए खोला जाए.

इसे भी पढ़ें- Special : दुनिया में सिर्फ बीकानेर में ही बनती है यह खास ज्वलेरी, फिर भी नहीं मिली शहर के नाम से पहचान - Bikaneri Kundan jewellery

बहरहाल, विश्व विरासत में शुमार जयपुर का परकोटा अपने स्थापत्य कला और संस्कृति के लिए दुनिया भर में अपना स्थान रखता है. यहां के कलाकारों की कला ने भी विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ी है. इन्हीं कलाकारों की कला को जयपुर के राजाओं ने एक छत के नीचे लाने का काम किया था. अब प्रशासन को जयपुर की इसी विरासत को संजोते हुए आगे बढ़ाना होगा.

Last Updated : May 18, 2024, 9:50 AM IST
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