नई दिल्ली: दुनिया में हर साल बड़ी संख्या में लोग रक्त विकार संबंधी बीमारी हीमोफीलिया से पीड़ित होते हैं. इस बीमारी के बारे में लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 17 अप्रैल को विश्व हीमोफीलिया दिवस मनाया जाता है.
हीमोफीलिया क्या है?
- हीमोफीलिया एक तरह की ब्लड डिसऑर्डर है.
- हीमोफीलिया ग्रसित व्यक्ति को चोट लग जाये तो उसका खून जल्दी बंद नहीं होता.
- आसान शब्दों में समझे तो चोट लगने के बाद रक्त का धक्का नहीं जमता.
- हीमोफीलिया रोगियों के शरीर में एक खास तरह का प्रोटीन नहीं होता जो ब्लड के थक्के को बनाती है.
- यह बीमारी लड़कियों की तुलना में लड़कों में अधिक पाई जाती है.
वर्ष 2024 की विश्व हीमोफीलिया दिवस की थीम 'रक्त विकारों को पहचानने के लिए सभी के पास समान पहुंच' है. दिल्ली के लोकनायक अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉक्टर सुरेश कुमार ने बताया कि हीमोफीलिया ऐसी बीमारी है जो एक्स लिंक्ड क्रोमोसोम से महिला में पहुंचती है यानी ये बीमारी पुरुषों में अधिक होती है. महिलाओं में इस बीमारी के लक्षण हल्के होते हैं. इस बीमारी में महिलाएं करियर होती हैं. यह बीमारी अनुवांशिक होती है और माता-पिता से बच्चों में पहुंचती है. डॉक्टर सुरेश कुमार ने बताया कि इस बीमारी का लक्षण यह है कि जब किसी को चोट लगती है तो उसका खून जल्दी से बंद नहीं होता. ये हीमोफीलिया की पहचान का मुख्य लक्षण है.
दिल्ली के सभी अस्पतालों में निशुक्ल इलाज मौजूद
उन्होंने बताया कि इस बीमारी के मरीज को 8 फैक्टर को रिप्लेस करने की डोज दी जाती है. 8 फैक्टर की कमी की वजह से यह बीमारी होती है. डॉक्टर सुरेश कुमार ने यह भी बताया कि इस बीमारी का इलाज दिल्ली के सभी बड़े सरकारी अस्पतालों और देश के अन्य बड़े सरकारी अस्पतालों में भी निशुल्क उपलब्ध है. इसलिए लोगों को इस बीमारी के लक्षण दिखने के बाद लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए. बस लोगों को इस बीमारी के लक्षण के बारे में ध्यान रखना चाहिए. जब भी किसी को चोट लगने पर उसका ब्लड अगर आधे घंटे तक ना रुके तो उन्हें डॉक्टर के पास जाकर अपनी हीमोफीलिया की जांच करानी चाहिए. अगर जांच रिपोर्ट उनकी पॉजिटिव आती है तो उन्हें 8 फैक्टर को रिप्लेस करने की डोज दी जाती है. उन्होंने यह भी बताया की हीमोफीलिया के किसी मरीज की जब कभी सर्जरी करनी होती है तो सर्जरी से पहले उसको 8 फैक्टर को रिप्लेस करने के लिए डोज देनी पड़ती है. उसके बाद ही उसकी सर्जरी की जाती है.
हीमोफीलिया के रोगी बच्चों का खास ध्यान रखना चाहिए
डॉक्टर सुरेश कुमार ने यह भी बताया हीमोफीलिया के मरीज को चोट लगने से बचने के प्रति अधिक सजग रहना चाहिए. अगर किसी बच्चे को हीमोफीलिया है तो सीढ़ी पर चढ़ते वक्त या कोई भी जोखिम भरा काम या स्पोर्ट्स गतिविधियों को करते समय पहले उसकी सुरक्षा के प्रति अधिक ध्यान देना चाहिए, क्योंकि चोट लगने पर उसका ब्लड जल्दी से रुकता नहीं है और अधिक ब्लड बह जाने से कई बार मौत भी हो जाती है.
पहली बार कब मनाया गया विश्व हीमोफीलिया दिवस
वर्ल्ड हीमोफीलिया दिवस की शुरुआत साल 1989 में वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हीमोफीलिया (डब्ल्यूएफएच) की ओर से की गई थी. डब्ल्यूएफएच के संस्थापक फ्रैंक श्वाबेल के सम्मान में उनके जन्म दिवस पर 17 अप्रैल को इसको मनाया जाने लगा.
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